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Last Modified: सोमवार, 19 अक्टूबर 2015 (16:40 IST)

मांस खाने वाले नहीं बन सकते राम, हनुमान

मांस खाने वाले नहीं बन सकते राम, हनुमान - Meat
हमारे देश में गंगा-जमुनी संस्कृति है और इसकी मिसाल है फैजाबाद के मुमताजनगर की रामलीला। यह रामलीला गत 50 सालों से हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बनी है। यहां पर मुस्लिमों की संख्या अधिक होने से यहां रामलीला के संचालन से लेकर पात्रों के अभिनय तक में मुस्लिमों का बोलबाला रहा है, लेकिन पिछले सालों से रामलीला के मुख्य किरदारों राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान जैसी भूमिकाओं निभाने के लिए मुस्लिम युवकों को मना कर दिया गया है। इसके पीछे मांस खाने की आदत को कारण बताया जा रहा है।   
 
 
रामलीला कमेटी के अध्यक्ष मजीद अली के अनुसार 'कुछ स्थानीय लोगों ने रामलीला में मुस्लिमों द्वारा लीड रोल करने पर ऐतराज जताया था। उनका कहना था कि मुस्लिम मांस खाते हैं इसलिए उन्हें भगवान का किरदार नहीं निभाना चाहिए। जब हमें उनकी आपत्तियों का पता चला तो हमने उनका समाधान कर दिया। वैसे इस फैसले से यहां की रामलीला को लेकर लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ बल्कि यह आज भी उतना ही है जितना कि 1963 में था।