शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. पौराणिक कथाएं
  4. Shani n Shiva Stories
Written By

शनि त्रयोदशी व्रत पर जानिए शिव और शनि की 5 कथाएं

शनि त्रयोदशी व्रत पर जानिए शिव और शनि की 5 कथाएं - Shani n Shiva Stories
हिंदू धर्म के अनुसार हर माह त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस दिन प्रदोष व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की उपासना की जाती है। शनिवार के दिन प्रदोष व्रत आता है तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। शनि प्रदोष व्रत के दिन ये कथाएं अवश्य ही पढ़ी चाहिए। 
 
1. शिव पर वक्र दृष्टि- 
 
कथा के अनुसार एक बार शनि देव भगवान शिव के धाम हिमालय पहुंचे। उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया, 'हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात् मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर हतप्रभ रह गए और बोले, 'हे शनिदेव! आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे।'
 
 
शनिदेव बोले, 'हे नाथ! कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। शनिदेव की बात सुनकर भगवन शिव चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।'
 
शनि की दृष्टि से बचने हेतु अगले दिन भगवन शंकर मृत्युलोक आए। भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा तथा शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा, अब दिन बीत चुका है और शनि देव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा। इसके उपरांत भगवान शंकर पुनः कैलाश पर्वत लौट आए। 
 
भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे उन्होंने शनि देव को उनका इंतजार करते पाया। भगवान शंकर को देख कर शनि देव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान शंकर मुस्कराकर शनि देव से बोले, 'आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।' यह सुनकर शनि देव मुस्कराए और बोले, 'मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए।'

 
यह सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित रह गए। शनिदेव ने कहा, मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र बन गए। शनि देव की न्यायप्रियता देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और शनिदेव को हृदय से लगा लिया।

2. शनि प्रदोष कथा- 
 
प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।

 
अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।
 
साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई। 
 
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार। शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार। शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधि नमस्कार। उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।
 
दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ-सेठानी ने शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और संतान सुख पाकर उनका जीवन खुशियों से भर गया।

3. शिव का बाल रूप- 
 
विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा में भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है। इस कथा के अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका कोई नाम नहीं है इसलिए वह रो रहा है। तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रूद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’।


शिव तब भी चुप नहीं हुए। इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नाम (रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से वे जाने गए। शिव पुराण के अनुसार यह नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।

 
शिव के इस प्रकार ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी विष्णु पुराण की एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के सिवा कोई भी देव या प्राणी नहीं था। तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे नजर आ रहे थे। तब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए।


ब्रह्मा-विष्णु जब सृष्टि के संबंध में बातें कर रहे थे तो शिव जी प्रकट हुए। ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। तब शिव के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा को शिव की याद दिलाई। ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा। शिव ने ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया। जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया। अत: ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक शिव बच्चे के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए।

4. शिव का वृषभ अवतार- 
 
देवो के देव महादेव की महिमा का कोई पार नही है शांति बनाए रखने के लिए शिव ने अपने ही पुत्र का वध कर दिया था। ब्रह्मांड की रक्षा के लिए भगवान विष्णु मां दुर्गा और शिव हमेशा तैयार रहते हैं। नों लोकों की रक्षा के लिए भगवान शिव को ‘वृषभ अवतार’ यानी बैल रूप भी धारण करना पड़ा।
 
शिव महापुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले अमृत को धारण करने के लिए देवताओं और दानवों में भीषण युद्ध हुआ भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धर के दानवों को छल से अमृत का पान करने से रोक लिया इस छल से आहत होकर वे फिर से देवताओं से लड़ने लगे पर फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा दानव भागते-भागते पाताल लोक तक चले गए भगवान विष्णु ने उनका वहां तक पीछा किया।

 
पाताल लोक में दानवों की कैद में शिव की भक्त अप्सराएं थी जिन्हें भगवान विष्णु ने मुक्त करवाया। विष्णु की मनोहर छवि पर सभी मोहित हो गई और शिव से उन्हें अपनी पति रूप में मांगने लगी। शिव ने अपनी माया से भगवान विष्णु को उनका पति बना दिया कुछ दिन भगवान विष्णु पाताल लोक में रुके और वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे। कुछ सालों बाद विष्णु जी के उन अप्सराएं से पुत्रों का जन्म हुआ पर यह सभी दानवीय अवगुणों वाले थे।

 
उन्होंने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। सभी देवी देवता भगवान शिव की शरण में गए और समाधान मांगने लगे। भगवान शिव ने तब वृषभ अवतार धारण किया और पाताल लोक पहुंच कर एक-एक करके विष्णु के सभी दंडी पुत्रों का संहार करने लगे। इस तरह भगवान शिव के वृषभ अवतार ने इस ब्रह्मांड को विष्णु के दानवीय पुत्रों से बचाया।

5. शनि जन्म कथा- 
 
कथा के अनुसार भगवान शनि देव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है। लेकिन स्कंद पुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं लेकिन इसके पीछे एक कहानी है। 
 
राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्य देवता के साथ हुआ। संज्ञा सूर्य देव के तेज से परेशान रहती थी तो वह सूर्य देव की अग्नि को कम करने का सोचने लगी। दिन बीतते गए और संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतानों को जन्म लिया। फिर संज्ञा ने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्य देव के तेज को किसी भी तरह से कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन और सूर्य देव को इसकी भनक न लगे इसके लिए उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी ही तरह की एक महिला को पैदा किया और उसका नाम संवर्णा रखा। 
 
यह संज्ञा की छाया की तरह थी इसलिए इनका नाम छाया भी हुआ। संज्ञा ने छाया से कहा कि अब से मेरे बच्चों और सूर्य देव की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिए। यह कहकर संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पंहुची तो पिता ने कहा कि ये तुमने अच्‍छा नहीं किया, तुम पुन: अपने पति के पास जाओ। 
 
जब पिता ने शरण नहीं दी तो संज्ञा वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण करके तपस्या में लीन हो गई। उधर सूर्य देव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं संवर्णा है। संवर्णा अपने नारी धर्म का पालन करती रही और छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्य देव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्य देव और संवर्णा के संयोग से भी मनु, शनि देव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।

कहते हैं कि जब शनि देव छाया के गर्भ में थे, तब छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनि देव पर भी पड़ा। फिर जब शनि देव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्य देव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।

 
मां के तप की शक्ति शनि देव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्य देव को देखा तो सूर्य देव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्य देव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने सूर्य देव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्य देव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। शनि के जन्म के बाद पिता ने कभी उनके साथ पुत्रवत प्रेम प्रदर्शित नहीं किया। इस पर शनि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। 
 
जब भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो शनि ने कहा कि पिता सूर्य ने मेरी माता का अनादर कर उसे प्रताड़ित किया है। मेरी माता हमेशा अपमानित व पराजित होती रही। इसलिए आप मुझे सूर्य से अधिक शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान दें। तब भगवान शिव जी ने वर दिया कि साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे। तुम नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। 

प्रस्तुति एवं संकलन- आरके.