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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , गुरुवार, 26 जनवरी 2012 (10:04 IST)

गणतंत्र दिवस पर राजपथ से मैं जसदेव सिंह...

गणतंत्र दिवस पर राजपथ से मैं जसदेव सिंह... -
गणतंत्र दिवस पर राजपथ से मैं जसदेव सिंह..’ यह पुरकशिश आवाज करीब पांच दशक से देश को गणतंत्र दिवस की परेड का रेडियो और टेलीविजन पर हिन्दी में कमेंट्री का पर्याय है, जिसके जेहन में बहुत सारी यादें भी हैं। इस साल सिंह ने एक निजी टीवी चैनल के लिए गणतंत्र दिवस की कमेंट्री की है।

वर्ष 1963 गणतंत्र दिवस परेड का हिन्दी में आंखों देखा हाल सुना रहे जसदेव सिंह ने बताया कि कमेंट्री एक मुश्किल विधा है, जिसमें सही उच्चारण, बेहतरीन आवाज और ज्ञान का समन्वय बेहद जरूरी है। रेडियो के लिए कमेट्री करते वक्त श्रोता के सामने एक तस्वीर खींचनी जरूरी है, जबकि टेलीविजन के लिए कमेंट्री करते वक्त पर्दे पर दिख रहे दृश्य के अलावा दर्शकों को जानकारी देनी होती है।

बीते सालों में आये बदलाव के बारे में सिंह ने कहा कि पहले गणतंत्र दिवस पर पुलिस की सख्ती कम होती थी। खोमचे वाले भी दिखाई देते थे और लोग खाने पीने की चीजें लेकर पहुंचते थे। मगर वक्त के साथ सब कुछ काफी बदल गया और अब सुरक्षा कारणों से सख्ती काफी बढ़ गयी है।

करीब पांच दशक तक टेलीविलन और रेडियो के लिए कमेंट्री करने वाले उदघोषक ने बताया कि एक दफा वह 26 जनवरी को चार बजे से पहले राजपथ पहुंच गए और मूंगफली वाले के चारों तरफ लोगों को आग सेंकते हुए देखा और इसका जिक्र उन्होंने अपनी कमेंट्री में किया।

पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित सिंह ने कहा कि दूरदर्शन और निजी चैनलों के आने के बाद भी देश के लोग गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए काफी बड़ी तादाद में आते हैं और इसमें किसी तरह की कमी नहीं आयी है।

ऑलंपिक आर्डर से सम्मानित सिंह ने बताया कि राजपथ पर देश की रक्षा करने वाले जवान कदमताल करते चलते हैं तो मौजूद लोगों की आंखों में सम्मान का भाव दिखाई देता है, जो देश के गणतंत्र की शक्ति है। वह स्वयं भाव विभोर हो जाते हैं।

गणतंत्र दिवस परेड के बारे में सिंह ने कहा कि मेरा ऐसा मानना है कि परेड में झांकियों को कुछ कम किया जाना चाहिए। लोक कलाकारों और नटों के करतबों को शामिल किया जा सकता है, जिसका आम जनता के बीच आकषर्ण काफी होता है। इस तरह कुछ नये प्रयोग के प्रयास किए जाने चाहिए।

कमेंट्रेटर बनने के बारे में उन्होंने बताया कि मेरे परिवार ने एक जी ई रेडियो सेट खरीदा था और उस पर महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा का अंग्रेजी के कमेंट्रेटर मेलविल डिमेलो की कमेंट्री सुनकर मैंने अपनी मां से हिन्दी में कमेंट्री की इच्छा जताई थी।

रोचक तथ्य यह है कि वर्ष 1950 में आल इंडिया रेडियो के ऑडिशन में असफल रहने वाले सिंह ने 1955 में रेडियो जयपुर में 200 रुपये वेतन पर ‘आवाज का सफर’ शुरू किया। 1961 में पहली दफा लाल किले से स्वतंत्रता दिवस की कमेंट्री की और 1963 में राजपथ से गणतंत्र दिवस की कमेंट्री की।

नौ ऑलंपिक खेलों, छह एशियाड और आठ हॉकी विश्वकप की कमेंट्री करने वाले सिंह ने कहा कि आखिर अंग्रेजी की बैसाखियों के सहारे कब तक चलेंगे, लेकिन कमेंट्री करते समय तकनीकी शब्दों का हिन्दी में अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए। शब्दों के प्रयोग का भी काफी महत्व है, क्योंकि कमेंट्री को आम आदमी से लेकर विशेषज्ञ भी सुनता है।

उन्होंने बताया कि कमेंट्री में वह उर्दू के शेर और हिन्दी, अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं की कहावतों का प्रयोग करते हैं, जिससे यह काफी रोचक और कर्णप्रिय हो जाती है। इस साल गणतंत्र दिवस पर सिंह ने एक निजी चैनल के लिए कमेंट्री की है। (भाषा)