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Written By WD

भगवान शुक्र व्रत आरती

भगवान शुक्र व्रत आरती
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आरती लक्ष्मण बाल जती की। असुर संहारन प्राणपती की॥
जगमग ज्योति अवधपुरी राजे। शेषाचल पर आप विराजे॥

घंटाताल पखावज बाजै। कोटि देव सब आरती साजै॥
क्रीटमुकुट कर धनुष विराजै। तीन लोक जाकी शोभा राजै॥

कंचन थार कपूर सुहाई। आरती करत सुमित्रा माई॥
प्रेम मगन होय आरती गावैं। बसि बैकुंठ बहुरि नहीं आवैं॥
भक्त हेतु हरि लाड़ लड़ावैं। जब घनश्याम परम पद पावैं॥