शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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बारिश पर प्रवासी कविता : पाहुन...

बारिश पर प्रवासी कविता : पाहुन... - Poems For Rainy day
बरखा-स हृदया
 
उमड़-घुमड़कर बरसे,
तृप्त हुई, हरी-भरी, शुष्क धरा।
 
बागों में खिले कंवल-दल,
कलियों ने ली मीठी अंगड़ाई।
फैला बादल दल, गगन पर मस्ताना
सूखी धरती भीगकर मुस्काई।
 
मटमैले पैरों से हल जोत रहा,
कृषक थका गाता पर उमंग भरा।
'मेघा बरसे, मोरा जियरा तरसे,
आंगन देवा, घी का दीप जला जा।'
 
रुनझुन-रुनझुन बैलों की जोड़ी,
जिनके संग-संग सावन गरजे।
पवन चलाए बाण, बिजुरिया चमके,
सत्य हुआ है स्वप्न धरा का आज,
पाहुन बन हर घर बरखा जल बरसे।
 
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