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Last Modified: बुधवार, 3 फ़रवरी 2021 (21:14 IST)

बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नंदीग्राम में लौटा हिंसा का दौर

बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नंदीग्राम में लौटा हिंसा का दौर - Violence returned to Nandigram before assembly elections in West Bengal
नंदीग्राम (पश्चिम बंगाल)। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण रोधी आंदोलन की काली यादें ताजा हो गई हैं, जब धान के खेतों में गुंडे-बदमाश लोगों को आतंकित करते हुए घूमा करते थे। पूर्वी मिदनापुर जिले के इस छोटे से शहर की शांति को बंदूक की गोलियों की आवाज एक बार फिर भंग करने लगी है, जहां भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच आए दिन हिंसक झड़प होती रहती है।

श्यामल मन्ना (62) का कहना है, पिछली तीन रातों से हम सो नहीं पाए हैं। नंदीग्राम में 2007-08 में हुए भूमि अधिग्रहण रोधी आंदोलन के दौरान मन्ना ने अपनी एक रिश्तेदार को खो दिया था और जब से शुभेंदु अधिकारी भाजपा में शामिल हुए हैं तब से मन्ना जैसे कई लोग परेशान हैं।

मन्ना ने कहा, पिछले दो सप्ताह से प्रतिदिन झड़प हो रही है। पहले हम केवल राजनीतिक हिंसा देखते थे लेकिन अब यह सांप्रदायिक भी हो गई है। धमाकों और बंदूक की गोलियों की आवाज ने हमारी नींद उड़ा दी है। यह सब नंदीग्राम आंदोलन की याद दिलाता है।

मन्ना के भतीजे गोकुल ने कहा कि उसने, उसकी पत्नी और बच्चों ने साथ बाहर निकलना छोड़ दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2007 में चर्चा में आए नंदीग्राम में तत्कालीन विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने भूमि अधिग्रहण रोधी आंदोलन का आगे बढ़कर नेतृत्व किया था, जिससे वाम मोर्चा सरकार की चूलें हिल गई थीं और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का उभार देखने को मिला था।

दस महीने चली राजनीतिक हिंसा में कई महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था और कई लोगों की हत्या हुई थी, जिसमें 14 लोग पुलिस की गोली से मारे गए थे। बनर्जी द्वारा इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद वर्तमान नंदीग्राम में भी उसी प्रकार के युद्ध की घोषणा का बिगुल सुनाई दे रहा है।

इसके साथ ही अधिकारी ने मुख्यमंत्री को कम से कम 50 हजार मतों से पराजित करने का ऐलान किया है।गोकुलपुर गांव की निवासी कविता मल का घर 2007 में जला दिया गया था। उन्हें आज नंदीग्राम में वैसे ही काले दिनों की आहट सुनाई दे रही है।

उन्होंने कहा, मुझे उस समय पांच गोलियां लगी थीं। भगवान की दया से मैं किसी प्रकार बच गई। 2011 में तृणमूल के सत्ता में आने के बाद, हमने सोचा था कि शांति कायम रहेगी, लेकिन अब लगता है कि हिंसा का दौर फिर से वापस आ गया है।

तत्कालीन वाम मोर्चे की सरकार द्वारा विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किए गए आंदोलन के दौरान 14 साल पहले, सोमा प्रधान (नाम परिवर्तित) के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। प्रधान ने कहा कि आज वह और उनका परिवार शाम होने के बाद घर से बाहर नहीं निकलता। उन्होंने कहा, हालात ठीक नहीं हैं। हमारे पड़ोसियों ने रात में नकाबपोश लोगों को घूमते हुए देखा है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ सप्ताह से दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की घटनाएं बढ़ गई हैं और तृणमूल तथा भाजपा के कार्यालयों में तोड़फोड़ और आगजनी की जा रही है। दोनों दलों के सूत्रों का कहना है कि अधिकारी और उनके भाई के भाजपा में शामिल होने के बाद स्थिति तेजी से बदली है।(भाषा)
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