गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

हिन्दू और जैन इतिहास की रूपरेखा

जरूरत है धर्म के व्यवस्थीकरण की

हिन्दू और जैन इतिहास की रूपरेखा -
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सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कारण हिन्दू और जैन धर्म व संस्कृति का एक विस्तृत और व्यवस्थित इतिहास अभी तक नहीं लिखा गया है। जो ‍कुछ लिखा हुआ था उसे गुलाम भारत के शासकों ने नष्ट कर दिया। यही कारण रहे हैं कि हिन्दू धर्म में बिखराव, भ्रम और विरोधाभास के तत्व ही अधिक नजर आते हैं। आओ जानते हैं कि इतिहास का क्रम क्या है।

आधुनिक युग में जिन लोगों ने थोड़ा-बहुत इतिहास लिखा भी है तो उनके इतिहास को पढ़ने की फुर्सत नहीं है और वह भी इस कदर है कि समझने की मशक्कत करना होती है। जबकि गुप्तकाल में जिन कतिपय ब्राह्मणों या अन्य ने इतिहास लिखा है तो उन्होंने अपने इतिहास पुरुषों के आसपास कल्पना के पहाड़ खड़े कर दिए जिससे उक्त पुरुष के होने के प्रति अब संदेह होता है।

जब हम धर्म का इतिहास पढ़ने या लिखने का प्रयास करते हैं तो मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं क्योंकि जो बातें हिन्दू धर्म के पुराणों में लिखी गई हैं उससे हटकर वही बातें जैन पुराणकारों ने भी लिखी हैं। पुराणों में इतिहास को खोजना थोड़ा मुश्किल तो है ही। तब हमें दोनों ही धर्म के एक निश्चित काल तक के स‍‍म्मिलित इतिहास को समझना होगा तभी सच सामने होगा।

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प्रारंभिक काल : आदिकाल को जैन इतिहासकार भोगभूमि कहते हैं जबकि मानव जंगल में रहकर जंगली पशुओं की तरह था। ग्राम या नगर नहीं होते थे। मानव के लिए वृक्ष ही घर और वृक्ष ही उसकी आजीविका और पोशाक थे। इसीलिए इस काल के वृक्षों को कल्पवृक्ष कहा जाता था जो उस काल की हर जरूरत पूरी करते थे। मानव में पाप-पुण्य, भाई-बहन, पति-पत्नी आदि रिश्तों का भाव नहीं था। हिरण या भैंसों के झुंड की तरह ही मानव रहता था, जहाँ शक्ति का जोर चलता था।

सुधार का काल : उक्त असामाजिक अवस्था को चौदह मनुओं ने सामाजिक व्यवस्था में क्रमश: बदला। ये जैन धर्म के कुलकर कहे गए हैं। उक्त चौदह कुलकरों ने ही मानव को हिंसक पशुओं से रक्षा करना, घर बनाना, ग्राम और नगर निर्माण कला, पशुपालन करना, भूमि और वृक्षों की सीमाएँ निर्धारित करना। नदियों को नौकाओं से पार करना, पहाड़ों पर सीढ़ियाँ, प्राकृतिक आपदाओं से बचाना, बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षण करना और अंतत: कृषि करना सिखाया। जैन इसे कर्मभूमि काल कहते हैं।

धर्म-विज्ञान काल : चौदह मनुओं के बाद जैन धर्म में क्रमश: 63 महापुरुष हुए जिन्हें शलाका पुरुष कहा जाता है। इन 63 में हिन्दू धर्म के कुछ महान पुरुष हुए हैं। इनसे ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, नीति, राजनीति, विज्ञान, दर्शन आदि ज्ञान का उद्भव और विकास हुआ। यादवकुल, कुरुकुल, पौरवकुल, इक्ष्वाकु वंश, अयोध्याकुल और अन्य राजाओं के कुल में जो भी महान पुरुष हुए हैं वे हिन्दुओं के लिए उतने ही पूजनीय रहे जितने कि जैनों के लिए, इसीलिए दोनों धर्म के सम्मिलित इतिहास पर विचार किया जाना जरूरी है। जैसे कि राजा जनक के पूर्वज, 'नमि' राजा जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर हुए। कृष्ण और नेमीनाथ दोनों चचेरे भाई थे।

