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Last Updated : बुधवार, 22 सितम्बर 2021 (15:57 IST)

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर : न्यायालय ने न्यास को लेखा परीक्षा से छूट देने की याचिका खारिज की

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर : न्यायालय ने न्यास को लेखा परीक्षा से छूट देने की याचिका खारिज की | Padmanabhaswamy Temple
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा संचालित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर न्यास को 25 साल की लेखा परीक्षा से छूट के लिए न्यास की याचिका बुधवार को खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने मंदिर की आय और व्यय की पिछले 25 वर्षों की लेखा-परीक्षा का आदेश दिया था।

 
न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि लेखा परीक्षा शीघ्र अतिशीघ्र पूरी हो जानी चाहिए और यदि संभव हो तो यह 3 महीने में पूरी हो जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि विचाराधीन लेखा परीक्षा का उद्देश्य केवल मंदिर तक ही सीमित नहीं था बल्कि न्यास से भी संबंधित था। इस निर्देश को 2015 के आदेश में दर्ज मामले में न्याय मित्र की रिपोर्ट के आलोक में देखा जाना चाहिए।
 
न्यायालय ने उसके द्वारा गठित प्रशासनिक समिति की निगरानी से छूट देने की न्यास की याचिका पर कोई आदेश नहीं दिया और कहा कि इसके तथ्यात्मक विश्लेषण की आवश्यकता है। केरल में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की प्रशासनिक समिति ने न्यास की लेखा परीक्षा का अनुरोध करते हुए न्यायालय से 17 सितंबर को कहा था कि मंदिर बहुत मुश्किल समय से जूझ रहा है और वहां चढ़ाया जाने वाला दान इसके खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने पीठ से कहा था कि केरल के सभी मंदिर बंद हैं। उन्होंने कहा था कि मासिक खर्च 1.25 करोड़ रुपए है, जबकि हमें मुश्किल से 60-70 लाख रुपए मिल पाते हैं इसलिए हमने कुछ दिशा-निर्देशों का अनुरोध किया है। बसंत ने कहा था कि मंदिर वित्तीय समस्याओं से गुजर रहा है और हम इसके संचालन में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि न्यास लेखा परीक्षा के लिए अपना रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराकर अपने दायित्व से बचने की कोशिश कर रहा है।
 
उन्होंने कहा था कि 2013 की लेखा परीक्षा रिपोर्ट के अनुसार न्यास के पास 2.87 करोड़ रुपए नकद और 1.95 करोड़ रुपए की संपत्ति है और इसीलिए यह पता लगाने के लिए पूरी बात पर गौर करना होगा कि उसके पास कितना पैसा है। बसंत ने पीठ से कहा था कि न्यायालय के आदेश पर न्यास का गठन किया गया है और उसे मंदिर में योगदान देना चाहिए। न्यास की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने तर्क दिया था कि यह शाही परिवार द्वारा बनाया गया एक सार्वजनिक न्यास है, इसकी प्रशासन में कोई भूमिका नहीं है और यह न्यास याचिका में पक्षकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि मामले में न्यायमित्र ने न्यास का केवल जिक्र किया है।

 
उन्होंने कहा था कि इस न्यास का गठन मंदिर में परिवार की संलिप्तता वाली पूजा एवं अनुष्ठानों की निगरानी करने के लिए किया गया था और इसकी प्रशासन में कोई भूमिका नहीं है। न्यास के खातों की लेखा-परीक्षा किए जाने की न्यायमित्र की मांग के बाद ही यह उच्चतम न्यायालय के समक्ष इसका जिक्र किया गया। दातार ने कहा था कि इसकी लेखा-परीक्षा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह मंदिर से अलग है।
 
इससे पहले शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय के 2011 के उस फैसले को दरकिनार कर दिया था जिसमें ऐतिहासिक मंदिर के प्रबंधन और संपत्तियों का नियंत्रण लेने के लिए एक न्यास गठित किए जाने का राज्य सरकार को आदेश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने देश में सबसे अमीर समझे जाने वाले मंदिरों में शामिल इस मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर शाही परिवार के अधिकार बरकरार रखे थे। न्याय मित्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम के सुझाव के अनुसार न्यायालय ने प्रशासनिक समिति को पिछले 25 वर्षों से मंदिर की आय और व्यय की लेखा-परीक्षा का आदेश दिया था।(भाषा)
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