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Written By Author अनिल जैन

असम में बदलाव के नारे का आकर्षण और महंगी दाल का दर्द

Assam election
गुवाहाटी। असम में चुनावी परिद्श्य ने अजीबोगरीब आकार लिया है। सूबे के ज्यादातर लोगों में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के प्रति कोई खास नाराजगी या असंतोष नहीं है, लेकिन भाजपा का बदलाव का नारा उन्हें लुभा रहा है। इसलिए वे एक मौका भाजपा को देने की इच्छा भी रखते हैं लेकिन उनमें दाल के भाव 200 रुपए किलो और आलू के भाव 25 रुपए किलो से अपने घर का बजट बिगड़ने की पीड़ा के साथ डर भी झलकता है।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलियों में शामिल हुए लोग कहते हैं कि वे अच्छे आदमी हैं। बोलते भी मजेदार हैं, लेकिन उन्होंने 2 साल में अभी तक असम के लिए कुछ नहीं किया है। लोग यह भी कहते हैं कि कांग्रेस 15 साल से राज कर रही है इसलिए भाजपा को भी देखना चाहिए। 
 
लेकिन कांग्रेस से दल बदलकर ऐन चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री हेमंतो विश्वशर्मा और उनके साथियों को भाजपा में जो महत्व मिल रहा है, उसे आम लोग ही नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ता भी पचा नहीं पा रहे हैं।
 
गुवाहाटी से लेकर बारपेटा और जोरहाट तक सफर के दौरान जगह-जगह लोगों से बात करने के बाद यह मिली-जुली तस्वीर उभरती है। मध्य असम के शहरी क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त साफ दिखाई देती है लेकिन ऊपरी असम के गांवों, चाय बागानों और सड़क के किनारे के कस्बों में भाजपा की बात करते-करते लोग कांग्रेस के मजबूत होने की बात भी करने लगते हैं।
 
लोकसभा चुनाव की मोदी लहर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न प्रकल्पों और सहयोगी दलों के जरिए भाजपा असम के उन इलाकों और लोगों तक पहुंच गई है जिन्होंने 2014 से पहले कभी भाजपा को वोट नहीं दिया था। 
 
हर जगह या तो लोग भाजपा का पलड़ा भारी बताते हैं या फिर कांग्रेस के साथ उसका कांटे का मुकाबला बताते हैं। यहां तक कि असम गण परिषद और बोडो पीपुल्स फ्रंट के उम्मीदवारों को भी लोग भाजपा का ही उम्मीदवार बताते हैं। 
 
लेकिन इसके बावजूद लोग इस बात को लेकर बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं हैं कि कांग्रेस हार जाएगी। उन्हें लगता है कि राज्य में कांग्रेस की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उसे हराना अभी भी आसान नहीं है।
 
मध्य असम के मोरगांव जिले के जागीरोड पर होटल चला रहे आसू डे के मुताबिक यहां 10 साल से कांग्रेस विधायक हैं, लेकिन इस बार उन्हें भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे स्थानीय एक्यू जनजाति के नेता से कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। नौगांव जिले के सारगांव में संघ से जुड़े परिमल कुमार दावा करते हैं कि अभी भाजपा के पक्ष में लोकसभा चुनाव जैसा ही माहौल है।
 
सलमारा गांव की तस्वीर और ज्यादा दिलचस्प है। एक मृतक के श्राद्ध कार्यक्रम में जमा लोग पहले भाजपा को मजबूत बताते हैं, लेकिन उसी गांव में युवा छात्रा रुबी डेंका कांग्रेस का जोर बताती हैं। वे इसके कारण भी गिनाती हैं।
 
पास में खड़े कारपेंटरी का काम करने वाले दिव्य ज्योति कहते हैं कि वोट लेने के लिए सब गरीबों की बात करते हैं लेकिन चुनाव के बाद किसी को भी गरीबों की याद नहीं आती। 200 रुपए किलो की दाल और 25 रुपए किलो के आलू खरीदकर खाने की ताकत हम गरीबों में कहां है।
 
पेशे से शिक्षक स्मृति रेखा डेंका की दलील अलग है। उनका कहना है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है इसलिए राज्य में भी अगर उसकी ही सरकार बनती है तो शायद कुछ फायदा हो सकता है।
 
पूर्व सैनिक प्रवीणचंद्र राय और सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी पुनीत कुमार की भी यही राय है कि 15 साल तक कांग्रेस को देख चुके हैं इसलिए एक मौका अब भाजपा को भी मिलना चाहिए। 
 
लेकिन दलित समुदाय से आने वाले छात्र विजय कुमार का कहना है कि मोदी सिर्फ बोलते हैं, करते कुछ नहीं हैं। उनकी यह भी शिकायत है कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद देशभर में दलित उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं। इस सिलसिले में वे रोहित वेमुला का जिक्र करते हैं। पास खड़े रामा प्रसाद भी उनसे सहमति जताते हैं और कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में किया गया एक भी वादा पूरा नहीं हुआ। 
 
एक निजी संस्थान में काम करने वाले हरिनाथ बरुआ कहते है कि गोगोई सरकार में जो भी गलत लोग थे, वे भाजपा में चले गए हैं। तब फिर भाजपा के साथ जाने का क्या फायदा? गुवाहाटी से जोरहाट तक जहां भी लोगों से बात होती है, ऐसी ही मिली-जुली प्रतिक्रिया मिलती है।