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Written By WD

प्रौफेट जरथुस्त्र का जन्म दिवस

24 अगस्त होता है बहुत खास दिन

Lord Prufet Jrsthru | प्रौफेट जरथुस्त्र का जन्म दिवस
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पारसी समुदाय द्वारा भगवान प्रौफेट जरथुस्त्र का जन्म दिवस 24 अगस्त को मनाया जाता है। पारसियों के लिए यह दिन सबसे बड़ा होता है। जरथुस्त्री (पारसी) धर्म की साक्ष्यों के आधार पर सटिक जानकारी देने में काफी कठिनाई है।

स्वयं धर्म प्रवर्तक जरथुस्त्र के समय के निर्धारण को लेकर मतभेद हैं, फिर भी यह कहा जा सकता है कि सिकंदर से बहुत पूर्व जरथुस्त्री धर्म अपने पूर्ण विकास को प्राप्त हो चुका था, क्योंकि सिकंदर से योरप का इतिहास प्रारंभ होता है। फारस पर सिकंदर के हमले के प्रभाव के कारण जरथुस्त्री धर्म के सारे धर्म ग्रंथ नष्टप्रायः हो गए थे।

कुछ भी हो, पारसी धर्म के मूल प्रवर्तक जरथुस्त्र थे एवं उनके बताए मार्ग को ही जरथुस्त्री धर्म कहा जाता है। स्वयं जरथुस्त्र ने पूर्व प्रचलित सिद्धांतों को नई रूपरेखा देने की ही चेष्टा की थी। जरथुस्त्र का जीवन ऐतिहासिक और व्यक्तित्व अलौकिक था। संसार के महान पुरुषों और धर्म प्रवर्तकों में उनका एक विशिष्ट स्थान है।

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बचपन में उनका नाम स्पितमान था। जैसे राजकुमार वर्द्धमान घोर तपस्या के कारण महावीर व राजकुमार गौतम बोधि लाभ से बुद्ध कहलाए, उसी तरह स्पितमान भी समाधि द्वारा प्राप्त दिव्य क्रांति के कारण जरथुस्त्र कहलाए। जरथुस्त्र का अर्थ है स्वर्ण के समान कांतिमान।

जरथुस्त्र प्रेम और दया की साक्षात मूर्ति थे। समाधि से निवृत्त होकर रोगी की परिचर्या करना, भारपीड़ित पशु का बोझ स्वयं ढोना, वृद्धों को सहारा देना, दृष्टिहीन को मार्ग बताना, भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना इनकी दिनचर्या थी।

जरथुस्त्र के देहांत के बाद उनका प्रभाव धीरे-धीरे फैला। सारे ईरान में यह राज्य धर्म बना। इसके अतिरिक्त रूस, चीन, तुर्किस्तान, आरमेनिया एवं हिन्दुकुश तक इसका थोड़ा-थोड़ा प्रभाव अवश्य रहा है।

विश्व के अन्य भागों में ईरानी सभ्यता का प्रभाव जरथुस्त्र से पहले ही था। इसलिए जब ईरान में जरथुस्त्री धर्म राज्य धर्म बना तो ईरानी सभ्यता के संपर्क वाले देशों में इसका प्रकारांतर प्रभाव अवश्यंभावी था। सिकंदर के हमले के समय इस धर्म का धार्मिक साहित्य पूर्ण आभा में था। पार्सीपोलिस एवं समरकंद में इन ग्रंथों को बहुत सज-धज से सुरक्षित रखा गया था।

प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी। इस वजह से 24 अगस्त को पारसी समुदाय द्वारा खास तौर पूजन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। यह दिन भी हमारे पर्वों में सबसे खास होता है। उनके नाम के कारण ही हमें जरस्थ्रुटी कहा जाता है। (वेबदुनिया डेस्क)