शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. आलेख
  4. religions
Written By
Last Updated : सोमवार, 31 जुलाई 2017 (07:21 IST)

इन 11 धर्मों का अस्तित्व खतरे में

इन 11 धर्मों का अस्तित्व खतरे में | religions
कोई धर्म या समुदाय सुरक्षित कब माना जाता है? इस सवाल का उत्तर सभी जानते हैं लेकिन सब अपने-अपने तरीके से उत्तर देना चाहेंगे। दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसमें से 2.2 अरब ईसाई और 1.6 मुसलमान हैं और लगभग इतने ही बौद्ध। पूरी दुनिया में ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और बौद्ध राष्ट्र अस्तित्व में हैं। उक्त धर्मों की छत्रछाया में कई जगहों पर अल्पसंख्‍यक अपना अस्तित्व खो चुके हैं या खो रहे हैं तो कुछ जगहों पर उनके अस्तित्व को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा भी ऐसे कई मामले हैं जिसमें उक्त धर्मों के दखल न देने के बावजूद वे धर्म अपना अस्तित्व खो रहे हैं। आओ जानते हैं कि ऐसे कौन से धर्म हैं? 
 
1. पारसी धर्म : पारसी समुदाय मूलत: ईरान का रहने वाला है। ईरान कभी पारसी राष्ट्र हुआ करता था। पारसियों में कई महान राजा, सम्राट और धर्मदूत हुए हैं। लेकिन चूंकि पारसी अब अपना राष्ट्र ही खो चुके हैं तो उसके साथ उनका अधिकतर इतिहास भी खो चुका है। पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म है। ईरान के बाहर मिथरेज्‍म के रूप में रोमन साम्राज्‍य और ब्रिटेन के विशाल क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हुआ। इसे आर्यों की एक शाखा माना जाता है।
 
6ठी सदी के पूर्व तक पारसी समुदाय के लोग ईरान में ही रहते थे। 7वीं सदी में खलीफाओं के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति होने के बाद उनके बुरे दिन शुरू हुए। 8वीं शताब्दी में फारस अर्थात ईरान में सख्ती से इस्लामिक कानून लागू किया जाने लगा जिसके चलते बड़े स्तर पर धर्मांतरण और लोगों को सजाएं दी जाने लगीं। ऐसे में लाखों की संख्‍या में पारसी समुदाय के लोग पूरब की ओर पलायन कर गए।
 
कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईस्वी में दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वे गुजरात में बस गए। गुजरात से कुछ लोग मुंबई में बस गए। भारत में प्रथम पारसी बस्ती का प्रमाण संजाण (सूरत निकट) का अग्नि स्तंभ है, जो अग्निपूजक पारसीधर्मियों ने बनाया। 1941 तक करीब 1.50 लाख की आबादी वाला पारसी समुदाय वर्तमान में 57,264 पर सिमट गया है।
 
2. यहूदी धर्म : आज से करीब 4,000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इसराइल का राजधर्म है। एक समय था, जब यहूदी मिस्र से लेकर इसराइल तक संपूर्ण अरब में निवास करते थे। कहते हैं कि मिस्र की नील नदी से लेकर इराक की दजला-फरात नदी के बीच आरंभ हुए यहूदी धर्म का इसराइल सहित अरब के अधिकांश हिस्सों पर राज था। ऐसा माना जाता है कि पहले यहूदी मिस्र के बहुदेववादी इजिप्ट धर्म के राजा फराओ के शासन के अधीन रहते थे। बाद में मूसा के नेतृत्व में वे इसराइल आ गए। ईसा के 1,100 साल पहले जैकब की 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने थे, जो 2 गुटों में बंट गए। पहला जो 10 कबीलों का बना था, वह इसराइल कहलाया और दूसरा जो बाकी के 2 कबीलों से बना था, वह जुडाया कहलाया।
 
7वीं सदी में इस्लाम के आगाज के बाद यहूदियों की मुश्किलें और बढ़ गईं। तुर्क और मामलुक शासन के समय यहूदियों को इसराइल से पलायन करना पड़ा। अंतत: यहूदियों के हाथ से अपना राष्ट्र जाता रहा। मई 1948 में इसराइल को फिर से यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया। दुनियाभर में इधर-उधर बिखरे यहूदी आकर इसराइली क्षेत्रों में बसने लगे। वर्तमान में अरबों और फिलिस्तीनियों के साथ कई युद्धों में उलझा हुआ है एकमात्र यहूदी राष्ट्र इसराइल। अब यहूदियों की संख्या दुनियाभर में 1.4 करोड़ के आसपास सिमट गई है। दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी मात्र 0.20 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि यहूदी धर्म से ही ईसाई और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति मानी गई है।
 
3. यजीदी : यजीदी धर्म प्राचीन विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार यजीदी धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा माना जाता है। 
 
