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गजलक्ष्मी व्रत 2021 : कैसे करें पूजन, जानिए शुभ मुहूर्त,पूजा विधि,उपाय और कथा

गजलक्ष्मी व्रत 2021 : कैसे करें पूजन, जानिए शुभ मुहूर्त,पूजा विधि,उपाय और कथा - gajlakshmi vrat 2021 mahalakshmi vrat
आप जानते हैं कि इन दिनों श्राद्ध चल रहे हैं और हम बताने जा रहे हैं श्राद्ध के दिनों में आने वाले पर्व गजलक्ष्मी व्रत के बारे में... दोस्तों यह व्रत इस बार मत मतांतर से 28 और 29 को माना जा रहा है....अलग अलग पंचांगों में इसकी तिथि अलग बताई जा रही है ....इस गजलक्ष्मी व्रत की महिमा जानकर आप चौंक जाएंगे.... 
 
यह व्रत और इस दिन की जाने वाली पूजा का दिवाली जैसे त्योहार से भी ज्यादा महत्व माना गया है....तो चलिए शुरू करते हैं ...सबसे पहले जानेंगे कि यह व्रत कैसे मनाया जाता है.....  
 
 यह व्रत 16 दिनों तक चलता है। इस व्रत का खास दिन आ रहा है मंगलवार, 28 सितंबर 2021 और बुधवार, 29 सितंबर 2021 को। इस दिन महालक्ष्मी देवी अपार धन संपत्ति और खुशहाल जीवन का विशेष वरदान देती हैं। इसी दिन कालाष्टमी और महालक्ष्मी व्रत पूर्ण होगा।

 
गजलक्ष्मी व्रत पूजन के शुभ मुहूर्त-
 
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 28 सितंबर, दिन मंगलवार को शाम 06.16 मिनट पर हो शुरू होकर इसका समापन 29 सितंबर को रात के 08.29 मिनट पर होगा। उदया तिथि के कारण इस व्रत को 29 सितंबर को भी रखा जाएगा।
 
पंडित विशाल जोशी के अनुसार यह व्रत 29 को मनाया जाना उचित है, क्योंकि श्राद्ध पक्ष में 26 को कोई भी तिथि मान्य नहीं हुई है अत: 27 को षष्ठी व सप्तमी आधे-आधे दिन है। 27 तारीख को सप्तमी का श्राद्ध माना गया है उस हिसाब से और उदया तिथि के अनुसार 29 सितंबर को पर्व मनाया जाना सही होगा... ज्योतिषी वंदना शर्मा का कहना है कि 28 और 29 दोनों दिन पर्व की पूजा की जा सकती है। पंचांग भेद के बावजूद दोनों दिन शुभ समय पर पूजा की जा सकती है। चूंकि गजलक्ष्मी व्रत की पूजा शाम के समय होती है अत: 28 की शाम 8 के बाद और 29 की शाम 8 बजे से पहले  करना उचित होगा। 29 सितंबर को रात के 08.29 मिनट के बाद नवमी तिथि लग जाएगी... (वेबदुनिया की सलाह है कि मत-मतांतर के चलते किसी विद्वान पंडित से पूछ कर ही निर्णय लें।
पूजन विधि
यह व्रत भादो शुक्ल अष्टमी से शुरू किया जाता है और इस दिन एक सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें पानी से सींचा जाता है। ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत (धागे) से 16 तार का एक डोरा बनाया जाता है। इस डोरे की लंबाई आसानी से गले में पहन जा सके इतनी रखी जाती है। इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गांठें बांधकर हल्दी से इसे पीला करके पूजा के स्थान में रख दिया जाता है और प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजन किया जाता है।
 
आश्विन यानी क्वांर मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन दूसरे शब्दों में पितृ पक्ष की अष्टमी पर  उपवास रखकर श्रृंगार करके 18 मुट्ठी गेहूं के आटे से 18 मीठी पूड़ी बनाई जाती है तथा आटे का एक दीपक बनाकर 16 पु‍ड़ियों के ऊपर रखें तथा दीपक में एक घी-बत्ती रखें, शेष दो पूड़ी महालक्ष्मी जी को चढ़ाने के लिए रखें।
 
पूजन करते समय इस दीपक को जलाएं तथा कथा पूरी होने तक दीपक जलते रखना चाहिए। अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें। पूजन के पश्चात इन्हीं 16 पूड़ी को सिवैंया की खीर या मीठे दही से खाते हैं। इस व्रत में नमक नहीं खाते हैं। इन 16 पूड़ी को पति-पत्नी या पुत्र ही खाएं, अन्य किसी को नहीं दें। मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो। यह हाथी क्षमता के अनुसार सोने,चांदी,पीतल, कांसे या ताम्बे का भी हो सकता है ...
 
सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें। तांबे का एक कलश जल से भरकर पटे के सामने रखें। एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, आंटी (लाल धागा), मेहंदी, हल्दी, टीकी, सुरक्या, दोवड़ा, दोवड़ा, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, मौसम का फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि) रखें। केल के पत्तों से झांकी बनाएं।

 
संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं। पटे पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। विधिपूर्वक महालक्ष्मीजी का पूजन करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें। भोजन के पश्चात रात्र‍ि जागरण तथा भजन-कीर्तन करें। दूसरे दिन प्रात:काल हाथी को जलाशय में विसर्जन करके सुहाग-सामग्री ब्राह्मण को दें।
 
फिर से बताते चलें कि दिवाली से भी ज्यादा महत्व है इस गजलक्ष्मी व्रत का, मान्यता यह है कि इस दिन खरीदा सोना 8 गुना बढ़ता है....
 
इस अष्टमी को लक्ष्मी जी का वरदान प्राप्त है। इस दिन सोना खरीदने का महत्व है। शादी की खरीदारी के लिए भी यह दिन उपयुक्त माना गया है। इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। 
 
सरल विधि से भी पूजा की जा सकती है
 
शाम के समय स्नान कर घर के देवालय में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर केसर मिले चन्दन से अष्टदल बनाकर उस पर चावल रख जल कलश रखें।
 
- कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति प्रतिष्ठित करें। मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या घर में बना कर उसे स्वर्णाभूषणों से सजाएं। नया खरीदा सोना हाथी पर रखने से पूजा का विशेष लाभ मिलता है। श्रद्धानुसार चांदी या सोने का हाथी भी ला सकते हैं।
 
चांदी के हाथी का कई गुना अधिक महत्व है। स्वर्ण हाथी से भी अधिक... अत: संभव हो तो चांदी का हाथी अवश्य खरीदें।
- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें। कमल के फूल से पूजन करें।
 
- इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें।
 
- इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की इन मंत्रों के साथ कुंकुम, अक्षत और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें-
- ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:
- ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:
- ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:
- ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम:
- ॐ कामलक्ष्म्यै नम:
- ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:
- ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:
- ॐ योगलक्ष्म्यै नम:
 
- इसके बाद धूप और घी के दीप से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।
 
- महालक्ष्मी जी की आरती करें।
 
 इस दिन महालक्ष्मी के विशेष आशीष झरते-बरसते हैं।
 
पितृ पक्ष की अष्टमी के दिन किसी भी ब्राह्मण सुहागन स्त्री को सोना,कलश, इत्र, आटा, शक्कर और घी भेंट करें। इसके अलावा किसी कुंवारी कन्या को नारियल, मिश्री, मखाने तथा चांदी का हाथी भेंट करना उचित रहेगा।
 
ऐसा करने से महालक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होंगी। इसके अलावा ये सभी सामग्रियां आप चाहें तो अपनी बेटी को भी दे सकते हैं।
 
अगर आप भी चाहते हैं धन की बरखा में सुखद स्नान तो 28 और 29 सितम्बर का गजलक्ष्मी व्रत है अंतिम अवसर। यह विशेष संयोग अत्यंत शुभदायक है।
 
