शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. प्रादेशिक
  4. Dengu
Written By
Last Updated :इंदौर , बुधवार, 19 नवंबर 2014 (16:40 IST)

इंदौर में डेंगू का जोर, 99 मरीज

इंदौर में डेंगू का जोर, 99 मरीज - Dengu
इंदौर। डेंगू के प्रकोप में इजाफा होने से इस साल यहां इस घातक बुखार से पीड़ित लोगों की तादाद बढ़कर 99 हो चुकी है और इसके तीन मरीजों की मौत हो चुकी है। इस स्थिति के बावजूद डेंगू की जांच रिपोर्ट देरी से मिल रही है, जिससे स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
 
समेकित रोग निगरानी परियोजना (आईडीएसपी) की जिला इकाई के प्रभारी डॉ. जीएल सोढ़ी ने आज बताया कि प्रयोगशाला जांच में 9 पुरुषों और 5 महिलाओं के डेंगू से पीड़ित होने की पुष्टि हुई। इससे यहां इस साल डेंगू के मरीजों की तादाद बढ़कर 99 पर पहुंच गई।
 
उन्होंने बताया कि डेंगू के सभी 14 नए मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी है। बहरहाल, यह पहली बार नहीं है जब आईडीएसपी को मरीजों के डेंगू पॉजीटिव होने की जांच रिपोर्ट उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद प्राप्त हुई।

डेंगू की जांच रिपोर्ट देरी से मिलने के बारे में पूछे जाने पर सोढ़ी ने कहा कि जिले में मैक एलाइजा पद्धति से डेंगू की प्रामाणिक जांच की सुविधा केवल शासकीय महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में है। यह विभाग एक निश्चित संख्या में नमूने जमा कर मैक एलाइजा पद्धति की किट से डेंगू की जांच करता है।
 
मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अनीता मूथा ने बताया कि डेंगू की जांच के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मैक एलाइजा पद्धति की किट उन्हें केंद्र सरकार की मदद से पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के जरिए मुहैया कराई जाती है। 
 
उन्होंने कहा कि कई बार आपूर्ति में विलंब के चलते ये किट हमारे पास सीमित संख्या में उपलब्ध होती हैं। इसलिए हम आमतौर पर कम से कम 7.8 नमूने जमा होने पर किट का इस्तेमाल करते हैं, ताकि इसका उचित उपयोग किया जा सके।

माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष ने हालांकि कहा कि उनका महकमा मैक एलाइजा पद्धति की किट से उसी मरीज के नमूने की डेंगू जांच करता है, जो अन्य संस्थान के रैपिड टेस्ट में डेंगू पॉजीटिव पाया जाता है। इसलिए यह आरोप उचित नहीं है कि उनके विभाग से डेंगू की जांच रिपोर्ट देरी से मिलने की स्थिति में मरीजों में इस बीमारी का पता चलने में विलंब होता है और उनका इलाज वक्त पर शुरू नहीं हो पाता है। (भाषा)