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Last Updated : रविवार, 7 फ़रवरी 2021 (13:26 IST)

कौन है ‘धालीवाल’ जिसका कनेक्‍शन ग्रेटा थनबर्ग की ‘टूलकीट’ से है?

कौन है ‘धालीवाल’ जिसका कनेक्‍शन ग्रेटा थनबर्ग की ‘टूलकीट’ से है? - toolkit dhaliwal farmer protest
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की दिशा में काम करने वाली स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट से भारत में हंगामा मचा है। उन्होंने एक टूलकिट जारी कर किसानों  को समर्थन देने का ऐलान किया था। आमतौर पर टूलकिट एक तरह की गाइडलाइन है, जिसके जरिए ये बताया जाता है कि किसी काम को कैसे किया जाए।

थनबर्ग ने इस टूलकिट के जरिए लोगों को ये बताने की कोशिश की थी कि आखिर आंदोलन को समर्थन देने के लिए क्या कुछ और कैसे करना है। हालांकि उन्होंने बाद में इस टूलकिट को ट्विटर से हटा दिया। दिल्ली पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की है।

दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरंभिक छानबीन में इस दस्तावेज का जुड़ाव ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ नामक खालिस्तानी समर्थक समूह से होने का पता चला है। पुलिस का कहना है कि इस ‘टूलकिट’ का मकसद भारत सरकार के खिलाफ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जंग छेड़ना है। पुलिस का ये भी कहना है कि इस टूलकिट को खालिस्तान के एक ग्रुप ने तैयार किया था। कहा जा रहा है कि इस ग्रुप से कनाडा में जन्मे एक सिख मो धालीवाल का नाम सामने आ रहा है। ये भी कहा जा रहा है कि इस टूलकिट के पीछे धालीवाल का ही मुख्य तौर पर हाथ था।

ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखि‍र ये धालीवाल कौन है? मो धालीवाल पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन (PJF) का फाउंडर हैं। इसी पीजेएफ पर शक है कि उसने ये टूलकिट तैयार की जो ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीट की थी। इसके अलावा धालीवाल स्काईरॉकेट नाम की एक क्रिएटिव एजेंसी का फाउंडर भी है। ये एजेंसी कनाडा में है। कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि धालीवाल डायरेक्टर ऑफ स्ट्रैटेजी हैं।

धालीवाल खुद को खालिस्‍तानी बताता है। 17 सितंबर 2020 को अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्‍ट में धालीवाल लिखता है कि वो एक खालिस्‍तानी है। उसने लिखा है, 'आप शायद मेरे बारे में ये नहीं जानते होंगे। क्‍यों? क्‍योंकि खालिस्‍ताान एक विचार है। खालिस्‍तान एक जीता-जागता, सांस लेता आंदोलन है।' पोस्‍ट में उसने ये भी लिखा कि वो 1984 में छह साल का था।

सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन को हवा देने वाले एक खालिस्तानी समूह का वीडियो सामने आया है। इसमें धालीवाल कह रहा है कि अगर कल कृषि कानून वापस भी हो जाएं तो ये हमारे लिए जीत नहीं होगी।
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