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Last Updated : मंगलवार, 11 अप्रैल 2017 (12:42 IST)

तो यह है कूलभूषण को मृत्युदंड देने की असली वजह

तो यह है कूलभूषण को मृत्युदंड देने की असली वजह - reason behind Kulbhushan Jadhav sentence
हालांकि पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि कथित तौर पर भारतीय जासूस कुलभूषण सुधीर जाधव भारतीय खुफिया एजेंसी (रॉ) एजेंट है। बलूचिस्तान में मार्च, 2016 को पकड़े जाने के बाद फील्ड जनरल कोर्ट मार्शल ने उसे फांसी की सजा सुनाई। उल्लेखनीय है कि सैनिक कानूनों के तहत इस फैसले को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है, लेकिन इस मामले से जुड़े बहुत सारे तथ्य ऐसे हैं जो कहते हैं कि पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान का जाधव को फांसी की सजा दे देने की मंशा नहीं थी, लेकिन बाद में एक सोची समझी रणनीति के तहत उसे फंसाया गया और एक पूरी झूठी‍ कहानी गढ़ी गई है।
 
पाकिस्तान के इस फैसले के जरिए भारत को ब्लैकमेल करने के लिए पूरी तरह से नया मामला बनाया है। कहा जा रहा है कि नेपाल में एक पाकिस्तानी खुफिया एजेंट लेफ्टीनेंट जनरल (रिटायर्ड) मुहम्मद हबीब जहीर के गायब होने के बाद यह मामला गढ़ा है और पाक समझता है कि इस एजेंट के 'गायब होने' में भारत का हाथ है। इसलिए इस खुफिया आईएसआई एजेंट को छुड़ाने के लिए भारत पर दबाव बनाने के लिए कुलभूषण जाधव को मोहरा बनाने का फैसला किया गया।

कर्नल के बेटे साद हबीब को आशंका है कि रॉ के एजेंटों ने उनका अपहरण कर लिया गया है। इस कारण से जाधव को फांसी की सजा सुनाने का फैसला किया गया। लेकिन इस मामले का सबसे  अहम पहलू यह है कि जाधव को सजा सैन्य कोर्ट ने सुनाई है और सेना के कानूनों के मुताबिक  इस मामले का निपटारा और किसी कोर्ट में नहीं किया जा सकता है। इस बीच एक जर्मन राजदूत  ने कहा है कि जाधव का अपहरण तालिबान ने ईरान से किया है और बाद में उन्हें पाक खुफिया  एजेंसियों के हवाले कर दिया। इस बीत अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों से जुड़ी संस्था एम्नेस्टी ने  जाधव को फांसी की सजा सुनाने की आलोचना की है और पाक सैन्य अदालतों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
 
इस संबंध में उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने पिछले वर्ष दिसंबर, 2016 में देश की सीनेट में सांसदों को कहा था कि 'जाधव के कथित जासूसी मामले में जो प्रमाण प्रस्तुत किया गए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं।' उन्होंने यह भी कहा था कि 'जाधव पर तैयार डॉजियर में जो जानकारियां दी गई हैं, वे केवल बयान हैं। इसमें कोई भी निर्णायक प्रमाण नहीं है। तब अजीज का बयान यह बताने के लिए जारी किया गया था कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कथित तौर पर बलूचिस्तान में अलगाववाद भड़काने के प्रयासों के तौर पर पेश किया था ताकि भारत के खिलाफ विश्व जनमत बनाया जा सके। 
 
उस समय भारत ने जाधव की गतिविधियों की जानकारी को खारिज कर दिया था और पाकिस्तान के उच्चायुक्त को बुलाकर कहा था कि 46 वर्षीय जाधव के खिलाफ बिना किसी ठोस, विश्वसनीय प्रमाण के मामला बनाया गया है। तब भारत की ओर से कहा गया था कि जाधव को ईरान से अगवा किया गया और 'उनकी बाद में पाकिस्तान में मौजूदगी को लेकर जो स्पष्टीकरण दिया गया था, वह विश्वसनीय नहीं था।' जाधव ने कम से कम तेरह बार कहा कि उनका संपर्क भारतीय वाणिज्य दूतावास से सम्पर्क कराया जाए, लेकिन उन्हें यह सुविधा उपलब्ध कराई गई। एकाएक सैनिक कोर्ट ने उन्होंने मौत की सजा सुना दी।   
 
विदित हो कि इससे कुछ माह पहले एक वीडियो जारी किया था जिसमें जाधव का 'इकबालिया बयान' दिखाया गया था। इस वीडियो में वे एक पाक आर्मी ऑफिसर से यह कहते हुए दिखाई दिए कि वे 'वर्तमान में भी भारतीय नौसेना में सेवारत हैं' जबकि भारत सरकार का कहना हैकि जाधव एक पूर्व नौसेना अधिकारी हैं, जिनका भारत सरकार या सेना से कोई लेना-देना नहीं है। 
 
इस मामले में और भी बड़ी गड़बड़ियां हैं। इस वीडियो का फोरेंसिक परीक्षण बताता है कि इस 'जासूस वीडियो' को बुरी तरह से एडिट किया गया है और वीडियो को कई स्थानों पर जोड़-तोड़कर बनाया गया है। इस वीडियो में कई स्थानों पर कुलभूषण के चेहरे के हावभाव उनके बयान से मेल नहीं खाते हैं। पाकिस्तानी मीडिया में कहा गया है कि जाधव को तीन मार्च को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी को 24 मार्च को दिखाया गया।
 
जाधव की हिरासत और गिरफ्तारी में तीन सप्ताह का अंतर है जो गंभीर संदेह पैदा करते हैं कि जाधव पर दबाव डालकर, थर्ड डिग्री तरीकों के इस्तेमाल करके पाकिस्तानी एजेंसियों ने इकबालिया बयान हासिल किया है। विदित हो कि पाकिस्तान ने जाधव मामले को ठीक उसी समय उठाया जब पाकिस्तान की संयुक्त जांच टीम ने पठानकोट आतंकी हमले की जांच के लिए भारत में कदम रखा था। क्या यह सारा मामला पूर्व नियोजित नहीं है?
 