इराक में चरमपंथी संगठन आईएस के कारण अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के लोगों को अपना देश छोड़कर अन्य जगहों पर जाना पड़ा। अपने ही देश को छोड़कर जाने वाले यजीदियों की संख्या करीब 10 लाख बताई जाती है, जबकि इससे ज्यादा इराक में ही दर- बदर होकर घूम रहे हैं या फिर मारे गए हैं। आईएस के लड़ाकों ने सैकड़ों लोगों की हत्या की और उनके सिर कलम कर दिए। सैकड़ों महिलाओं और लड़कियों को वे अपने साथ ले गए और उन्हें अपना सेक्स गुलाम बनाकर रखा है। यजीदी समुदाय ने अपनी आंखों के सामने उनके ही समुदाय के लोगों का जनसंहार देखा है। अब वे शरणार्थी शिविरों में रहकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।
 
4. जैन धर्म : जैन धर्म भारत का सबसे प्राचीन धर्म है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे। भगवान बुद्ध के अवतरण के पूर्व तक जैन धर्म देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म था। अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म प्रमुख धर्म था लेकिन धीरे-धीरे इस धर्म के मानने वालों की संख्‍या घटते गई। इसके पीछे कई कारण रहे हैं। इस्लामिक काल के दौरान जब दमन चक्र प्रारंभ हुआ तो सबसे ज्यादा जैन और बौद्ध मंदिरों को निशाना बनाया गया था, क्योंकि उक्त धर्म के भारत में सबसे ज्यादा और सुंदर मंदिर हुआ करते थे।
 
मुगल शासनकाल में हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को आक्रमणकारी मुस्लिमों ने निशाना बनाकर लगभग 70 फीसदी मंदिरों का नामोनिशान मिटा दिया। दहशत के माहौल में धीरे-धीरे जैनियों के मठ टूटने एवं बिखरने लगे लेकिन फिर भी जै‍न धर्म को समाज के लोगों ने संगठित होकर बचाए रखा। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन दुख की बात है कि आज उक्त धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या देशभर में लगभग 42 से 43 लाख के आसपास ही है।
 
5. सिख : 14वीं सदी के मध्य में प्रकट हुआ सिख धर्म भारत का प्रमुख धर्म है। सिख धर्म के कारण ही उत्तर भारतीय हिन्दू जाति को अपने अस्तित्व को बचाए रखने में मदद मिली। पंजाब, सिख धर्म का प्रमुख क्षेत्र है लेकिन विभाजन करने वालों ने पंजाब के 2 टूकड़े करके इस धर्म को धर्मसंकट में डाल दिया। वर्तमान में सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है।
 
कहते हैं कि सिख धर्म के गुरु, गुरु नानकदेवजी से ही हिन्दुस्तान को पहली बार 'हिन्दुस्तान' नाम मिला। लगभग 1526 में बाबर द्वारा भारत पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार 'हिन्दुस्तान' शब्द का उच्चारण हुआ था- 'खुरासान खसमाना कीआ, हिन्दुस्तान डराईआ।'
 
6. बहाई धर्म : इस्लामिक कट्टरता के दौर में लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए ईरान में बहाई धर्म की स्थापना हुई। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने 18वीं-19वीं शताब्दी में ऐसे समय में, जब मानवता की दशा सोचनीय थी, अपने राजसी परिवार के सुखों व ऐशो-आराम का त्याग कर अपने जीवन में घोर कठिनाइयां सहन कीं और मानवता नवजीवन में संचारित हो सके तथा एकता की राह में आगे बढ़ सके, इसके लिए प्रयास किए, लेकिन उनका समाज कट्टरता का शिकार हो गया। अब बहाई समुदाय के लोग भारत में ही रहते हैं।
 
1844 में जन्मे बहाई धर्म पर प्रारंभ से ही ईरान में हिंसा व बहाइयों पर अत्याचार होता आ रहा है। सन् 1979 में जब से ईरान में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना हुई है, तब से बहाइयों पर हमले तेजी से बढ़े हैं। 1979 और 1988 के बीच करीब 200 बहाई मारे गए, उनकी हत्या कर दी गई या फिर अचानक सरकार द्वारा लापता करार कर दिए गए। लगातार हुए दमनचक्र के चलते अधिकतर बहाइयों ने भारत में शरण ले ली और अब वे यहीं के नागरिक कहलाते हैं। पारसी के बाद बहाई भी ईरानी मूल के हैं। दिल्ली का लोटस टेम्पल बहाई धर्म के विश्व में स्थित 7 मंदिरों में से एक है। आज लगभग 20 लाख बहाई भारत देश की महान विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
 
7. अहमदिया धर्म : मुसलमानों को कट्टरता के दौर से बाहर निकालने के उद्देश्य से ही अहमदिया संप्रदाय की स्थापना 1889 ई. में पंजाब के गुरदासपुर के कादिया नामक स्थान पर हुई थी। अहमदिया आंदोलन की स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी। मिर्जा ग़ुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक 'बराहीन-ए-अहमदिया' में अपने सिद्धांतों की व्याख्या की है।
 
विभाजन के बाद अधिकतर अहमदिया पाकिस्तान को अपना मुल्क मानकर वहां चले गए, लेकिन विभाजन के बाद से ही वहां उन पर जुल्म और अत्याचार होने लगे, जो धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच गए। इस्लामिक विद्वान इस संप्रदाय के लोगों को मुसलमान नहीं मानते। पाकिस्तान में अब इन लोगों का अस्तित्व खतरे में है।
 
