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Written By WD

साईं बाबा की पूजा करना गलत: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती

साईं बाबा की पूजा करना गलत: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती -
हिन्दुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शिर्डी के साईं बाबा के खिलाफ विवादित बयान देते हुए उनकी पूजा का विरोध किया है।
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एक न्यूज चैनल से बात करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि साईं बाबा की पूजा करना गलत है। उन्होंने साईं बाबा का मंदिर बनाने का भी विरोध किया। उन्होंने कहा कि साईं बाबा कोई भगवान नहीं है जो उनकी पूजा की जाए। उन्होंने कहा कि साईं बाबा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है तो फिर सिर्फ हिन्दू ही क्यों साई बाबा की पूजा करें। मुसलमान क्यों नहीं मानते साईं को?

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उन्होंने कहा कि मुसलमान तो मानते नहीं, हमीं क्यों माने? स्वरूपानंद ने कहा कि साईं बाबा के नाम पर पैसे बनाए जा रहे हैं। यह धर्म के खिलाफ है।

स्‍वरूपानंद ने साईं बाबा को भगवान मानने से इनकार किया है। उन्‍होंने कहा कि साईं बाबा अगर हिन्‍दू-‍मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं, तो उनकी पूजा मुसमान क्‍यों नहीं करते हैं।

स्‍वामी स्‍वरूपानंद ने कहा कि साईं बाबा के नाम पर पैसे कमाने का धंधा किया जा रहा है। स्‍वरूपानंद ने साईं बाबा को न केवल भगवान मानने से इनकार किया बल्कि उनकी पूजा को भी गलत बताया है। उन्‍होंने कहा कि साईं बाबा का मंदिर बनाना भी गलत है। शंकराचार्य के इस विवादित बयान से साईं बाबा पर आस्‍था रखने वालों को गहरा आघात लगेगा।

साईं मांसाहारी था और लोगों का...अगले पन्ने पर..


उन्‍होंने कहा कि साईं बाबा की पूजा हिंदू धर्म को बांटने की साजिश है। उन्‍होंने यह भी कहा कि साईं बाबा के नाम पर कमाई की जा रही है।

स्‍वरूपानंद ने कहा कि कहा जाता है कि पूजा अवतार या गुरु की जाती है। सनातन धर्म में भगवान विष्‍णु के 24 अवतार माने जाते हैं। कलयुग में बुद्ध और कल्कि के अलावा किसी अवतार की चर्चा नहीं है। इसलिए, साईं अवतार नहीं हो सकते।

रही बात गुरु मानने की। तो गुरु वह होता है जो सदाचार से भरा हो, लेकिन साईं मांसाहारी था, लोगों के खतना करवाता था, पंडारक समाज की औलाद था जो लुटेरा समाज था। ऐसे में वह हमारा आदर्श भी नहीं हो सकता।

स्‍वामी स्‍वरूपानंद ने कहा कि राम का मंदिर अयोध्‍या में बनाने का जो अभियान है, उससे ध्‍यान बंटाने के लिए साईं बाबा के नए-नए मंदिर बनाए जा रहे हैं। करोड़ों रुपए जुटाए जा रहे हैं। जो काम भगवान राम के लिए होना चाहिए, वह साईं के नाम पर हो रहा है।

हिन्दू प्रधान देश को खत्म करने की साजिश...


हिन्दुओं के सबसे बड़े गुरु स्‍वरूपानंद ने कहा कि हमारे पास शास्‍त्र भी है और तर्क भी। इनके आधार पर हम साईं का सच बता सकते हैं। उन्‍होंने कहा, 'भारत का राष्‍ट्रपति वहां (शिरडी के साईं मंदिर) गया। ये कहा जाता है कि यह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। लेकिन ये प्रतीक तब होता जब मुसलमान भी मानते। मुसलमान तो मानते नहीं हैं, फिर हम ही क्‍यों मानें। यह (प्रतीक मानने की बात) वहम है जो समाज में फैलाया गया है। ये ब्रिटेन की तरफ से हो रहा है। वे चाहते हैं कि भारत हिंदू प्रधान नहीं रहे।'

कौंन है स्वरूपानंद सरस्वती, अगले पन्ने पर....


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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर, 1924 को मध्य प्रदेश सिवनी जिले के दिघोरी गांव (जबलपुर के पास) में ब्राह्मण परिवार हुआ। उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और माता का नाम श्रीमती गिरिजा देवी है।

माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़कर धर्म यात्राएं प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी।

उन्होंने 1950 में ज्योतिष्पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। भारत को आजादी के बाद वह स्वामी करपात्रीजी महाराज द्वारा स्थापित 'रामराज्य परिषद्' पार्टी के अध्यक्ष बने। स्वरूपानंदजी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक के मठाधीश हैं।

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने पर वर्ष 1973 में उन्हें ज्योतिपीठ का शंकराचार्य बनाया गया। उन्हें कांग्रेस समर्थीत शंकराचार्य माना जाता है।