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Written By Author राकेशधर द्विवेदी

एक निवेदन गणतंत्र दिवस पर

एक निवेदन गणतंत्र दिवस पर - Gantantra Divas Kavita
अंधेरा धरा पर छाया हुआ है
निशा कब कटेगी नहीं कुछ पता है
सूर्य अपनी डगर पर यूं ही खड़ा है
हर व्यक्ति परेशान अधीर खड़ा है
 

 
 
 
 
स्वप्न देखे हैं जाते पर पूरे न होते
रात्रि सा है ये जीवन सवेरे न होते
कभी जिंदगी में दिवाली न मनती
लिख सके जो दर्द को रोशनाई न बनती
 
कलम है परेशां और पुरुषार्थ थका है
मनोबल तो लगता है ठगा सा खड़ा है
है रावण यहां पर विजेता बना है
रघनंदन तो अब कहानियों में छुपा है
 
है न कोई नैतिक न नैतिकता बाकी
ईमानदारी‍ अब केवल कहानियों में सुनाई जाती
यह राष्ट्र की तस्वीर है निराली
यहां आम आदमी की हसरतें रह जाती अधूरी
 
मेरे नौजवान राष्ट्रवासियों इस निशा से उबारो
इस गणतंत्र पर राष्ट्र की तस्वीर नए सिरे से संवारो।