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Last Updated : बुधवार, 8 जुलाई 2020 (20:51 IST)

CBSE के सिलेबस पर छिड़ा राजनीतिक बवाल, विपक्ष ने मोदी सरकार पर लगाए आरोप

CBSE Syllabus |  CBSE के सिलेबस पर छिड़ा राजनीतिक बवाल, विपक्ष ने मोदी सरकार पर लगाए आरोप
नई दिल्ली। कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी के कारण स्कूल नहीं खुल रहे हैं और विद्यार्थी घर बैठकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। कोरोना संकट के बीच विद्यार्थियों  पर पाठ्‍यक्रम का बोझ कम करने के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने कक्षा 9वीं से 12वीं तक पाठ्‍यक्रम में 30 प्रतिशत सिलेबस को हटा दिया है। धर्मनिरपेक्षता, जीएसटी, राष्ट्रवाद और नागरिकता जैसे चैप्टर पाठ्‍यक्रम से हटा दिए गए हैं। अब इस पर राजनीतिक बवाल छिड़ गया है। विपक्ष इसे लेकर मोदी सरकार पर आरोप लगा रहा है। विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार नेउसकी असफलता को बताने वाले चैप्टर्स को सिलेबस से हटा दिया है।
कौन-कौन से पाठ हटाए गए : सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं में अगले साल शामिल होने वाले विद्यार्थियों को धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद, नागरिकता, फूड सिक्योरिटी, संघवाद, नोटबंदी और लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में पढ़ने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि इन विषयों से संबंधित पाठों तथा कई अन्य पाठों को सिलेबस से हटा दिया गया।  
विशेषज्ञ कमेटी ने तैयार किया था खाका : केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने ट्‍वीट में जानकारी दी थी कि कुछ सप्ताह पहले शिक्षाविदों से सुझाव मांगे थे और इसके लिए डेढ़ हजार से अधिक सुझाव प्राप्त हुए थे। इसके लिए एनसीईआरटी और सीबीएसई बोर्ड के विशेषज्ञों की एक कमेटी ने पाठ्यक्रम में कटौती का खाका तैयार किया और उसके बाद कक्षा 9वीं से 12वीं के छात्रों के लिए यह फैसला लिया गया।
 
क्या कहना है सीबीएसई का : सीबीएसई ने शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए कक्षा 9वीं से 12वीं के लिए 30 प्रतिशत पाठ्‍यक्रम कम करते हुए कुछ चैप्टर हटा दिए। इसके मुताबिक 10वीं कक्षा के पाठ्‍यक्रम से हटाए गए पाठ वे हैं जो लोकतंत्र एवं विविधता, लिंग, जाति एवं धर्म, लोकप्रिय संघर्ष एवं आंदोलन और लोकतंत्र के लिए चुनौतियां जैसे विषय से संबंधित थे।

12वीं कक्षा के छात्रों को अब इस मौजूदा वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था का बदलता स्वरूप, नीति आयोग, जीएसटी जैसे विषय नहीं पढ़ाए जाएंगे। एचआरडी के अधिकारियों के मुताबिक पाठ्‍यक्रम को विद्यार्थियों का बोझ कम करने के लिए कम किया गया है, लेकिन मुख्य अवधारणाओं को जस का तस रखा गया है।
ममता बनर्जी ने किया विरोध : बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि पाठ्यक्रम से लोकतांत्रिक अधिकार, संघवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे महत्वपूर्ण चैप्‍टर हटाने के केंद्र सरकार के फैसले से वे 'हैरान' हैं। उन्होंने कहा कि हम महत्त्वपूर्ण विषयों को हटाने के सीबीएसई के फैसले का कड़ा विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि 'मैं इस बात से अचंभित हूं कि केंद्र ने सीबीएसई पाठ्यक्रम के 'भार' को कम करने के नाम पर नागरिकता, संघवाद जैसे बेहद महत्‍वपूर्ण विषयों को कैसे हटा दिया? हमें कड़ी आपत्ति है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार से अपील है कि इन महत्वपूर्ण पाठों को किसी भी कीमत पर हटाया नहीं जाए।
शशि थरूर बोले- देने वाला था बधाई : पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को टैग करते हुए ट्‍वीट में लिखा कि मैं पहले मंत्री को सीबीएसई का सिलेबस घटाने के लिए बधाई देने वाला था, लेकिन फिर मैंने देखा कि इन लोगों ने क्या हटाया है। उन्होंने लिखा कि अब 10वीं क्लास के बच्चे लोकतंत्र, लोकतंत्र को मिलने वाली चुनौती, धर्म, जाति जैसे विषय नहीं पढ़ पाएंगे। इसके अलावा 11-12वीं के बच्चे जो वोटर बनने की कगार पर हैं, उन्हें राष्ट्रवाद-सेक्युलरिज्म, बंटवारे और पड़ोसियों के साथ संबंध का पाठ नहीं पढ़ाया जाएगा।  