गजलक्ष्मी व्रत में अगर अपनी राशि अनुसार विधि-विधान से पूजन किया जाए तो महालक्ष्मी विशेष प्रसन्न होती हैं और जीवन में धन-समृद्धि आती है। आइए, जानें किस-किस राशि वाले जातक को किस प्रकार से पूजन करने से इष्टतम लाभ हो सकता है।
राशि के अनुसार 
मेष राशि :
इस राशि के जातक अगर ऋण से त्रस्त हैं तो मिट्टी के हाथी के समक्ष 'ऋणहर्ता मंगल स्तोत्र' का पाठ करना चाहिए इससे ऋण उतरने लगता है।
वृषभ राशि :
इस राशि के जातकों के लिए गजलक्ष्मी व्रत से हर शुक्रवार को श्री विष्णु-लक्ष्मी का पूजन करने से धन व नाम मिलता है। इस प्रयोग को कम से कम एक साल तक करें यानी अगले गजलक्ष्मी व्रत तक करें चमत्कार स्वयं देखें।
मिथुन राशि :
चांदी का हाथी बनवाकर श्री लक्ष्मी के मंत्रों से पूरित कर गल्ले में रखें निश्चित ही धनलाभ होता है। धन का भंडार भरा रहता है तथा परिवार में व्यक्ति प्रसन्न और सुखी रहता है।
कर्क राशि : रात को केले के पत्ते पर दूध-भात रख कर चंदमा और मिट्टी के हाथी को दिखाएं और मंदिर में पंडितजी को दान दें। इससे धन प्राप्ति के प्रबल योग बनते हैं।
सिंह राशि : मिट्टी का हाथी बनवाकर उस पर चांदी या सोने का गहना चढ़ाएं और 'ॐ नमो नारायणाय’मंत्र का श्री विष्णु जी के सम्मुख जाप करें, विशेष धनलाभ होगा।
कन्या राशि : लाजावर्त नग को चांदी में जड़वाकर लक्ष्मी के मंत्रों से अभिमंत्रित कर मिट्टी के हाथी को चढ़ाने से जातक धनवान बनता है।
तुला राशि :चांदी या सोने के हाथी पर कमल का फूल चढ़ाएं। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है व यश मिलता है।
वृश्चिक राशि : मिट्टी के हाथी के समक्ष घी व सरसो तेल के दो बड़े दीपक जलाएं। किसी भी लक्ष्मी मंत्र की 21 माला जाप करें तो अक्षय धन की प्राप्ति होती है।
धनु राशि : सुंदर पीले वस्त्र धारण कर मिट्टी के हाथी पर विविध अलंकार अर्पित करें। मां लक्ष्मी की कृपा चारों तरफ से बरसने लगेगी।
मकर राशि : किसी भी सजीव हाथी को सवा दर्जन केले खिलाएं और मिट्टी के हाथी को वस्त्रालंकार अर्पित करें। आश्चर्यजनक रूप से हर बाधा दूर होगी और धन की समृद्धि बढ़ेगी।
कुंभ राशि : चांदी का हाथी बनवाकर उसी की पूजा करें। साथ में मिट्टी का हाथी दीये जलाकर सजाएं और पूजन करें। चांदी के सिक्के चढ़ाएं। यश, सुख, समृद्धि, वैभव, ऐश्वर्य और सौभाग्य से जीवन चमक उठेगा।
मीन राशि : 11 हल्दी की गांठों को पीले कपड़े में रख कर लक्ष्मी मंत्र की 11 माला जाप कर तिजोरी में रख दें। रोजाना वहां दीया जलाए तो व्यापार की प्रबल उन्नति होने लगती है।
 
आइए जानते हैं इस व्रत की कथाएं
 
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिए... और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की।
 
यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है।
 
शुभ मुहूर्त और महत्व में देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। यह कहकर श्री विष्णु जी चले गए।
 
अगले दिन वह सुबह चार बजे ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है. लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा।
 
ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है।
 
कहते हैं कि महाभारत काल में देवी कुन्ती ने भी यह व्रत किया था...
 
एक समय महर्षि श्री वेदव्यासजी हस्तिनापुर पधारे। उनका आगमन सुन महाराज धृतराष्ट्र उनको आदर सहित राजमहल में ले गए। स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान कर उनका पूजन किया।
 
श्री व्यासजी से माता कुंती तथा गांधारी ने हाथ जोड़कर प्रश्न किया- हे महामुने! आप त्रिकालदर्शी हैं अत: आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप हमको कोई ऐसा सरल व्रत तथा पूजन बताएं जिससे हमारा राज्यलक्ष्मी, सुख-संपत्ति, पुत्र-पोत्रादि व परिवार सुखी रहें।
 
इतना सुन श्री वेद व्यासजी कहने लगे- 'हम एक ऐसे व्रत का पूजन व वर्णन कहते हैं जिससे सदा लक्ष्मीजी का निवास होकर सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। यह श्री महालक्ष्मीजी का व्रत है, इसे गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। जिसे प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत किया जाता है।'
 
हे महामुने! इस व्रत की विधि हमें विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें। तब व्यासजी बोले- 'हे देवी! यह व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ किया जाता है। इस दिन स्नान करके 16 सूत के धागों का डोरा बनाएं, उसमें 16 गांठ लगाएं, हल्दी से पीला करें। प्रतिदिन 16 दूब व 16 गेहूं डोरे को चढ़ाएं। आश्विन (क्वांर) कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर मिट्टी के हाथी पर श्री महालक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें।
 
इस प्रकार श्रद्धा-भक्ति सहित महालक्ष्मीजी का व्रत, पूजन करने से आप लोगों की राज्यलक्ष्मी में सदा अभिवृद्धि होती रहेगी। इस प्रकार व्रत का विधान बताकर श्री वेदव्यासजी अपने आश्रम को प्रस्थान कर गए।
 
