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पैगंबर हजरत मोहम्मद लाए थे संपूर्ण धर्म

पैगंबर हजरत मोहम्मद लाए थे संपूर्ण धर्म - Paigambar Mohammad Sahab
पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्ल
 

हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का जन्म छठी सदी ईसवीं में मक्का में हुआ। उस समय दुनिया भर में औरतों की स्थिति दयनीय थी। खुद अरब में नवजात बेटियों को जिंदा दफन करने की परंपरा थी। पैगंबर हजरत मोहम्मद जो धर्म लेकर आए थे, उसे संपूर्ण कहा गया है। संपूर्ण इस मायने में कि इसमें मानव जीवन से जुड़े हर पहलू की बाबत बताया गया है। इन पहलुओं में औरतों से संबंधित आदेश भी हैं।
 
कुरआन में इस बाबत आया है कि और (इनका हाल यह है कि) जब इनमें किसी को बेटी होने की शुभ-सूचना मिलती है, तो उसके चेहरे पर कलौंस छा जाती है और वह जी ही जी में कुढ़कर रह जाता है। जो शुभ-सूचना उसे दी गई वह ऐसी बुराई की बात हुई कि लोगों से छुपता-फिरता है, सोचता है : अपमान स्वीकार करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। क्या ही बुरा फैसला है जो ये करते हैं। (सूरः नहल : 58-59)
 
इस घृणित परंपरा को खत्म कराने का सहरा हजरत मोहम्मद के सर बंधता है। यही नहीं आपने विभिन्न अवसरों पर औरतों को उनका पूरा हक देने, उनसे अच्छा बर्ताव करने तथा पूरा खयाल रखने के बारे में हिदायतें दीं। बेटियों के बारे में वे कहते हैं वह औरत बरकत वाली है जो लड़की को पहले जन्म दे। इसी तरह आपने बेटियों को मां-बाप का दुख बांटने वाली ठहराते हुए कहा कि बेटियों को नापसंद न करो, बेशक बेटियां गमगुसार हैं और अजीज।
 
लड़का-लड़की के बीच भेदभाव को भी आपने गलत करार दिया। इस बारे में एक घटना का जिक्र करना बेहतर होगा। पैगंबर हजरत मोहम्मद के साथी हजरत अनस बिन मालिक फरमाते हैं कि एक शख्स आपके पास बैठा था कि उसका बेटा आया। उसने बेटे को बोसा दिया और अपनी गोद में बिठा लिया। फिर उसकी बच्ची आई जिसे उसने अपने सामने बिठाया। रसूल ने फरमाया तुमने इन दोनों (बेटे और बेटी) के दरमियान बराबरी से काम क्यों नहीं लिया।
 
और मां के बारे में तो आप सल्ल. ने जो फरमाया वह दिखाता है कि इस्लाम ने मां को क्या मुकाम दिया है। कुछ ताज्जुब नहीं कि इस मजहब में मां को बाप से बड़ा दर्जा दिया गया है। इस बाबत एक घटना बहुत मशहूर है। एक शख्स ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर पूछा कि या रसूलुल्लाह सबसे ज्यादा मेरे अच्छे व्यवहार का हकदार कौन है। आपने फरमाया तेरी मां। पूछा फिर कौन? फरमाया तेरी मां। उसने अर्ज किया फिर कौन। फरमाया तेरी मां। तीन दफा आपने यही जवाब दिया। चौथी दफा पूछने पर कहा तेरा बाप। (बुखारी शरीफ, किताबुल्अदब)
 
औरतों और इस्लाम को लेकर आज बहस छिड़ी हुई है। हजरत मोहम्मद सल्ल. के इस जन्मदिन पर क्या यह बेहतर न होगा कि इस्लाम ने औरतों को जो अधिकार दिए हैं, उनका विस्तार से अध्ययन किया जाए तथा उनमें से अच्छे निर्देशों को अपनाया जाए।
 
- मोहम्मद इब्राहीम कुरैशी