जाधव की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य के गृहमंत्री सरफराज बुगती ने घोषणा की थी कि जाधव को चमन से गिरफ्तार किया गया है। लेकिन पाकिस्तान सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनरल असीम बाजवा ने कहा था कि जाधव को सारावान से गिरफ्तार किया गया और यह स्थान बलूचिस्तान के धुर पूर्व में स्थित है और आपको यह जानकारी दे दें कि सारावान, जाहिदान के उत्तर पश्चिम में है और सड़क मार्ग से यह चमन से 873 किमी दूर है। पाकिस्तान की एजेंसियों के दावे में इतना विरोधाभास क्यों है?
 
जाधव की गिरफ्तारी की पाकिस्तानी कहानी की दूसरी बड़ा घोटाला यह है कि पाकिस्तान दावा करता है कि कुलभूषण जाधव के पास से भारतीय पासपोर्ट जब्त किया था जिसमें उन्हें मुंबई का रहने वाला हुसैन मुबारक पटेल बताया गया है। भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी विशेष रूप से प्रशिक्षित जासूस ऐसा पासपोर्ट लेकर नहीं चलेगा जोकि उसे उसके देश से जोड़ता हो। अगर जाधव वास्तव में रॉ एजेंट होते तो क्या वे फर्जी पाकिस्तानी पासपोर्ट और अन्य कागजात हासिल नहीं कर सकते थे? वे भारतीय पासपोर्ट लेकर क्यों पाकिस्तान में गिरफ्तार होने का जोखिल मोल लेते।
 
इतना ही नहीं, इन घपलों, घोटालों पर पर्दा डालने के लिए भी पाकिस्तान ने क्या-क्या किया, इस बात की जानकारी भी दी जा सकती है। रविवार को पाकिस्तान के गृहमंत्री निसार अली खान ने प्रेस को एक अपील जाहिर करते हुए कहा कि जाधव की गिरफ्तारी से ईरान को न जोड़ा जाए। उनका कहना था कि 'भारतीय खुफिया एजेंसी के नेटवर्क की गतिविधियों का कोई लेना-देना नहीं है। इस सबक को पाकिस्तान ने भी तब सीखा जबकि ईरान ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह ऐसे मामलों में ईरान का नाम न शामिल करे।
 
विदित हो कि इस्लामाबाद स्थित ईरान के दूतावास ने एक कठोर चेतावनी जारी की थी। ईरान की चेतावनी में कहा गया था कि पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान के मीडिया के कुछ हिस्सों में इस तरह की जानकारी दी जा रही है कि एक भारतीय एजेंट की गिरफ्तारी और इससे जुड़े मामले से ईरान को जोड़ा जा रहा है। इस तरह की बातों से ईरान और पाकिस्तान के मैत्री संबंधों पर असर पड़ सकता है। इसके तुरंत बाद पाक मीडिया में ऐसी खबरों और आई जिनमें ईरान के साथ अच्छे संबंधों की प्रशंसा में गीत गाए गए। 
 
इस घटनाक्रम पर गौर करें। 24 मार्च, को पाकिस्तान ने घोषणा की कि इसने बलूचिस्तान में रॉ के लिए काम करने वाले एक भारतीय एजेंट को गिरफ्तार किया गया। 26 मार्च, पाकिस्तान के सेना प्रमुख राहील शरीफ, ईरानी राष्ट्रपति रोहानी से मिले। पाक प्रेस के मुताबिक मिलिटरी की  मीडिया विंग ने दावा किया 'सेना प्रमुख शरीफ ने पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में रॉ की गतिविधियों, विशेष रूप से बलूचिस्तान में इन गति‍विधियों पर चिंता जाहिर की। उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी रॉ अपनी गतिविधियों में ईरान की भूमि का भी इस्तेमाल करती है।'
 
पाक के चीफ ऑफ आमी स्टाफ (सीओएएस) की ईरानी राष्ट्रपति के साथ बातचीत में यह चिंता जताई गई रॉ पाकिस्तान, विशेष रूप से बलूचिस्तान और कभी-कभी हमारे मित्र देश ईरान की धरती का भी इस्तेमाल करता है और रोहानी रॉ को कहें वे इन गतिविधियों को रोक दें और पाकिस्तान को स्थिर बना रहने दें।' अगले ही दिन, 27 मार्च को ईरानी राष्ट्रपति की ओर से इस बात का खंडन किया कि उनकी राहील शरीफ से ऐसी कोई बात हुई है। रोहनी की ओर से कहा गया कि जनरल शरीफ के साथ मेरी बैठक में भारतीय जासूस का कोई मुद्दा नहीं उठा। 
 
इस मामले से जाहिर होता है कि पाक सेना के विचित्र और असावधानी भरे कदम पाकिस्तान के सामरिक हितों का हिस्सा है और भारत सरकार को यह महसूस हो गया है कि यह पाकिस्तान की पड़यंत्रकारी नीतियों का हिस्सा है। साथ ही, यह भारत विरोधी गतिविधियों से बाज आने वाला नहीं है। गौरतलब है कि पाक की सैन्य कोर्ट का मुकदमा 'नो प्रूफ फाउंड' पर चलाया गया।