क्या यही है बापू के सपनों का भारत?
खून के आंसू बहा रही है मां भारती...
आजादी के बाद से हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों, राजनेताओं व नौकरशाहों के चरित्र और नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट ने दर्शाया है कि धृतराष्ट्र का कुर्सी प्रेम किन-किन विचित्र खेलों को जन्म देता है। चुनाव लड़ना अब हिंसा, धन और बाहुबल का खेल होकर रह गया है।
हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं में अपराधियों की भरमार होती जा रही है। क्या यही बापू के सपनों का भारत है? मंत्री, अफसर, धन्नासेठ सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। कुल मिलाकर देश का भविष्य इन्हीं के हाथों में कैद होता जा रहा है। '
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा', के नारे, और संकल्प को साकार करने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसा दूसरा नेता आजादी के बाद देश में न होना दुर्भाग्य की बात है। अपने अतीत से सबक नहीं लेने वाले देशों का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल जाता है। आज देश में धीरे-धीरे ही सही आजादी के पहले की स्थिति येन-केन-प्रकारेण निर्मित होती दिख रही है।
लेकिन, सत्ता में काबिज राजनेताओं की आंखों पर राजनीतिक स्वार्थ की पट्टी बंधी हुई है। वे तो बस अपना घर भरने और कुर्सी बचाने में ही अपनी शक्ति लगा रहे हैं। वहीं, विपक्षी राजनेताओं का एक सूत्री कार्यक्रम है कि उन्हें सत्ता कैसे हासिल हो?
इन दो पाटों के बीच में आम जनता पिस रही है और मां भारती खून के आंसू बहा रही है। वो बिलख-बिलख कर कह रही हैं कि कहां हैं मेरे प्यारे महात्मा गांधी, बच्चों के चाचा जवाहरलाल नेहरू, आजादी के दीवाने सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह ....? जिन्होंने मुझे अंग्रेजों की कैद से तो आजादी दिला दी, लेकिन अपनों के हाथों घुट-घुटकर जीने को छोड़ दिया।अरे, मेरे बच्चों कोई तो मेरे इन लालों के आदर्शों पर चलो, उनके स्वप्नों को साकार करो। जीवनभर उनके बताए मार्गों पर नहीं चल सकते तो दो-चार कदम ही बढ़ो। इतने में ही मेरा मान-सम्मान बढ़ सकेगा और मेरे ऊपर आए नक्सलवाद, आतंकवाद, दंगा, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, धर्म, भाषा व क्षेत्रवाद की मुसीबतें टल जाएंगी।देशवासियों के सामने एक प्रश्न यह भी है कि आखिर हम क्यों पी रहे हैं, पानी खरीदकर? प्रकृति प्रदत्त हवा, पानी पर तो सभी का समान अधिकार है। फिर कौन लोग हैं जो पानी बेच रहे हैं? लोग आखिर क्यों खरीद रहे हैं, पानी? सरकार क्या कर रही हैं।