लद्दाख में मुस्तैद है भारतीय सेना...
ख़ूबसूरत वादियाँ, अलग-अलग रंग दिखाते पहाड़, बर्फ से ढँकी चोटियाँ, बौद्ध मठ, गेरुए चोगों में ढँके बौद्ध भिक्षु और मुस्कराते पहाड़ी चेहरों के अलावा अगर लद्दाख में कोई अन्य दृश्य प्रमुखता से आपका ध्यान खींचता है तो वह है सेना के जवान। हर जगह हर कदम पर मुस्तैदी से डटे। लेह शहर में भी, 17500 फुट ऊँचे चांगला दर्रे पर भी और पैंगांग झील के किनारे भी। इन हसीन वादियों की ख़ूबसूरत ख़ामोशी के बीच अचानक सुनाई देने वाली सैन्य बूटों की आवाज और घरघराते हुए गहरे हरे रंग के मिलिट्री के ट्रक आपको इस बात का एहसास दिलाते हैं कि आप 'दुनिया की इस छत' पर इन हसीन नाजारों का लुत्फ इसलिए ले पा रहे हैं क्योंकि वो मौजूद हैं। लेह से पैंगांग तक के रास्ते में तो ये मौजूदगी और भी प्रमुखता से महसूस होती है। काराकोरम की पहाड़ियों को चीरता संकरा पहाड़ी रास्ता जिस पर गाड़ी चलाना वहीं के अभ्यस्त कुशल ड्राइवर के ही बस की बात है। इस रास्ते पर जब आप लेह की 11,500 फुट की ऊँचाई से 17,500 फुट के चांग ला की ओर बढ़ते हैं तो आसपास के नजारे आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं। बादलों का तो जैसे घर ही यहीं है। पहाड़ की चोटियों से उनकी गलबहियाँ बस देखते ही बनती हैं। पहाड़ों का रंग कभी भूरा कभी चॉकलेटी तो कभी एकदम धूसर। बॉर्डर रोड़ ऑर्गनाइजेशन के दिलचस्प स्लोगन भी आपका ध्यान खींचते हैं। बीआरओ ने इस इलाके में सड़क बनाने का बहुत दुष्कर कार्य परिश्रमपूर्वक किया है। इसी सबके बीच फौज के अफसर जिप्सी गाड़ियों में आते-जाते दिखाई पड़ जाते हैं। साथ ही आपको दिखाई देते हैं मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित सैन्य फैक्ट्री में बने ट्रक। इन ट्रकों में रसद और सेना के जवान एक चौकी से दूसरी चौकी के बीच भेजे जा रहे हैं। जब इन ट्रकों से सामना होता है तो गाड़ी को किनारे कर इनको निकलने की जगह देनी होती है। सड़क इतनी चौड़ी नहीं है कि दो गाड़ियाँ एक साथ निकल जाएँ।
सामरिक दृष्टि से ये पूरा इलाका बेहद संवेदनशील...पढ़ें अगले पेज पर...