गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. धर्म-दर्शन
  4. »
  5. आलेख
Written By WD

कण-कण में व्याप्त हैं भगवान

श्रेष्ठ है श्रीकृष्ण का माधुर्य भाव

कण-कण में व्याप्त हैं भगवान -
FILE

भगवान कण-कण में विराजमान हैं। यह बौद्धिकता है, किंतु परमात्मा को प्रकट करना हार्दिकता है। तन के लिए जीतना भोजन आवश्यक है, मन के लिए भजन उतना ही आवश्यक है, जैसे बिना भूख के समय होने पर भोजन कर लेते हैं, वैसे ही मन न लगने पर समय से भजन करें।

परमात्मा का मिलन संत की कृपा से होता है। राम-सुग्रीव का मिलन भगवान हनुमान जी जैसे संत ही करा सकते हैं। जब कोई काल से डरता है तो संत भगवान की स्मृति दिलाकर उसे निर्भय करते हैं। जब कोई भगवान से न डरे तो संत काल का भय दिखाकर उसमें भय उत्पन्न कर भगवान से जोड़ देते हैं।

विभीषण ने हनुमान जी में भगवान को देखा। भक्ति विज्ञान है, अंधविश्वास नहीं। जैसे पानी में बिजली है, इसको जानकार बिजली पैदा करते हैं, यह विज्ञान है। कण-कण में परमात्मा विराजमान हैं। यह भाव ही श्रेष्ठ है।

FILE
जिस प्रकार से सूर्योदय होने से घोर कोहरा छंट जाता है, उसी प्रकार भक्ति से पाप कर्म धुल जाता है। कितनी ही धर्मार्थ यात्रा, गंगा स्नान, यज्ञ, धर्म, पाठ कर लें, किंतु एक भक्ति ही उसे अपने अधीन बना लेती है।

सच्चे भक्त को कर्म-धर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। भगवान जिनके रोम-रोम में है, जिसके मुंह से सूर्य के समान ज्वालाएं निकल रही हैं, जिनमें अनंत मात्रा का ऐश्वर्य हो, ऐसे श्रीकृष्ण ही हैं। उनकी हमें पांच भावों - शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव की उपासना करनी चाहिए। इन सबमें श्रेष्ठ माधुर्य भाव ही है।

माधुर्य भाव ही सर्वाधिक सामिप्य है। इस भाव में हम प्रेयसी हैं, वे हमारे प्रियतम हैं, ऐसी भावना निरंतर रहती है। अब लौकिक उदाहरण के अनुसार जैसे प्रेयसी का संबंध पति से अत्यंत निकट का होता है, पुत्र का उससे कम, सखा का उससे कम, दास का उससे भी कम तथा प्रजा का संबंध कम निकट का होता है। हमें भगवान श्रीकृष्ण की माधुर्य भाव से भक्ति करनी चाहिए।
ये भी पढ़ें
प्रात: उठते ही सर्वप्रथम ये मंत्र पढ़ें, लाभ होगा