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Written By WD
Last Modified: शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013 (15:02 IST)

भोजशाला का इतिहास : शिक्षा केन्द्र से राजनीति के अखाड़े तक

- वेबदुनिया डेस्क

भोजशाला का इतिहास : शिक्षा केन्द्र से राजनीति के अखाड़े तक -
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भोजशाला या राजा भोज का हॉल (प्रांगण) प्राचीन काल में देवी सरस्वती का मंदिर और संस्कृत, पाली और प्राकृत के अध्ययन का बहुत बड़ा केन्द्र था। मध्य भारत में स्थित यह स्थल परमार राजवंश के राजा भोज से संबंधित रहा है। भोज की भोजशाला का जिक्र बहुत पहले से किया जाता रहा है।

राजा भोज अपने समय में दर्शन, खगोल विद्या, भेषज विज्ञान, योग, कला और संस्कृति के विभिन्न पक्षों से जुड़े थे और खुद बहुत बड़े जानकार थे। उनके बाद के उत्तराधिकारियों ने इस केन्द्र को संरक्षण देने में कोई कोताही नहीं बरती।

लेकिन मुगल और ब्रिटिश काल में ऐसे दस्तावेज सामने आने लगे जिनमें कहा गया कि यह प्राचीन स्थल मुस्लिम धर्मगुरु कमाल मौला से संबंधित है और मुस्लिम धर्माबलम्बी एक लम्बे समय से इस पर नमाज पढ़ते रहे हैं और कहते हैं कि यह एक ‍मस्जिद है जबकि हिंदुओं का दावा है कि यह देवी सरस्वती को समर्पित एक बड़ा प्रार्थना केन्द्र था जिसे अपने समय के शासकों का लगातार सहयोग मिलता रहा है।

अपने समय के ‍प्रसिद्ध विद्वान के.के.मुंशी ने इसे महान हिंदू संस्कति का तीर्थस्थल बताया था और कहा था कि यह आधुनिक हिंदू पहचान का एक जीवंत दस्तावेज है। 1903 में जब मुस्लिमों और ब्रिटिश शासकों ने एक ‍मस्जिद के तौर पर होने वाले गजट और नक्शे दर्शाए थे तब उन्होंने कमाल मौला मस्जिद की दीवारों पर राजा भोज के उत्तराधिकारी अर्जुनवर्मन के समय के संस्कृत और प्राकृत में लिखे शिलालेख खोज निकाले थे।

एक शिलालेख में इस बात का वर्णन है कि अर्जुनवर्मन के सामने सरस्वती के मंदिर में एक नाटक का आयोजन किया गया था। इससे इस बात का पता चलता है कि जब करीब 14 वीं सदी में मस्जिद का निर्माण किया गया तो उससे पहले यह संस्कृत भाषा के अध्‍ययन और अध्यापन का विश्व प्रसिद्ध केन्द्र था। राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं।

उन्होंने 'सरस्वती कंठाभरण' या 'सरस्वती की गले की माला' नामक पुस्तक लिखी थी। एक अंग्रेज अधिकारी सी.ई. लुआर्ड ने 1908 के गजट में इसका नाम भोजशाला ही लिखा था।

ईसा पूर्व एक हजार से लेकर 1055 के दौरान प्रदेश के धार जिले में एक ऐतिहासिक इमारत थी जोकि दुनिया में प्राचीन संस्कृत विश्वविद्यालय के तौर पर जानी जाती थी और इसमें सरस्वती की प्राचीन मूर्ति भी थी जोकि फिलहाल लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है।

भोजशाला अब धार्मिक विवाद के कारण भी जानी जाती है क्योंकि हिंदुओं का प्रमाणों,शिलालेखों के आधार पर कहना है कि यह सरस्वती को समर्पित स्थल था जहाँ संस्कृत, पाली और प्राकृत में हजारों की संख्‍या में किताबें थीं और विद्वान इनका अध्ययन करते हैं लेकिन 1879 में एक उल्लेख मिलता है कि भोजशाला के करीब एक छोटी सी मस्जिद भी है जिसे कमाल मौला की मस्जिद के नाम से अब जाना जाता है। ब्रिटिश समय के सरकारी गजटों और प्रेस के एक हिस्से के कारण 1952 से कमाल मौला के प्रांगण को कथित तौर पर मस्जिद की पहचान मिली।

स्वतंत्रता के बाद हिंदू और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग इसमें पूजा अर्चना करते थे लेकिन धीरे धीरे इस पर स्वा‍मित्व की लड़ाई बढ़ रही है। हालाँकि इस सारे मामले में राज्य की सरकार और प्रशासन का यही कहना होता है कि दोनों ही धर्मों के लोग अपने अपने पूजा अर्चना करते रहें लेकिन इसका नियंत्रण किसी भी धर्म को नहीं दिया जाएगा।

कुछ समय से वसंत पंचमी के दिन जब हिंदू सरस्वती देवी की पूजा करते हैं तब मुस्लिमों की ओर से माँग की जाती है कि उन्हें भी नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए।

लेकिन इस संबंध में उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार का कहना है कि दोनों ही धर्मों के लोग आपसी सद्‍भाव से पूजा अर्चना करते रहें, नमाज पढ़ते रहें लेकिन किसी प्रकार की अशांति नहीं होनी चाहिए ताकि धन-जन की हानि हो।