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Written By ओशो

साधु और मदारियों के चमत्कार एक जैसे

ओशो के जन्मदिन पर विशेष

osho rajneesh | साधु और मदारियों के चमत्कार एक जैसे
*एक मित्र ने पूछा है कि चमत्कारों के संबंध में आपका क्या खयाल है?

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- चमत्कार शब्द का हम प्रयोग करते हैं, तो साधु-संतों का खयाल आता है। अच्छा होता कि पूछा होता कि मदारियों के संबंध में आपका क्या खयाल है? दो तरह के मदारी हैं- एक, जो ‍ठीक ढंग से मदारी हैं, 'आनेस्ट'। वे सड़क के चौराहों पर चमत्कार दिखाते हैं। दूसरे, ऐसे मदारी हैं, 'डिस्‍आनेस्ट', बेईमान। वे साधु-संतों का वेश सिद्ध करके, वे ही चमत्कार दिखलाते हैं, जो चौरस्तों पर दिखाये जाते हैं। ईमानदार मदारी जो स्वागत योग्य है, क्योंकि उसमें एक कला है। बेईमान मदारी सिनर है, अपराधी है, क्योंकि मदारीपन के आधार पर, वह कुछ और माँग रहा है।

अभी मैं पिछले वर्ष एक गाँव में था। एक बूढ़ा आदमी आया। मित्र लेकर आये थे और कहा कि आपको कुछ दिखलाना चाहते हैं। मैंने कहा, दिखाएँ। उस बुढ़े आदमी ने अद्‍भुत काम दिखलाये। रुपए को मेरे सामने फेंका, वह दो फीट ऊपर जाकर हवा में विलीन हो गया। फिर पुकारा, वह दो फीट पहले हवा में प्रकट हुआ, हाथ में आ गया। मैंने उस बूढ़े आदमी से कहा, बड़ा चमत्कार करते हैं आप। उसने कहा, नहीं, यह कोई चमत्कार नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है। मैंने कहा, तुम पागल हो! सत्य साँई बाबा हो सकते थे, क्या कर रहे हो? क्यों इतनी सच्ची बात बोलते हो? इतनी ईमानदारी उचित नहीं है। लाखों लोग तुम्हारे दर्शन करते। तुम्हें मुझे दिखाने न आना होता, मैं ही तुम्हारे दर्शन करता।

वह बूढ़ा आदमी हँसने लगा। कहने लगा, चमत्कार कुछ भी नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है। उसने सामने ही- कोई मुझे मिठाई भेंट कर गया था, एक लड्डू उठाकर मुँह में डाला, चबाया, पानी पी लिया। फिर उसने कहा कि नहीं, पसंद नहीं आया। फिर उसने पेट जोर से खींचा पकड़कर, लड्डू को वापिस निकालकर सामने रख दिया। मैंने कहा अब तो पक्का ही चमत्कार है। उसने कहा कि नहीं। अब दुबारा आप कहिये, तो मैं न दिखा सकूँगा, क्योंकि लड्डू छिपाकर आया और वह लड्डू पहले मैंने ही भेंट भिजवाया था। इससे पहले जो दे गया है, अपना ही आदमी है।

मगर या ईमानदार आदमी है, एक अच्छा आदमी है। यह मदारी समझा जायेगा। इसे अगर कोई संत समझता तो बुरा न था। कम से कम सच्चा तो था। लेकिन मदारियों के दिमाग हैं, और वह कर रहे हैं यही काम। कोई राख की पुड़िया निकाल रहा है, कोई ताबीज निकाल रहा है, कोई स्विस मेड घड़ियाँ हवा से निकाल रहा है। और छोटे, साधारण नहीं- जिनको हम साधारण नहीं कहते हैं, गवर्नर हैं, वाइस चांसलर हैं, हाईकोर्ट के जजेस हैं, वह भी मदारियों के आगे हाथ जोड़े खड़े हैं। इससे सिर्फ यह पता चलता है कि हमारे जजेस, हमारे वाइस चांसलर, हमारे गवर्नर भी ग्रामीण से ऊपर नहीं उठ सके हैं। उनकी बुद्धि भी साधारण ग्रामीण आदमी से ज्यादा नहीं। फर्क इतना है कि ग्रामीण आदमी के पास सर्टिफिकेट नहीं है, उनके पास सर्टिफिकेट हैं। ये सर्टिफिकेट ग्रामीण हैं।