देश के दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय अहमदिया को कानूनी रूप से गैरमुस्लिम करार दिया गया है। उन्हें न केवल काफिर करार दिया गया बल्कि उनसे उनके सारे नागरिक अधिकार भी छीन लिए गए हैं। वे अपनी इबादतगाहों को मस्जिद भी नहीं कह सकते। 28 मई 2010 को जुम्मे की नमाज के दौरान अल्पसंख्यक अहमदिया संप्रदाय की 2 मस्जिदों पर एकसाथ हमले हुए। इस हमले में 82 लोग मारे गए। इसके बाद उन पर लगातार हमले होते रहे हैं। वर्तमान में कुछ अहमदियों का समूह पलायन करके चीन की सीमा पर शरणार्थी बनकर जीवन जी रहा है और बाकी अपने अस्तित्व को खत्म होते देख रहे हैं। पाकिस्तान में लगभग 25 लाख से ज्यादा अहमदिया रहते हैं।
 
8. दाऊदी बोहरा धर्म : बोहरा समुदाय के 2 पंथ हैं- एक दाऊदी बोहरा और दूसरा सुलेमानी बोहरा। दाऊदी भारत में रहते हैं, तो सुलेमानी यमन में। दाऊदी बोहरा वो कहलाता है, जो इस्माइली शिया फिकह को मानता है और इसी विश्वास पर कायम है। अंतर यह है कि दाऊदी बोहरा 21 इमामों को मानते हैं। बोहरा भारत के पश्चिमी क्षेत्र खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं जबकि पाकिस्तान और यमन में भी ये मौजूद हैं। 
 
उल्लेखनीय है कि पूरी दुनिया में बोहरा समाज के नागरिकों की संख्या लगभग 12 लाख 60 हजार है। इनमें से 10 लाख 25 हजार नागरिक भारत में निवास करते हैं। हालांकि दाऊदी बोहरा समाज पर अस्तित्व का कोई संकट नहीं है लेकिन विश्व में उनकी जनसंख्‍या कम है और वे भारत में सबसे ज्यादा महफूज है।
 
9. शिंतो : यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या अब सिर्फ 40 लाख के आसपास है। जापान के शिंतो धर्म की ज्यादातर बातें बौद्ध धर्म से ली गई थीं फिर भी इस धर्म ने अपनी एक अलग पहचान कायम की थी। इस धर्म की मान्यता थी कि जापान का राजपरिवार सूर्य देवी 'अमातिरासु ओमिकामी' से उत्पन्न हुआ है। उक्त देवी शक्ति का वास नदियों, पहाड़ों, चट्टानों, वृक्षों कुछ पशुओं तथा विशेषत: सूर्य और चन्द्रमा आदि किसी में भी हो सकता है।
 
10. अफ्रीका के पारंपरिक धर्म : अफ्रीका में कई पारंपरिक धर्म अस्तित्व में हैं लेकिन अब इस्लामिक कट्टरता और ईसाई वर्चस्व के दौर के चलते उनका अस्तित्व लगभग खत्म होता जा रहा है। विश्व की आबादी में इस तरह के पृथक धर्म की आबादी लगभग 5.59 फीसदी है अर्थात इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है। इन्हीं धर्मों में सबसे ज्यादा प्रचलित है एक धर्म वुडू।
 
इसे पूरे अफ्रीका का धर्म माना जा सकता है, लेकिन कै‍रिबीय द्वीप समूह में आज भी यह जादू की धार्मिक परंपरा जिंदा है। इसे यहां वूडू कहा जाता है। हाल-फिलहाल बनीन देश का उइदा गांव वूडू बहुल क्षेत्र है। यहां सबसे बड़ा वूडू मंदिर है, जहां विचित्र देवताओं के साथ रखी हैं जादू-टोने की वस्तुएं। धन-धान्य, व्यापार और प्रेम में सफलता की कामना लिए अफ्रीका के कोने-कोने से यहां लोग आते हैं। नाम कुछ भी हो, पर इसे आप आदिम धर्म कह सकते हैं। इसे लगभग 6,000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना धर्म माना जाता है। ईसाई और इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद इसके मानने वालों की संख्या घटती गई और आज यह पश्चिम अफ्रीका के कुछ इलाकों में ही सिमटकर रह गया है। 
 
11. हिन्दू : एक जानकारी के मुताबिक पूरी दुनिया में अब मात्र 13.95 प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं। नेपाल कभी एक हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था लेकिन वामपंथ के वर्चस्व के बाद अब वह भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। कभी दुनिया के आधे हिस्से पर हिन्दुओं का शासन हुआ करता था, लेकिन आज कहीं भी उनका शासन नहीं है। अब वे एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां के कई हिस्सों से ही उन्हें बेदखल किए जाने का क्रम जारी है, साथ ही उन्हीं के उप संप्रदायों को गैर-हिन्दू घोषित कर उन्हें आपस में बांटे जाने का काम भी जारी है। अब भारत में भी यह जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है।