इधर समयानुसार भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से गांधारी तथा कुंती अपने-अपने महलों में नगर की स्‍त्रियों सहित व्रत का आरंभ करने लगीं। इस प्रकार 15 दिन बीत गए। 16वें दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन गांधारी ने नगर की स‍भी प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में बुलवा लिया। माता कुंती के यहां कोई भी महिला पूजन के लिए नहीं आई। साथ ही माता कुंती को भी गांधारी ने नहीं बुलाया। ऐसा करने से माता कुंती ने अपना बड़ा अपमान समझा। उन्होंने पूजन की कोई तैयारी नहीं की एवं उदास होकर बैठ गईं।
 
जब पांचों पांडव युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव महल में आए तो कुंती को उदास देखकर पूछा- हे माता! आप इस प्रकार उदास क्यों हैं? आपने पूजन की तैयारी क्यों नहीं की?' तब माता कुंती ने कहा- 'हे पुत्र! आज महालक्ष्मीजी के व्रत का उत्सव गांधारी के महल में मनाया जा रहा है।
 
उन्होंने नगर की समस्त महिलाओं को बुला लिया और उसके 100 पुत्रों ने मिट्टी का एक विशाल हाथी बनाया जिस कारण सभी महिलाएं उस बड़े हाथी का पूजन करने के लिए गांधारी के यहां चली गईं, लेकिन मेरे यहां नहीं आईं। यह सुनकर अर्जुन ने कहा- 'हे माता! आप पूजन की तैयारी करें और नगर में बुलावा लगवा दें कि हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजन होगी।'
इधर माता कुंती ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और पूजा की विशाल तैयारी होने लगी। उधर अर्जुन ने बाण के द्वारा स्वर्ग से ऐरावत हाथी को बुला लिया। इधर सारे नगर में शोर मच गया कि कुंती के महल में स्वर्ग से इन्द्र का ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतारकर पूजा जाएगा। समाचार को सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों की भीड़ एकत्र होने लगी। उधर गांधारी के महल में हलचल मच गई। वहां एकत्र हुईं सभी महिलाएं अपनी-अपनी थालियां लेकर कुंती के महल की ओर जाने लगीं। देखते ही देखते कुंती का सारा महल ठसाठस भर गया।
 
माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने हेतु अनेक रंगों के चौक पुरवाकर नवीन रेशमी वस्त्र बिछवा दिए। नगरवासी स्वागत की तैयारी में फूलमाला, अबीर, गुलाल, केशर हाथों में लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे। जब स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्‍वी पर उतरने लगा तो उसके आभूषणों की ध्वनि गूंजने लगी। ऐरावत के दर्शन होते ही जय-जयकार के नारे लगने लगे।
 
सायंकाल के समय इन्द्र का भेजा हुआ हाथी ऐरावत माता कुंती के भवन के चौक में उतर आया, तब सब नर-नारियों ने पुष्प-माला, अबीर, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ चढ़ाकर उसका स्वागत किया। राज्य पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके वेद मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया। नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी पूजन किया। फिर अनेक प्रकार के पकवान लेकर ऐरावत को खिलाए और यमुना का जल उसे पिलाया गया। राज्य पुरोहित द्वारा स्वस्ति वाचन करके महिलाओं द्वारा महालक्ष्‍मी का पूजन कराया गया।
 
16 गांठों वाला डोरा लक्ष्मीजी को चढ़ाकर अपने-अपने हाथों में बांध लिया। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। दक्षिणा के रूप में स्वर्ण आभूषण, वस्त्र आदि दिया गया। तत्पश्चात महिलाओं ने मिलकर मधुर संगीत लहरियों के साथ भजन कीर्तन कर संपूर्ण रात्र‍ि महालक्ष्‍मी व्रत का जागरण किया। दूसरे दिन प्रात: राज्य पुरोहित द्वारा वेद मंत्रोच्चार के साथ जलाशय में महालक्ष्मीजी की मूर्ति का विसर्जन किया गया। फिर ऐरावत को बिदाकर इन्द्रलोक को भेज दिया।
 
इस प्रकार जो स्‍त्रियां श्री महालक्ष्मीजी का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करती हैं, उनके घर धन-धान्य से पूर्ण रहते हैं तथा उनके घर में महालक्ष्मीजी सदा निवास करती हैं। इस हेतु महालक्ष्मीजी की यह स्तुति अवश्य बोलें-
 
'महालक्ष्‍मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।'