बिखराव और संघर्ष : नमि-राम से कृष्ण-नेमी तक एकजुट रहा अखंड भारत महाभारत युद्ध से बिखराव के गर्त में चला गया। कुलों का बिखराव होने लगा। देश से एकतंत्र खत्म हो गया। युद्ध में मारे गए घर के मुखिया के कारण घर उजाड़ हो गए। विधवा और बच्चे दर-बदर भटकने लगे। अराजकता का दौर चल पड़ा। अखंड भारत बँट गया, हजारों छोटे-छोटे राज्यों में जहाँ के राजा वे हो गए जिनके पास दल-बल था। महाहिंसा के बाद ही हिंसा का नया दौर चला। नए धर्म और राष्ट्र अस्तित्व में आ गए। घोर हिंसा के कारण ही अहिंसा को बल मिला।

धर्म-सुधार-आंदोलन काल : बौद्धकाल में शिक्षा के वैश्विक केंद्रों की स्थापना हुई जिनमें तक्षशिला और नालंदा का स्थान प्रमुख है। बौद्धकाल में महावीर, बुद्ध और नाथों की क्रांति ने संपूर्ण विश्व पर अपना परचम लहराया। फिर से भारत को अखंड करने के लिए धर्मचक्र प्रवर्तन तथा चक्रवर्ती होने की होड़ हो चली। भव्य मंदिर और देवालय बनाए गए। विश्वभर में धर्म प्रचार किया गए। विश्वभर के विद्यार्थी पठन-पाठन के लिए भारत आने लगे थे। बौद्ध और गुप्तकाल को भारत का स्वर्णकाल कहा जाने लगा। इस काल में धर्म, विज्ञान, राजनीति, कला, साहित्य और तमाम तरह का ज्ञान अपने चरम पर था। शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट के बाद इस काल का पतन।

पतन काल : शक, हूण, मंगोल और कुशाणों ने भारत पर आक्रमण तो किया लेकिन यहाँ के धर्म और संस्कृति को नष्ट करने का कार्य कभी नहीं किया। ईस्वी 711 में अरब के सेनापति मोहम्मद बिन कासिम ने 50 हजार की सेना के साथ सिंध प्रान्त पर हमला करके देवल नामक बन्दरगाह को कब्जे में कर लिया। ईस्वी सन् 1001 में दुर्दान्त मजहबी उन्मादी मोहम्मद गजनवी ने आक्रमण किया। गजनवी यदुकुल के गजपत का वंशधारी था।

गजनवी के बाद गौरी। गौरी के बाद बाबर, औरंगजेब और मोहम्मद तुगलक आदि अरबों ने लगातार आक्रमण कर ग्रंथ जलाए, मंदिर तोड़े तथा भारत को लूटा। धर्मांतरित मुसलमानों द्वारा फिर धीरे-धीरे इस्लामिक सत्ता कायम की गई। भारतीय लोगों ने नए धर्म और नए विचार के साथ शासन चलाया। फिर इस शासन को भी अँग्रेजों ने उखाड़ फेंका। कुल सात सौ वर्ष की गुलामी के बाद भारत स्वतंत्र तो हो गया लेकिन अभी भी संघर्षरत और बिखरा हुआ है।

महाभारत से लेकर आज तक यह 'अपनों के खिलाफ अपनों का युद्ध' चल रहा है। जरूरत है कि इन युद्धों के इतिहास को छोड़कर हम हिन्दू और जैन धर्म के अरिहंतों का इतिहास लिखें। कहते हैं कि जिस कौम के पास अपने बुद्धपुरुषों का इतिहास नहीं उसका अस्तित्व ज्यादा समय तक कायम नहीं रहता।