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Last Updated : गुरुवार, 26 नवंबर 2015 (11:42 IST)

26/11 मुंबई आतंकी हमले की आज सातवीं बरसी

26/11 मुंबई आतंकी हमले की आज सातवीं बरसी - 26/11 Mumbai attack, terrorist attack
मुंबई। देश की औद्योगिक राजधानी में आज से ठीक सात साल पहले वही मनहूस दिन था, जब आतंकवादियों ने पूरे शहर में खूनी खेल खेला था। 26/11 का दिन जब भी आता है, तब मुंबई की छाती पर दिए गए जख्म एक बार फिर हरे जो जाते हैं। 
26 नवंबर 2008 ये वही रात थी जब पुरी मुंबई थम सी गई थी। पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने 60 घंटो तक मुंबई में खून की होली खेली, जिसके कारण 164 बेकसूर लोगों की मौत हुई थी और 308 लोग घायल हुए थे। 
 
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अन्य हस्तियों ने दक्षिण मुंबई में पुलिस जिमखाना स्थित 26/11 पुलिस स्मारक जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। फडणवीस ने कहा, ‘मैं बहादुर पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जो मुंबई की सुरक्षा के लिए लड़े और 26/11 को हमारे लिए प्राणों की आहुति दे दी।’

उन्होंने कहा, ‘हम पुलिस बल को बेहतर उपकरणों से सशक्त करेंगे। यह हमारी प्राथमिकता है।’ हमलों में मारे गए पुलिसकर्मियों के परिजन भी इस दौरान मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि मुंबई हमले में मरने वालों में 18 सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे।

एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, सेना के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे और वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक विजय सालसकर भी मरने वालों में शरीक थे।
 
हमला 26 नवंबर को शुरू हुआ था और 29 नवंबर तक चला था। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ओबेरॉय ट्राइडेंट, ताजमहल पैलेस एंड टॉवर, लीओपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल, नरिमन हाउस यहूदी सामुदायिक केंद्र उन स्थानों में शामिल थे जिनपर आतंकवादियों ने हमला किया।
 

मुंबई हमले की साजिश रचने वाला हाफिज सईद और हैडली आज भी आजाद घूम रहे हैं जबकि एकमात्र पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकी अब्दुल कसाब को 21 नवम्बर 2012 को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया था।

क्या 7 साल बाद भी सुरक्षित है मुंबई?
 
मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की आज सातवीं बरसी है। इस आतंकवादी हमले में 154 महिलाओं, पुरुषों और बच्‍चों को मौत के घाट उतार दिया गया था। सात वर्ष पहले समुद्र के रास्‍ते पाकिस्‍तान से मुंबई आकर आतंकियों ने जो कहर बरपाया था, उसने मुंबई की सुरक्षा पर एक सवालिया निशान खड़ा कर दिया था कि क्या भारत की समुद्री सीमा की निगरानी इतनी कमजोर है कि इसका इतनी आसानी से उल्‍लंघन किया जा सकता है। 
 
यह सवाल आज भी चिंता का विषय बना हुआ है कि क्या 7 साल बाद भी मुबई खुद को सुरक्षित महसूस करती है? क्या 7 साल बाद तटीय सुरक्षा को लेकर कुछ बदलाव हुआ है?

सरकार का दावा है कि उन्होंने मुबई की सुरक्षा पर 646 करोड़ रुपए खर्च किए है, जबकि वर्ष 2016 तक कोस्‍टल पुलिस से जुड़ी परियोजनाओं पर 1571.91 करोड़ रुपए और खर्च किए जाने हैं ताकि अत्‍याधुनिक इंटरसेप्‍टर बोट, इलेक्‍ट्रॉनिक आइडेंटिफिकेशन सिस्‍टम और संपूर्ण तट पर अनेक पुलिस थाने खोले जा सकें, लेकिन खराब डिजाइन के इक्विपमेंट, कमजोर प्‍लानिंग और ट्रेनिंग की कमी जैसी समस्‍याओं के कारण यह स्‍कीम खटाई में है।
 
ग्रीस में डिजाइन किया गया जी1205 इंटरसेप्‍टर हमारी समुद्री सीमा पर नजर पाने में सक्षम नहीं है। इंटरसेप्‍टर्स पर लगे अत्‍याधुनिक उपकरणों को 80 नॉट तक दूर से आने वाले डिस्‍ट्रेस कॉल को इंटरसेप्‍ट कर उस पर रेस्‍पॉन्‍ड करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। अब क्रू मेंबर्स की सुविधा और सुरक्षा का भी ज्‍यादा ख्याल रखा जा रहा है?  बोट पर मशीनगनों को दुश्‍मन की फायरिंग से बचाने का भी कोई इंतजाम नहीं है।

इलेक्‍ट्रॉनिक नेट के ऑप्रेशनल नहीं होने के कारण पोरबंदर में केवल तीन बोट्स के जरिए हजारों बोट्स की आवाजाही पर नजर रखी जाती है। इलेक्‍ट्रॉनिक नेट एक तरह का अलर्ट सिस्‍टम है, जिसके इर्द-गिर्द पूरा पैट्रोलिंग सिस्‍टम बनना है। 
 
गौरतलब है कि 26 नवंबर, 2008 को पोरबंदर (गुजरात) में रजिस्‍टर्ड मछली पकडऩे वाली बोट कुबेर में बैठ कर आतंकी मुंबई आए थे। पहले उन्‍होंने बोट के पांच क्रू मेंबर्स की जान ली और फिर उसके कैप्‍टन को मारा। उसके बाद मुंबई में उतर कर आतंकियों ने इस घटना को अंजाम दिया था।

इस घटना के बाद समुद्री सीमा पर निगरानी व्‍यवस्‍था मजबूत करने की जरूरत तो समझी गई, लेकिन इस पर अमल काफी ढीला है और इस कमजोरी को जल्द से जल्द दूर करने पर हमारी सरकार का ध्यान जाना चाहिए।