बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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मेरा ब्लॉग : मैदान-ए-जंग में मनु बनाम कद्दू

मेरा ब्लॉग : मैदान-ए-जंग में मनु बनाम कद्दू - webdunia blog
“आज फिर कद्दू...?.. मैं खाना नहीं खाऊंगा” मनु के इस एलान के साथ ही युद्ध की दुदुम्भी बज चुकी है। 
 
“कद्दू, लौकी, पत्तागोभी अपने घर में ऐसी सब्जियां ही क्यों बनती हैं?”
 

(एक बार मम्मा ने मनु को पसंदीदा सब्जियों की लिस्ट बनाने को कहा था। मनु की लिस्ट थी-आलू फ्राई, जीरा आलू, शाही पनीर, बटर पनीर .............|)
 
“ठीक है, कल करेला बनाउंगी”
 
“मम्मा, मैं मजाक के मूड में बिलकुल नहीं हूं, मैं खाना नहीं खाऊंगा, बस। 

मम्मा सुकून से थाली में कद्दू परोस रही है। यह नाटक का वह दृश्य है, जिसकी रिहर्सल लगभग रोज़ होती है।  संवाद भी दोनों पात्रों को मुंह ज़बानी याद है। आखिर 7-8 साल की प्रैक्टिस कम तो नहीं होती। 

 “मसाला कद्दू है, बेटू, तुम्हें पसंद आएगा” इस कमजोर कोशिश की नाकामयाबी का मम्मा को पूरा अंदाज़ा है। 
 
“कद्दू के साथ तो मसाला भी कद्दू हो जाता है”
 
10 सेकंड का मौन ........... मनु के शांति प्रस्ताव का संकेत
 
“अच्छा, ठीक है, पर मैं टीवी देखते हुए खाऊंगा”  मनु का ब्रह्मास्त्र। 
 
‘कद्दू/ लौकी / ....../.....= टीवी’  -  यह समीकरण दोनों पक्षों के समझौते का अंतिम बिंदु है। 
 
मनु जब से इस पृथ्वी लोक पर अवतरित हुआ है, जाहिर तौर पर मम्मा की प्राथमिकता सूची में प्रथम पायदान पर है और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण है, मनु की सेहत। मम्मा इसमें कभी कोई कोताही नहीं चाहती। 
नन्हा-सा चार-पांच माह का मनु एप्पल जूस कैसे चटखारे लेकर गटकता था। फिर दूध आटे की लापसी, मैश किया केला....। डेढ़-दो साल के मनु की खिचड़ी में मम्मा सब्जियां डालती तो पापा हंसते, “अभी कर लो अत्याचार, बाद में तुम्हारे नाक में दम करेंगे, यही लौकी-कद्दू”
 
(सरस्वतीजी विराजमान थी, तो कुछ और भी तो बोल सकते थे)
 
जितने लोग उतनी सलाहें- ‘टमाटर-सूप दो, भूख खुलती है|’ ‘कुछ नहीं, बस 3-4 केले, देखो कैसा मुटल्ला होता है’
 
अख़बार-मैगज़ीन जहां भी डाइट संबंधी सुझाव हैं, मम्मा की नज़र सबसे पहले ठहरती है। 
 
‘बच्चों का टिफ़िन बनाएं पौष्टिक और स्वादिष्ट’ –‘होल ग्रेन पास्ता’ ‘वेजिटेबल नूडल्स’
 
कई बार मम्मा को शक होने लगता है कि हम किस देश में हैं- चाइना, इटली या यू.एस?
 
इन बच्चों की बदलती खान-पान की आदतों से हम भारतीय तो बिलकुल नहीं लगते। दुनिया भर की फ़ूड चेन्स ने बाज़ार के साथ बच्चों की ज़बान पर कब्ज़ा कर लिया है। पहले ही बाज़ार में विविध भारतीय पकवानों, मिठाइयों की लज्ज़त, समोसे-चाट के चटखारों का आकर्षण क्या कम था, जो अब गली-नुक्कड़ पर बर्गर से चाउमिन तक के स्टॉल हैं। और तो और ‘चाइनीज कार्नर’ पर लड़का ठेठ देसी तड़के वाले नूडल्स इस ठसके के साथ परोसता है, जैसे उसका नाम चमन नहीं चांग चूं हो। इनके अलावा सपोर्टिंग रोल में चिप्स-कुरकुरे की असंख्य वेराइटी है ही... 
 
शायद यह व्यक्तिगत पसंद का मामला हो पर मनु फ़िलहाल विदेशी स्वाद आक्रमण से सुरक्षित है। लेकिन हिसाब बराबर करना तो आ ही गया है। 
 
“मम्मा, आज डिनर बाहर..? मैं पाव-भाजी खाऊंगा... प्लीज़, देखो मैं पित्ज़ा-पास्ता तो नहीं खाता हूं, न?”
 
“परसों ही तो घर में बनाई थी, पाव-भाजी|”
 
“हां, और आपने उसमें चुकुन्दर डाला था, है न?”
 
(इतनी सफाई से की गई मिलावट भी पकड़ी गई ....?)
 
 फिर रोज़ का सवाल, ‘आज मीठे में क्या है? मीठे का शौक ननिहाल से विरासत में मिला है। 
 
“नाना भी तो रोज़ खाते है मीठा..” और यह तर्क इमोशनली काम कर जाता है। 
 
पर पोषण का क्या? आजकल कितना स्ट्रेस है, पढ़ाई, कोचिंग, एक्स्ट्रा-एक्टिविटी... बच्चे को एनर्जी तो चाहिए। क्या करें,... हेल्थ ड्रिंक....., फ्रूट्स ......, मल्टी ग्रेन ..........?
 
टीवी पर स्लिम-ट्रिम डाइट एक्सपर्ट बता रही है – ‘12-14 साल के बढ़ते बच्चों के लिए ज़रूरी है -......ग्राम प्रोटीन, ............... ग्राम विटमिन ........’ ( ग्राम..? अब घर में तराज़ू ले कर बैठें..?)
 
‘यू सी, प्रोटीन इज़ वेरी इम्पोर्टेंट .. प्रोटीन के लिए एग्स, चिकन...’
 
शुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण परिवार में यह प्रश्न तो कभी किसी पीढ़ी के सामने नहीं आया होगा, ‘प्रोटीन कहां से लाए ?’
‘स्प्राउट.....हां...। पर मनु खाएगा.....? बिलकुल नहीं......। स्प्राउट के चीले..... शायद... 
 
‘डॉ. साहब, खाने में अब भी बहुत नखरे हैं। ग्रोइंग एज है, आप ही समझाइए’ डॉ. जैन, बचपन से मनु के डॉक्टर रहे हैं। 
 
‘बेटा क्या पसंद है तुझे? पाव-भाजी, पनीर, मीठा.? जो भी पसंद है, जी भर के खा... खुश होकर जो भी खाएगा, वही तन-मन को लगेगा’
 
दांव उल्टा पड़ गया है। सबसे विश्वस्त सेनापति ने एन युद्ध के समय पाला बदल लिया। 
 
लौटते समय दो समोसे, पानी-पुरी, घर पर पूड़ी आलू के बाद मनु ठंडी खीर के साथ जीत का जश्न मना रहा है। 
 
“मम्मा, डॉ. अंकल ने बोल दिया है... अब रोज़ आलू फ्राई .. ओ.के?”
“ओ.के ...” (क्या आलू में थोड़ा कद्दू मिलाया जा सकता है?)  मम्मा के रचनात्मक प्रयोग जारी हैं और जंग भी ...। 
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