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Written By विकास सिंह

कांग्रेस का टीवी चैनलों की बहस से बहिष्कार का फैसला कितना सही?

कांग्रेस का टीवी चैनलों की बहस से बहिष्कार का फैसला कितना सही? - Congress decision of not to send spokespersons for TV debates is how much correct
भोपाल। लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस में हाहाकार मचा हुआ है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी जहां इस्तीफा देने पर अड़े हुए हैं तो कई प्रदेशों के पार्टी अध्यक्षों ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है। पार्टी की इस बड़ी हार के लिए कौन जिम्मेदार है? इसे लेकर बहस जारी है। इस बीच कांग्रेस ने एक बड़ा फैसला लेते हुए एक महीने तक टीवी न्यूज चैनलों की डिबेट के बहिष्कार का निर्णय लिया है।
 
पार्टी मीडिया सेल के अध्यक्ष रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि कांग्रेस ने तय किया है कि वो एक महीने तक अपने प्रवक्ताओं को टीवी चैनलों की डिबेट में नहीं भेजेगी। इसके साथ ही सुरेजवाला ने सभी मीडिया चैनलों और संपादकों से अनुरोध किया हैं कि वो कांग्रेस नेताओं को अपने शो में न बुलाएंं।
 
कांग्रेस ने ये फैसला उस वक्त लिया है, जब मीडिया में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे को लेकर कई तरह की खबरें चल रही हैं। पिछले दिनों खुद इन खबरों पर नाराजगी जाहिर करते हुए रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि मीडिया के एक धड़े में आने वाले अनुमानों, अटकलों, शिलालेखों और अफवाहों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इससे पहले चुनाव में करारी हार के कांग्रेस के अंदर से ही टीवी डिबेट के बहिष्कार करने का मांग उठी थी।
 
मध्यप्रदेश के भिंड से कांग्रेस प्रत्याशी देवाशीष जरारिया ने पार्टी की हार का ठीकरा टीवी चैनलों की टीवी डिबेट पर मढ़ते हुए पार्टी प्रवक्ताओं के डिबेट में जाने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी।
 
टीवी बहस से बहिष्कार का फैसला कितना सही? – कांग्रेस ने टीवी चैनलों की बहस से क्यों तौबा की इसका कोई स्पष्ट कारण रणदीप सुरजेवाला ने अपने ट्वीट में नहीं बताया लेकिन पार्टी के इस बड़े फैसले के बाद कई सवाल उठ खड़े हुए हैैं। पहला सवाल कि क्या कांग्रेस मान रही है कि टीवी डिबेट ने पार्टी को चुनाव हरा दिया? दूसरा सवाल कि क्या टीवी चैनलों की डिबेट ने कांग्रेस की छवि लोगों के मन में खराब कर दी है? तीसरा सवाल क्या कांग्रेस मान रही है कि टीवी चैनल पार्टी के नजरिए और खबरों को सही तरीके से नहीं रख रहे हैं?
 
कांग्रेस के इस फैसले पर पिछले बीस सालों से टेलीविजन न्यूज चैनलों में पॉलिटिकल चर्चा को होस्ट करने वाले वरिष्ठ संपादक शरद द्विवेदी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में राहुल गांधी को लेकर जो परिदृश्य चल रहा है और उस पर टीवी चैनलों का जो नजरिया है, उस पर विरोध दर्ज कराने के लिए शायद कांग्रेस ने ये बड़ा फैसला किया है।
 
कांग्रेस बॉयकाट कर ये बताना चाह रही है कि न्यूज चैनलों में हमारे पक्ष को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है, इसलिए वो लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रोटेस्ट का तरीका अपना रही है। शरद  कहते हैं कि इस पर बहस हो सकती है कि क्या कांग्रेस का विरोध करते का ये तरीका सहीं है या नहीं? इस पर भी सवाल उठ सकते हैं कि विरोध के इस तरीके से कांग्रेस अपनी बात पहुंचाने में सफल होगी या नहीं?
 
'वेबदुनिया' से बातचीत में शरद द्विवेदी मानते हैं कि जो भी घटा है वो हार और जीत के मनोविज्ञान की तरफ इशारा करता है। इसमें किसी पार्टी को दोष नहीं होता है। देश की जनता ने जो जनादेश भाजपा को दिया है़, अब उस जनादेश को लेकर मीडिया के बड़े वर्ग या कुछ हिस्से में जो नजरिया है, उसको लेकर अंसतोष और नाराजगी का भाव क्या होना चाहिए, ये भी एक सवाल है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह अपने पक्ष के लिए सामने आते रहती और फिर अगर आपको लगता कि आपका नजरिया सही तरीके से नहीं रखा जा रहा है तो पहले की तरह लोकतंत्रिक तरीके से अपना प्रोटेस्ट रखते कि हमारी बात को सुना नहीं जा रहा है।
 
शरद कहते हैं कि उनको उम्मीद है कि एक महीने का समय लंबा समय है और कांग्रेस के सीनियर नेता और खुद रणदीप सुरजेवाला इस पर विचार करेंगे। शरद महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि ये भी देखना होगा कि क्या ये फैसला राहुल गांधी की सहमति से लिया गया है या नहीं? अगर फैसले के पीछे राहुल की सहमति नहीं है तो उन्हें उम्मीद है कि खुद राहुल गांधी मुखर होकर इसके विरोध में कोई बात न कहें, क्योंकि राहुल एक पारंपरिक खांचे में बंधने वाले नेता नहीं हैं। इसके साथ ही इस फैसले के बाद इतना तो तय है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में दोफाड़ देखने को मिल सकती  है।
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