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Last Updated : शनिवार, 2 अप्रैल 2022 (12:41 IST)

चैत्र नवरात्रि में 9 देवियों के 9 औषधीय रूप की करते हैं पूजा, जानिए नाम और मंत्र

चैत्र नवरात्रि में 9 देवियों के 9 औषधीय रूप की करते हैं पूजा, जानिए नाम और मंत्र - Navratri devi ke 9 aushadhi roop ke naam
Chaitra Navratri 2022
चैत्र नवरात्रि या शारदीय नवरात्र दोनों में ही माता के 9 औषधि रूप की पूजा भी की जाती है। ये औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली हैं। ये शरीर की रक्षा के लिए कवच समान कार्य करती हैं। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जी सकता है। आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है।
 
 
1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़- नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
 
शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:।
 
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानी ब्राह्मी- ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है।
 
ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
 
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर- नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। धनिये के समान इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।
 
चन्द्रघण्टा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
 
4. चतुर्थ कूष्मांडा यानी पेठा- नवदुर्गा का चौथा रूप कूष्मांडा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कूष्मांडा देवी की आराधना करना चाहिए।
 
कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम:।
 
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी- नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।
 
स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
chaitra navratri muhurat 2022
6. षष्ठम कात्यायनी यानी मोइया- नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करना चाहिए।
 
कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
 
7. सप्तम कालरात्रि यानी नागदौन- दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।
 
कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
 
8. अष्टम महागौरी यानी तुलसी- नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है। इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
 
महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
 
9. नवम सिद्धिदात्री यानी शतावरी- नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं।
 
सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम।
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