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Written By शरद सिंगी
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:21 IST)

भारतीय गणतंत्र की गरिमा यमन के झरोखे से

भारतीय गणतंत्र की गरिमा यमन के झरोखे से -
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व्यवसाय के सिलसिले में मध्य पूर्व देशों की मेरी कुछ रोचक यात्राओं में यमन की यात्रा भी शामिल है। व्यावसायिक यात्राओं में देशाटन नहीं होता इसलिए केवल वर्तमान तापमान की जानकारी लेकर यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं।

समाचार पत्रों के माध्यम से इतनी जानकारी जरूर थी की यमन के कुछ इलाकों में अल कायदा का जोर है तथा यहां के राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह सन 1978 से एक तानाशाह की तरह शासन कर रहें हैं।

अदन, रंगून की तरह एक प्राचीन और प्राकृतिक बंदरगाह है। भारत से लन्दन जल मार्ग से जाते समय यहां प्रथम विश्राम लिया जाता था। यमन भी अंग्रेजों का उपनिवेश था जिसका प्रशासन मुंबई से होता था और एक समय ऐसा भी था जब भारत की मुद्रा यहां चलती थी। अरब प्रायद्वीप के दक्षिण और अफ्रीका से सटा हुआ है यह देश।

मैं यमन की राजधानी 'सना 'में मध्यरात्रि कोविमान से उतरा तो अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों से दूर एक अविकसित से हवाई-अड्डे से साक्षात्कार हुआ। हवाई-अड्डे के बाहर कुछ हल्की फुल्की रोशनी, चारोंओर सन्नाटा और कोई ट्रैफिक नहीं। ड्राईवर लेने पहुंच चुका था उसके साथ होटल पहुंचें। होटल के द्वार पर लाल बत्ती वाली पुलिस की दो गाड़ियां देखकर माथा थोड़ा ठनका। होटल में प्रवेश कर अपने कमरे में जाकर बिस्तर में शरण ली।

सुबह नए देश की उत्सुकता में खिड़की के बाहर झांककर देखा तो पैरों तले जमीन खिसक गई। कुछ देहाती से दिखने वाले लोग सड़क पर चल रहें हैं और उनके कमर में तलवारनुमा हथियार है।

होटल के मुख्य द्वार पर देखा पुलिस की गाड़ियां नदारद थी। दिमाग में अल -कायदा घूम गया। सिहरन हो उठी कि ये हथियार बंद अल -कायदा केआतंकवादी खुले आम घूम रहे हैं। नाश्ता कर तैयार हुआ तब तक कंपनी का ड्राईवर लेने पहुंच चुका था। तलवार वाले लोग आ-जा रहे थे और मैं भगवान को याद करता हुआ कंपनी के ऑफिस पहुंचा।

ऊंचे परकोटे और मजबूत मुख्य द्वार से जब ऑफिस के अहाते में प्रवेश किया तो थोड़ी सांस बंधी। वहां के लोगों को सूट और पैंट शर्ट में देखकर थोड़ी हिम्मत बढ़ी। मैनेजर के कक्ष में बैठकर थोड़ी चैन की सांस ली ही थी कि एक तलवारधारी मैनेजर के कक्ष में घुसा। मेरी सांस लगभग रुक गई। तभी मैनेजर ने परिचय करवाया और कहा कि ये हमारे साथ साईट पर चलेंगे। मैंने मन में सोचा शायद अंगरक्षक है।

थोड़ी राहत की सांस ली तभी अचानक मेरी नजर दीवार पर लगी वहां के राजा की तस्वीर पर पड़ी और तब सारी स्थिति साफ हुई कि वास्तव मेंजिस तलवार से मैं डर रहा था वह उनके पारंपरिक वेषभूषा का हिस्सा थी। ठीक उसी तरह जिस तरह सिक्ख हमारे यहां कृपाण ले कर चलते हैं। केवल उनकी कृपाण कुछ ज्यादा ही बड़ी थी। अपनी मूर्खता पर आज भी हंसी आती है।

खैर साहब मीटिंग के लिए बाहर जाना था और रास्ता 'सना' शहर के मध्य से था। 'सना' एक सदियों पुराना शहर है और आधुनिक विकास की धारा से बहुत पीछे।

पुराने शहर की चार दिवारी में जब प्रवेश किया तो आंखें फटी रह गईं। आंखों के सामने एक विशाल और चमत्कृत कर देने वाला प्राचीन वास्तुशिल्प कला का अद्भुत दृश्य था। दूर तक नक्काशीदार मिट्टी और पत्थरों से बने हुए गुलाबी सुंदर दुमंजिले और तिमंजिले मकान जिन पर कलाकृतियाँ और चित्रकारी की हुई है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया है। शहर के बाहर निकलकर मैंने अपना तकनीकी ज्ञान देना शुरू किया। अपने उत्पाद की विशिष्टाओं को बताना शुरू किया। थोड़ा मन में गुमान भी होने लगा कि यहां की तकनीक और जानकारी से हम ज्यादा विकसित है।

बात होते-होते हिंदुस्तान और फिर मालवा तक पहुंच गई। तलवारधारी ने बड़ी सहजता से पूछा कि आपका शहर कौन से अक्षांक्ष और देशांतर पर स्थित है, बस उसका पूछना था और मेरे मन में जो क्षणिक गुमान पैदा हुआ था वह पूरा गायब हो चुका था। भारत के मध्य में कहकर जान छुड़ाई। प्रश्न उचित था लेकिन हमारे युग से थोड़ा आगे का। वह दिन दूर नहीं जब लोग अपना पता अक्षांक्ष और देशांतर में बताएंगे। मार्गों में नाम और मकान नंबर बेमानी हो जाएंगे पर अभी थोड़ा वक्त है।

कई लोगों से मुलाकात हुई। बहुत सरल, गरीब, शोषित और पिछड़ा समाज। इसी समाज ने पिछले वर्ष अपने बर्बर शासक के खिलाफ एक सफल आन्दोलन किया फलतः अब्दुल्लाह सालेह को देश छोड़कर भागना पड़ा।

हम अत्यधिक भाग्यशाली हैं जो हमें उस संविधान के लिए गणतंत्र दिवस को मनाने का अवसर मिलता है जो संविधान प्रजा का, प्रजा के द्वारा, प्रजा के लिए है वहीँ यमन जैसे कई देशों मेंयह संविधान शासक का, शासक के द्वारा, शासकके लिए होता है। हमारे देश की जनता बधाई की हकदार है जिसने इस संविधान की गरिमा बनाये रखी।

आइए भारत के गौरवमई गणतंत्र पर्व में उत्साह से शामिल हो जाइए क्योंकि यह सौभाग्य दुनिया के करोड़ों लोगों को नसीब नहीं। हमें तब पता चलता है जब इन देशों की परेशानियों और इतिहास से रूबरू होते हैं। भारतीय गणतंत्र जिंदाबाद।