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Written By भाषा

मुशर्रफ का एक और दाँव

मुशर्रफ का एक और दाँव -
पाकिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने के साथ ही कभी गरम, कभी नरम रुख अख्तियार करने वाले राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने शनिवार को अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए आपातकाल का ब्रह्मास्त्र चलाकर अपने व्यक्तित्व के पुराने रूप को ही दोहराया है।

1998 में सैन्य प्रमुख के पद पर बहाल किए गए जनरल परवेज मुशर्रफ ने रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के जरिये 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ताच्युत कर पहली बार अपनी पकड़ से सबका परिचय कराया था।

आपातकाल की उनकी घोषणा को विश्लेषक हाल के दिनों में देश पर कमजोर होती पकड़ को फिर से मजबूत बनाने की उनकी कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।

कारगिल युद्ध की साजिश रचने के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते रहे मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में अगस्त 1943 में हुआ। भारत का विभाजन होने के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में बस गया था। उन्होंने सेना में अपना कॅरियर 1964 में शुरू किया।

शुरूआत में वे तोपखाना और इन्फैंट्री ब्रिगेड का नेतृत्व करते रहे। उसके बाद उन्होंने विभिन्न कमांडो इकाइयों का नेतृत्व किया। वे कथित तौर पर दो बार सैन्य प्रशिक्षण के लिए ब्रिटेन गए। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने मिलिट्री ऑपरेशंस का महानिदेशक नियुक्त किया था। इसके बाद उन्होंने सशस्त्र बलों का पूर्ण कार्यभार संभाला।

देश की निर्णय प्रक्रिया में सेना को महत्वपूर्ण भूमिका दिए जाने की माँग करने के दो दिन बाद सैन्य प्रमुख के पद से जहाँगीर करामात के इस्तीफा देने पर जनरल मुशर्रफ 1998 में सेना के शीर्ष पद पर पहुँचे।

तब उस घटनाक्रम को तमाम पर्यवेक्षकों ने देश पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मजबूत होती पकड़ के रूप में देखा था। कुछ स्वतंत्र टिप्पणीकारों ने कहा था कि मुशर्रफ को इस कारण सेना के शीर्ष पद पर नियुक्त किया गया, क्योंकि वे पंजाबी अधिकारियों के वर्ग से नहीं आते थे। शरीफ का मानना था कि मुशर्रफ की जातीय पृष्ठभूमि उन्हें अपना मजबूत आधार बनाने नहीं देगी।

भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई 1999 तक कारगिल संघर्ष हुआ, जिसकी साजिश रचने और उसे अमली जामा पहनाने का श्रेय जनरल मुशर्रफ को जाता है। हालाँकि वे खुद कहते रहे हैं कि यह फैसला पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने लिया था। दिलचस्प बात यह है कि इन्हीं के शासनकाल में भारत और पाकिस्तान का संबंध भी नई ऊँचाइयों पर पहुँचा।

12 अक्टूबर 1999 को सैन्य तख्तापलट के जरिये पाकिस्तान की कमान अपने हाथ में लेने वाले मुशर्रफ ने औपचारिक तौर पर 20 जून 2001 को खुद को देश का राष्ट्रपति नियुक्त किया। यह कदम उन्होंने आगरा सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आगमन से कुछ दिनों पहले उठाया। इससे पहले रफीक तरार पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे।

कभी तालिबान आतंकवादियों को शरण देने के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते रहे मुशर्रफ के जीवन में 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुआ आतंकवादी हमला एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में आया, जब पलटी मारकर वे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के साथ हो लिए।

देश में सैन्य तख्तापलट के बाद अक्टूबर 2002 में मुशर्रफ ने आम चुनाव कराए। चुनाव में मुशर्रफ समर्थक पीएमएल क्यू को सफलता मिली।

दिसंबर 2003 में मुशर्रफ ने छह इस्लामी पार्टियों के गठबंधन मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल के साथ एक समझौता किया, जिसमें उन्होंने वादा किया था कि वे 2005 तक सैन्य प्रमुख का पद छोड़ देंगे। हालाँकि उन्होंने इस वादे को अब तक पूरा नहीं किया।

हाल के दिनों में प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी के निलंबन और लाल मस्जिद के खिलाफ कार्रवाई जैसे कदमों से मुशर्रफ की पकड़ ढीली होती गई। उन्होंने सैन्य वर्दी में अगले पाँच साल के लिए राष्ट्रपति चुने जाने के लिए दोबारा चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें शानदार कामयाबी भी मिली।