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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
Last Updated : गुरुवार, 10 जुलाई 2014 (12:53 IST)

धर्म और युद्ध बनाम धर्मयुद्ध

विवादों का नहीं समझने का विषय है ...

धर्म और युद्ध बनाम धर्मयुद्ध -
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न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं...सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जाएँगे। यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं, फिर इनका शोक क्यों करते हो। - गीत

धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद, इन तीनों तरह के शब्दों के अलग-अलग अर्थ हैं। धर्मयुद्ध का अर्थ होता है सत्य और न्याय के लिए युद्ध करना। क्रूसेड का अर्थ क्रूस अर्थात ईसाईयत के लिए युद्ध करना। जिहाद का अर्थ इस्लाम के लिए संघर्ष माना गया है। फिर भी इसके विषय में कुछ भी कहना विवाद का विषय ही माना जाता रहा है।

हिंदू धर्मयुद्ध:
विश्व इतिहास में महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता है। आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी। तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है।

दुर्योधन इत्यादि को समझाने का कई बार प्रयत्न किया गया था। एक बार महाराज द्रुपद के पुरोहित उसे समझाने गए। दूसरी बार देश के प्रमुख ऋषियों और भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र और गांधारी ने भी समझाने का प्रयत्न किया और तीसरी बार श्रीकृष्ण स्वयं हस्तिनापुर गए थे। इस सबके उपरांत जब सत्य, न्याय और धर्म के पथ को उसने ठुकरा दिया तब फिर दुर्योधन और उसके सहयोगियों को शरीर से वंचित करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचा। सत्य और न्याय की रक्षा के लिए युद्ध न करने वाला या युद्ध से डरने वाला पापियों का सहयोगी कहलाता है।

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महाभारत में जिस धर्मयुद्ध की बात कही गई है वह किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं बल्कि अधर्म के खिलाफ युद्ध की बात कही गई है। अधर्म अर्थात सत्य, अहिंसा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के विरुद्ध जो खड़ा है उसके‍ खिलाफ युद्ध ही विकल्प है।

विभीषण के अलावा अन्य ऋषियों ने रावण को समझाया था कि पराई स्त्री को उसकी सहमति के बिना अपने घर में रख छोड़ना अधर्म है, तुम तो विद्वान हो, धर्म को अच्छी तरह जानते हो, लेकिन रावण नहीं माना। समूचे कुल के साथ उसे मरना पड़ा।
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ईसाई क्रूसेड:
क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ईसा के लिए युद्ध। ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच सात बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है।

उस काल में इस भूमि पर मुसलमानों ने अपना आधिपत्य जमा रखा था, जबकि इस भूमि पर मूसा ने अपने राज्य की स्थापना की थी। ईसाई, यहूदी और मुसलमान तीनों ही धर्म के लोग आज भी उस भूमि के लिए युद्ध जारी रखे हुए हैं।

मुस्लिम जेहाद:
वैसे तो पवित्र पुस्तक कुरान में जिहाद का जिक्र मिलता है। जिहाद तो मोहम्मद सल्ल. के समय से ही जारी है, किंतु 11वीं सदी की शुरुआत में जैंगी ने पहली बार लोगों को जिहाद के लिए इकट्ठा किया था। सीरिया को एकजुट कर उसने वहाँ से ईसाइयों को खदेड़कर इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की। तभी से जिहाद शब्द प्रचलन में आया।

जैंगी से जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में पहला 'क्रूसेड' माना जाता है। जैंगी के बाद नूरुद्दीन ने यरुशलम पर कब्जा करके समूचे क्रूसेडरों को क्रुद्ध कर दिया था। नूरुद्दीन के बाद जिहाद की कमान सलाउद्दीन के हाथ में आ गई, तो उधर क्रूसेड की कमान इंग्लैंड के राजा रिचर्ड प्रथम के हाथ में। दोनों के बीच 1191 में जबरदस्त जंग हुई। रिचर्ड ने सभी खोए हुए राज्य वापस हथिया लिए, लेकिन यरुशलम में सलाउद्दीन ने उसे पुन: इंग्लैंड लौटने पर मजबूर कर दिया।

जिहाद की व्याख्या, अर्थ या विचार को विवादित ही माना जाता रहा है। अरबी भाषा के इस शब्द के अर्थ का आज अनर्थ हो चला है। किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं हजरत मोहम्मद साहब ने मानव बुराइयों और जालिमों के खिलाफ जिहाद किया था।

धर्मयुद्ध क्या है?
  जिहाद की व्याख्या, अर्थ या विचार को विवादित ही माना जाता रहा है। अरबी भाषा के इस शब्द के अर्थ का आज अनर्थ हो चला है। किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं हजरत मोहम्मद साहब ने मानव बुराइयों और जालिमों के खिलाफ जिहाद किया था।      
धर्म और सम्प्रदाय में फर्क है। धर्म का अर्थ न्याय, सत्य, स्वभाव, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अस्मिता से है जबकि हिंदू, मुसलमान, ईसाई या बौद्ध सम्प्रदाय है। न्याय, सत्य, स्वभाव, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध करना ही धर्मयुद्ध है। अर्थात अधर्म के खिलाफ युद्ध ही धर्मयुद्ध है।

जीवन में धर्मयुद्ध का होना आवश्यक है। इससे चेतना का विकास होता है। चेतना अर्थात आत्म विकास का आधार है धर्मयुद्ध। स्वयं की बुरी आदतों और बुरे तथा जालिम लोगों के खिलाफ किसी भी स्तर पर अंत तक लड़ना ही धर्मयुद्ध है।