शिक्षाविदों की मिलीजुली प्रतिक्रिया : पाठ्यक्रम का बोझ कम करने के लिए उससे कुछ पाठों को हटाने के कदम का विभिन्न स्कूलों के प्रतिनिधियों ने स्वागत किया है। हालांकि शिक्षाविदों के एक वर्ग ने आरोप लगाया कि यह कदम ‘वैचारिक’ रूप से प्रेरित प्रतीत होता है।
 
हालांकि स्कूल प्रतिनिधियों ने इस संबंध में स्पष्टता की कमी को लेकर चिंता जताई कि क्या पाठ्यक्रम में कमी होने से नीट और जेईई जैसी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम पर कोई प्रभाव होगा।

शिक्षाविदों ने यह भी दावा किया कि ऐसा प्रतीत होता है कि पाठ्यक्रम में कमी करने के दौरान अधिक महत्व शैक्षणिक की बजाय ‘राजनीतिक विचार’ को दिया गया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान स्कूल में प्रोफेसर सुरजीत मजूमदार ने पीटीआई से कहा कि जो हटाया गया है, उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है इसमें कुछ वैचारिक तत्व हैं। आप इस समय के दौरान शिक्षण को कैसे बढ़ाते हैं? आप शिक्षा में निवेश को कम करने की कोशिश कर रहे हैं, आप छात्रों के शिक्षण से समझौता कर रहे हैं। 
 
उन्होंने कहा कि महामारी से निबटने का यह कोई तरीका नहीं हो सकता है। समायोजन के बारे में सोचने के अन्य तरीके हो सकते हैं जैसे कि अकादमिक कैलेंडर में समायोजन करना। आप प्राथमिक छात्रों के लिए क्या करेंगे? यह एक बहुत ही लापरवाह रुख है। यह दर्शाता है कि एक शिक्षित समाज बनाने के बारे में कोई दिलचस्पी नहीं है। 
 
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर राजेश झा ने कहा कि जब पसंद आधारित क्रेडिट प्रणाली को विश्वविद्यालय में शुरू किया गया था तब राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद पर प्रश्नपत्र जो पहले अनिवार्य था, उसे 2017 में वैकल्पिक बनाया गया था।
 
उन्होंने कहा कि अब, यह स्कूल पाठ्यक्रम के लिए भी हो गया है। दुर्भाग्य से, राजनीतिक विचार शिक्षण पर हावी हो गए हैं। इससे अकादमिक गुणवत्ता प्रभावित होगी। स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता की अवधारणाएं जुड़ी हुई हैं। एक को दूसरे के बिना कैसे सिखाया जा सकता है?
 
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के एक अन्य प्रोफेसर ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि लोकतंत्र और विविधता जैसे अध्यायों को छोड़ दिया गया है। इतिहास से सामाजिक सुधार आंदोलनों के बारे में महत्वपूर्ण अध्याय भी छोड़ दिए गए हैं। 
 
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में छात्रों के पाठ्यक्रम भार को कम करना समझ में आता है, लेकिन इनमें से कुछ अध्याय स्नातक अध्ययन में भी शामिल हैं, इसलिए छात्रों से कुछ मूल बातें जानने की उम्मीद की जाती है। 

राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने  ट्वीट किया कि हमें लोकतांत्रिक अधिकारों, लोकतंत्र, जेंडर, जीएसटी, नागरिकता, जनसंख्या संघर्ष और आंदोलनों, भारत के अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों पर शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम को कम करना ठीक है लेकिन यह अलग विचारों में कटौती करने का बहाना नहीं बनना चाहिए।

मॉडर्न पब्लिक स्कूल, शालीमार बाग की प्रधानाध्यापिका अलका कपूर ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा एक अच्छा जरिया है लेकिन इसकी कुछ सीमाएं हैं। मेरा मानना है कि पाठ्यक्रम में कमी एक उचित कदम है क्योंकि कई छात्र जो ग्रामीण, अल्पविकसित क्षेत्रों में रहते हैं, वे शिक्षा से वंचित थे क्योंकि उनकी उपकरणों, बिजली की आपूर्ति, और पर्याप्त बैंडविड्थ तक पहुंच नहीं थी - जो ऑनलाइन शिक्षा के पूर्व अपेक्षाएं हैं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में पाठ्यक्रम में कमी समझ में आती है।
 
डीएवी पब्लिक स्कूल, गुड़गांव के एक प्रतिनिधि ने कहा कि पाठ्यक्रम में कमी एक स्वागत योग्य कदम है।  ग्रीन फील्ड्स स्कूल से रुक्मिणी झा ने कहा कि असाधारण स्थितियों में ऐसे असाधारण उपायों की जरूरत होती है। झा ने कहा कि सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि क्या प्रवेश परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम कम किया जाएगा या वही रहेगा? (एजेंसियां)