यह चमत्कार- इस जगत में चमत्कार जैसी चीज सब में होती नहीं, हो नहीं सकती। इस जगत में जो कुछ होता है, नियम से होता है। हाँ, यह हो सकता है, नियम का हमें पता न हो। यह हो सकता है कि कार्य, कारण का हमें बोध न हो। यह हो सकता है कि कोई लिंक, कोई कड़ी अज्ञात हो, जो हमारी पकड़ में नहीं आती, इसीलिए बाद की कड़ियों को समझना बहुत मुश्किल हो जाता है।

बाकू में उन्नीस सौ सत्रह के पहले, जब रूस में क्रांति हुई थी, उन्नीस सौ सत्रह के पहले, बाकू में एक मंदिर था। उस मंदिर के पास प्रति वर्ष एक मेला लगता था। यह दुनिया का सबसे बड़ा मेला था। कोई दो करोड़ आदमी वहाँ इकट्ठे होते थे और बहुत चमत्कार की जहग थी वह, वह जो मंदिर की जगह थी। वह अग्नि का मंदिर था और एक विशेष दिन को, एक विशेष घड़ी में, उस अग्नि के मंदिर में, आपने आप अग्नि उत्पन्न होती थी। वेदी पर अग्नि की लपटें प्रकट हो जाती थी। लाखों लोग खड़े होकर देखते थे। कोई धोखा न था, कोई जीवन न था, कोई आग जलाता न था, भगवा प्रगट होते, अग्नि के रूप में अपना आप!

फिर उन्नीस सौ सत्रह में रक्त क्रांति हो गई। जो लोग आए, वह विश्वासी नहीं थे, उन्होंने मड़िया उखाड़कर फेंक दी और गडडे खोदे। पता चला, वहाँ तेल के गहरे कुएँ हैं, मिट्टी के तेल के। मगल फिर भी यह तो बात साफ हो गयी कि मिट्टी के तेल के घर्षण से भी आग पैदा होती है, अपने झुकाव के, तभी नीचे के तेल में घर्षण हो पाता है। इसलिए निश्चित दिन पर प्रतिवर्ष वह आग पैदा हो जाती है। जब यह बात साफ हो गयी, तब वहाँ मेला लगना बंद हो गया। अब भी वहाँ आग पैदा होती है, लेकिन अब कोई इकठ्ठा नहीं होता है। क्योंकि कार्य, कारण का पता चल गया है, बात साफ हो गई है। अग्नि देवता अब भी प्रकट होते हैं, लेकिन वह केरोसिन देवता होते हैं, अब अग्नि देवता नहीं रह गए! चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती। चमत्कार का मतलब सिर्फ इतना ही होता है कि कुछ है जो अज्ञात है, कुछ है जो छिपा है, कोई कड़ी साफ नहीं है, वह हो रहा है।

एक पत्थर होता है अफ्रीका में, जो पानी को, भाप को पी जाता है। पारस होता है, थोड़े से उसमें छेद होते हैं, वह भाप को पी लेता है। तो वर्षा में भी वह भाप को पी जाता है, काफी भाप को पी जाते हैं। उस पत्थर का पारस होना दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन वह स्पंजी है। उसकी मूर्ति बन जाती है। वह मूर्ति जब गर्मी पड़ती है, जैसे सूरज से अभी पड़ रही है, उसमें से पसीना आने लगता है। उस तरह के पत्थर और भी दुनिया में पाये जाते हैं। पंजाब में एक मूर्ति है, वह उसी पत्थर की बनी हुई है। जब गर्मी होती है, तो भक्तगण पंखा झलते हैं, उस मूर्ति को कि भगवान को पसीना आ रहा है। और बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है, क्योंकि बड़ा चमत्कार है, पत्थर की मूर्ति को पसीना आए!

