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Naag Diwali 2021 : 8 दिसंबर को नाग दिवाली पर्व, जानें पूजन विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा

Naag Diwali 2021 : 8 दिसंबर को नाग दिवाली पर्व, जानें पूजन विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा - Naag Diwali 2021 8 December
Naag Diwali
 
प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष या अगहन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी ​तिथि को नाग दिवाली Naag Diwali 2021 मनाई जाती है। उत्तराखंड के चमोली जिले के एक गांव में नाग देवता का प्राचीन रहस्‍यमयी मंदिर (Naag Temple) है, जहां नाग दिवाली का आयोजन बड़े स्तर किया जाता है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां जो भक्त सच्चे मन से कोई मनोकामना मांगें तो वह अवश्य पूर्ण होती है। इस दिन लोग अपने-अपने घरों में रंगबिरंगी रंगोलियां बनाकर नाग देवता का पूजन करते है। इस वर्ष देव दीपावली के ठीक 20 दिन बाद यह पर्व बुधवार, 8 दिसंबर 2021 को पड़ रहा है। 
 
Naag Diwali 2021 puja vidhi नाग दिवाली पर क्या करें, पूजन विधि- 
 
नाग दिवाली के दिन नागों की पूजा का विधान है। 
 
पौराणिक मान्यतानुसार नाग देवता को पाताललोक का स्वामी माना गया है। अत: नाग दिवाली पर उनके पूजन का विशेष महत्व है।
 
इसी दिन विवाह पंचमी भी होने के कारण राम-सीता विवाहोत्सव पर्व मनाया जाता है।  
 
इस दिन अयोध्या और जनकपुर में विशेष तैयारियों के साथ प्रभु श्रीराम की बारात निकाली जाती है। 
 
नाग दिवाली के दिन नाग के प्रतीक के सामने दीपक जलाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। 
 
इस दिन नाग पूजन करने से कुंडली में स्थित कालसर्प दोष का निवारण होकर जीवन की अड़चनों से मुक्ति मिलती है। 
 
नाग दिवाली शुभ मुहूर्त Naag Diwali 2021 shubh muhurat
 
नाग दिवाली पर मार्गशीर्ष पंचमी तिथि की शुरुआत मंगलवार, 7 दिसंबर 2021 को रात्रि 11.40 मिनट से बुधवार, 8 दिसंबर 2021 को रात्रि 9.25 मिनट पर पंचमी तिथि का समापन होगा। 
 
8 दिसंबर को राहु काल का समय- दोपहर 12.17 मिनट से 1:35 मिनट तक रहेगा। अत: इस समयावधि में पूजन करने से बचें। 
 
Naag Diwali Temple Katha पौराणिक कथा एवं धार्मिक स्थल- उत्तराखंड के चमोली जिले में वांण नामक गांव में नाग देवता का एक रहस्यमयी एवं अद्भुत मंदिर है, पौराणिक मान्यतानुसार यहां स्वयं नागराज विराजमान है और वह अपने अद्भुत नागमणि की रक्षा भी स्वयं ही करते हैं, जिस वजह से वे निरंतर विष छोड़ते रहते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से कुल 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

यहां का स्थान देवदार के बड़े-बड़े वृक्षों से भरा हुआ है और इसी जगह के बीच लाटू देवता का एक मंदिर मौजूद है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां के पुजारी आंखों और मुंह पर पट्टी बांधकर नागदेवता का पूजन करते हैं। 
 
यह स्थान देश और वहां के आसपास के क्षेत्र में लाटू देवता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। यहां के स्थानीय लोग लाटू देवता को ही अपना आराध्य मानते हैं। अत: यहां आनेवाले भक्त और श्रद्धालुगण लगभग 75 से 80 फीट की दूरी से नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं। यह मंदिर देवी माता पार्वती के चचेरे भाई लाटू के नाम पर बनाया गया है और इसके कपाट वर्ष में एक ही बार वैशाख पूर्णिमा के दिन खुलते हैं। उस समय यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ होता है। 

 
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