गुरुवार, 28 मार्च 2024
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आत्मा का परमात्मा से योग कैसे?

आत्मा का परमात्मा से योग कैसे? - आत्मा का परमात्मा से योग कैसे?
वर्तमान में आत्मा और परमात्मा जैसे शब्द सारहीन प्रतीत होने लगे हैं। इसका मुख्य कारण धर्माचार्यों द्वारा गलत ढंग से धर्म को प्रचारित करना और धर्म के नाम पर धन एकत्रित करना है। साथ ही साथ धार्मिक कट्टरता ने तो धर्म के मूल स्वरूप को ही दिशाहीन कर दिया है। 

आत्मा प्रत्येक प्राणीमात्र में परमात्मा का प्रतिबिंब (चैतन्य लहरियों के रूप में) विद्यमान है। जब यह जागृत होकर ब्रह्मरन्ध्र (तालू क्षेत्र) को भेदकर सर्वव्यापी परमात्मा के निराकार, निर्गुण स्वरूप परम चैतन्य में मिलती है तब इसे 'योग' कहते हैं और यह संपूर्ण घटना 'आत्म साक्षात्कार' कहलाती है। इसे ही 'पुनर्जन्म' कहा गया है। 
 
चूंकि प्रत्येक धर्म में मनुष्य के पुनर्जन्म की बात कही गई है इसलिए मानव के उत्थान हेतु अतिआवश्यक है। इसका प्रमाण चैतन्य लहरियों का सिर के तालू भाग और हाथों पर शीतल रूप में अनुभव है। यह एक वास्तविक घटना है जिसे घटित होना पड़ता है, न कि कोई कपोल-कल्पित बात या प्रवचन मात्र है। यह घटना केवल मानव शरीर स्थित कुण्डलिनी के जागरण से ही संभव है। 
 
वास्तव में कुण्डलिनी जागरण एक जीवंत क्रिया है, जो सहज में घटित होती है और अंतर्परिवर्तन द्वारा उत्थान का मार्ग है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, लिंग, उम्र का हो- के लिए यह परम आवश्यक है। केवल कुण्डलिनी जागरण द्वारा ही मानव के अंतःस्थित धर्म जागृत होकर अंतरपरिवर्तन कर सकता है और मानव के नैतिक पतन को अवरोधित कर सकता है। 
 
इसी से केवल मानव जाति का उत्थान संभव है,परंतु आवश्यक है विशाल रूप में सामूहिक कुण्डलिनी जागृति और उसके अभ्यास की। केवल गृहस्थ जीवन में सर्वसाधारण रूप में रहते हुए बिना किसी त्याग के इसे अपने अंदर पाना है तभी हम धर्म के वास्तविक मर्म को जान पाएंगे। 
 
प्रस्तुति : रजनीश