दुनिया की सबसे लंबी व पैदल धार्मिक यात्रा
नंदा देवी राजजात यात्रा
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ललित भट्ट, देहरादून से हिमालय महाकुंभ के नाम से विख्यात व विश्व की सबसे लम्बी व पैदल धार्मिक यात्रा का गौरव प्राप्त नंदा देवी राजजात यात्रा आगामी 17 अगस्त से शुरू होने जा रही है। यह यात्रा अपने आप में अद्भुत व रोमांचकारी यात्रा है। किसी जमाने में इस यात्रा का आयोजन क्षेत्र विशेष के लोगों की जिम्मेदारी होती थी, लेकिन आज इस यात्रा का विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद सफल संचालन करना सरकारों के लिए लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इतिहासकारों के अनुसार इस यात्रा की शुरुआत आठवीं सदी के आसपास हुई बताई जाती है। वह काल था जब आदि शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में चार पीठों की स्थापना की थी। तब से चली आ रही यह यात्रा आज भी उन्हीं मान्यताओं व उत्साह के साथ हर बारह वर्षों के बाद मनाई जाती है।इस यात्रा के पीछे मान्यता है कि नंदा देवी गढ़वाल के साथ साथ कुमाऊं कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थीं और वे उत्तराखंड की बेटी हैं, वह इस यात्रा के माध्यम से अपने ससुराल यानी कैलाश पर्वत जाती हैं। इस ऐतिहासिक यात्रा को गढ़वाल-कुमाऊं के सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। नंदादेवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली जनपद के नौटी गांव से शुरू होती है। जो नौटी से पैदल रहस्यमयी रूपकुंड होकर हेमकुंड तक जाती है। जो 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस 280 किमी की धार्मिक यात्रा के दौरान रास्ते में घने जंगल, पथरीले मार्गों व दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है।इस यात्रा को पूरा करने में 19 दिन का समय लग जाता है। रास्ते में विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरने वाली यह यात्रा में भिन्न-भिन्न पड़ावों पर लोग इस यात्रा में मिलकर इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं। इस यात्रा का आयोजन नंदादेवी राजजात समिति द्वारा किया जाता है।
अगले पेज पर देखें रहस्यमय रूपकुंड और चौसिंगा भेड़ा...
चारों ओर हिमालय के कुछ बर्फ और कुछ हरियाली से ढंके ऊंचे शिखर, उनके ऊपर नंदादेवी का आशीर्वाद बन मंडरा रहे सफेद बादलों की छत, पत्थर के स्लेटों की छत वाले सुंदर पहाड़ी गांवों के मकान और फूलों की डोली से जंगलों के बीच पगडंडियों से गुजरती नंदादेवी की यात्रा। इसके पीछे चल रहे सैकड़ों लोग व राजेश्वरी नंदादेवी के जयकारों से गुंजायमान वातावरण अपने आप में एक अद्भुद व अनूठी अनुभूति है।