तो जब में उस गाँव में ठहरा था, तो एक सज्जन ने मुझे आकर कहा कि आप मजाक उड़ाते हैं। आप सामने देख लीजिए चलकर। भगवान को पसीना आता है और आप मजाक उड़ाते हैं। आप कहते हैं, भगवान को सुबह-सुबह दतुन क्यों रखते हो, पागल हो गये हो? पत्थर को दतुन रखते हो? पागल हो गए हो! कहते हो, भगवान सोयेंगे, अब भोजन करेंगे। जब उनको पसीना आ रहा है, तो बाकी सब चीजें भी ठीक हो सकती हैं। वह ठीक कह रहा है, उसे कुछ पता नहीं है कि वह जो पत्थर है, पारस है। वह भाप को पी जाता है, गर्मी पड़ती है, उसमें से पसीना निकलता है। जिस ढंग से आपमें पसीना बह रहा है, उसी ढंग से उसमें भी, तो शरीर की अपनी एयरकंडीशनिंग की व्यवस्था है। वह पानी को छोड़ देता है, ताकि पानी भाप बनकर उड़े और शरीर को ज्यादा गर्मी न लगे। वह पत्थर भी पानी पी गया है। लेकिन जब तक हमें पता नहीं है, तब तक बड़ा मुश्किल होता है। फिर इस संबंध में, जिस वजह से उन्होंने पूछा होगा, वह मेरे खयाल में है। दो बाते और समझ लेनी चाहिए।

एक तो यह कि चमत्कार संत तो कभी नहीं करेगा! नहीं करेगा, क्योंकि कोई संत आपके अज्ञान को न बढ़ाना चाहेगा और कोई संत आपके अज्ञान का शोषण नहीं करना चाहेगा। संत आपके अज्ञान को तोड़ना चाहता है, बढ़ाना नहीं चाहता। और चमत्कार दिखाने से होगा क्या? और बड़े मजे की बात है, क्योंकि पूछते हैं कि जो लोग राख से पुड़िया निकालते हैं, आकाश से ताबीज गिराते हैं...काहे को मेहनत कर रहे हैं, राख की पुड़िया से किसका पेट भरेगा? एटामिक भट्टियाँ आकाश से उतारो, कुछ काम होगा। जमीन पर उतारो, गेहूँ उतारो- गेहूँ के लिए अमेरिका का हाथ जोड़ों! और असली चमत्कार हमारे यहाँ हो रहे हैं। तो गेहूँ क्यों नहीं उतार लेते हो? राख की पुड़िया से क्या होगा, गेहूँ बरसाओ!

जब चमत्कार ही कर रहे हो, तो कुछ ऐसा चमत्कार करो कि मुल्क का कुछ हित हो सके। सबसे ज्यादा गरीब मुल्क है दुनिया का और सबसे ज्यादा चमत्कार यहाँ हो रहा है। धन बरसाओ, सोना बरसाओ, मिट्टी को सोना बना दो। चमत्कार ही करने हैं तो कुछ ऐसा करो। स्विस मेड घड़ी चमत्कार में निकले, तो क्या फायदा? कम से कम मेड इन इंडिया भी निकालो। तो क्या होने वाला है? मदारीगिरी से होगा क्या? कभी हम सोचें कि हम इस पागलपन में किस भ्रां‍ति में भटके हैं?

साभार : भारत के जलते प्रश्न (स्वर्ण पाखी था जो कभी और अब है भिखारी है जगत का)
सौजन्य : ओशो इंटरनेशन फाउंडेशन