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Written By ND

पवित्र नगरी राजिम के प्रति सद्भाव जरूरी

मेले-मड़ई का होता है आयोजन

पवित्र नगरी राजिम के प्रति सद्भाव जरूरी -
- डॉ. परदेशीराम वर्मा
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पूर्णिमा को छत्तीसगढ़ी में पुन्नी कहते हैं। पुन्नी मेलों का सिलसिला लगातार चलता है जो भिन्न-भिन्न स्थानों में नदियों के किनारे सम्पन्न होते हैं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण युगों से इन मेलों में अपने साधनों से जाते और सगे-संबंधियों से मिलते हैं। छत्तीसगढ़ में धान कटाई के बाद लगातार मेले-मड़ई का आयोजन शुरू हो जाता है। मेलों में ही अपने बच्चों के लिए वर-वधू तलाशने की परंपरा भी रही है। छत्तीसगढ़ राज्य बना तो कुछ वर्षों बाद राजिम मेले में कुंभ आयोजनों को नया आयाम मिला।

यह एक दृष्टि से बड़ा काम भी है। देश के दूसरे प्रांतों में कुंभ स्नान के लिए लोग जाते हैं। छत्तीसगढ़ में भी कुंभ के लिए पवित्र नगरी राजिम को धीरे-धीरे चिह्नित किया गया। आज यह देशभर में विख्यात हो चला है। राजीव लोचन मंदिर में ब्राम्हण नहीं, बल्कि क्षत्रिय पुजारी हैं। यह एक अनुकरणीय परंपरा है। ब्राम्हणों ने क्षत्रियों को यह मान दिया। श्रीराम अर्थात राजीव लोचन जी स्वयं क्षत्रिय कुल में जन्मे। छत्तीसगढ़ ही है, जहाँ केवट समाज के लोग माता पार्वती अर्थात डिड़िनदाई के पारंपरिक पुजारी हैं।

पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने सतनामियों को जनेऊ देकर मंदिर प्रवेश कराया। यह छत्तीसगढ़ में ही संभव हुआ। समता की धरती छत्तीसगढ़ में समरसता का संस्कार पाकर पीढ़िया उदार बनीं। छत्तीसगढ़ के चम्पारण्य में जन्मे महाप्रभु वल्लाभाचार्य ने तीन बार पूरे देश का भ्रमण किया। वे आष्ठछाप के महाकवियों के गुरु थे। सूरदास जैसे महाकवि को उन्होंने दिशा देकर कृष्ण भक्ति काव्य का सिरमौर बनने हेतु प्रेरित किया। राजिम मेले के अवसर पर करीब ही बसे चम्पारण्य में भी महोत्सव का आयोजन होता है।

सिरपुर, आरंग, खरौद, शिवरीनारायण, रतनपुर में जो शिलालेख हैं उनमें छत्तीसगढ़ी भाषा के वैभवशाली गद्य हम पाते हैं। जाज्वल्यदेव की नगरी जांजगीर में भी मंदिर परिसर में भव्य महोत्सव का आयोजन होता है। छत्तीसगढ़ के कलाकार, गुणी साहित्यकार एवं लोकप्रिय कवि इन उत्सवों में भाग लेते हैं।

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राज्य बनने के बाद यह प्रेरक नवाचार प्रारंभ हुआ है। नदी और तालाबों का संजाल छत्तीसगढ़ की धरती को सरसब्ज बनाता है। धमधा में ही एक सौ बीस तालाब थे। सैकड़ों तालाब रायपुर में थे। कुम्हारी के पास स्थित कंडरका गाँव में सौ एकड़ का तालाब आज भी है। ऐसे स्थानों में मेले से छोटा आयोजन मंडई की छटा बिखरती है। नदी तीर मेला और तालाबों तथा अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों के गाँवों में मड़ई। देवबलौदा में कलशहीन पौराणिक शिवमंदिर है।

मिथुन मूर्तियों के लिए चर्चित इस मंदिर प्रांगण में भी अब शासन की पहल पर उत्सव होता है। यह गाँव नदी के पास नहीं बसा है। यहाँ एक तालाब है। तालाब के पास ही शिव मंदिर है जहाँ मेला लगता है। पिछले दिनों राजिम में नागा बाबाओं और सिरकिट्टी आश्रम के प्रमुख गोवर्धन महाराज के बीच जो तनावपूर्ण ले-दे मची उससे छत्तीसगढ़ियों को बहुत चिंता हुई है। संस्कृति मंत्री ने त्वरित कदम उठाकर मामले को ठंडा किया। राजिम की महत्ता को लगातार बढ़ाने की चिंता करने वाले संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने त्वरित कदम उठाकर सही व्यवस्था दी। सिरकिट्टी आश्रम पारंपरिक आश्रम है जहाँ स्थानीय विद्वान गोवर्धन महाराज अपने चेलों के साथ धर्मकार्य सम्पादित करते हैं।

यह सीधे-सादे छत्तीसगढ़ियों के लिए टेड़गा अर्थात टेढ़ा समय सिद्ध हो रहा है। जिन नागा साधुओं के लिए सारी शासकीय सुविधाएँ दी जा रही हैं वे संगठित शक्ति के बल पर शांतिप्रिछत्तीसगढ़ी पंडितों पर अनाचार करें यह शोभनीय नहीं है। ऐसी ही घटनाएँ क्षेत्र के लोगों में असहिष्णुता का बीज रोप देती हैं।

जब तक शांति, समता की महत्ता को बाहरी तत्व नहीं समझेंगे, ऐसी घटनाएँ घटेंगी। ऐसी घटनाएँ धीरे-धीरे धारणाएँ को आकार देती हैं। बद्धमूल धारणाएँ कलान्तर में विस्फोट की पीठिका तैयार करती हैं। इसलिए धार्मिक स्थलों पर दुबारा ऐसी घटनाएँ न घटें, यह पक्का प्रबंध जरूरी है। राजिम, सिरपुर या शिवरीनारायण विश्वप्रसिद्ध हो, यह चाहत छत्तीसगढ़ियों को कभी नहीं रही। छत्तीसगढ़ की समरसता की महत्ता को समझते हुए इसे अपने ही ढंग से अपनी परंपराओं के साथ जीने की सम्मानजनक स्थिति मिलनी चाहिए।

(लेखक साहित्यकार हैं।)