प्रेम जन्मेजय को 'व्यंग्यश्री 2009' सम्मान
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आधुनिक जीवन विसंगतियों से भरा हुआ है और बाजारवाद ने तो हमारे जीवन को नष्ट कर दिया है। व्यंगकार अपने समय का समीक्षक होता है इस कारण समाज में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। व्यंगकार का कर्म मनोरंजन करना कतई नहीं है, उसका कर्म तो ऐसी रचना का सृजन करना है जो सोचने को बाध्य करें। प्रेम जन्मेजय अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यंग्य की इसी भूमिका का निर्वाहन कर रहे हैं।' उक्त उद्गार प्रख्यात आलोचिका डॉ. निर्मला जैन ने, प्रतिष्ठित व्यंगकार प्रेम जन्मेजय को तेरहवें व्यंगश्री सम्मान से सम्मानित किए जाने पर अपने अध्यक्षीय भाषण में व्यक्त किए। इस व्यंग्यश्री सम्मान के तहत इकत्तीस हजार रुपए की राशि, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न, रजत श्रीफल, पुष्पहार एवं शाल प्रदान की गई। उल्लेखनीय है कि डॉ. प्रेम जन्मेजय की अब तक नौ व्यंग्य कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको अनेक सम्मान मिल चुके हैं। वे प्रसिद्ध पत्रिका 'व्यंग्य यात्रा' के संपादक हैं। इस अवसर पर श्रीलाल शुक्ल पर केंद्रित 'व्यंग्य यात्रा' के अंक का लोकार्पण भी किया गया। इस अवसर पर डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, डॉ. गोविंद व्यास, गोपालप्रसाद व्यास, त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी और राजधानी के कई प्रतिष्ठित साहित्यकार उपस्थित थे। साभार - गर्भनाल