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Last Updated : शुक्रवार, 24 जून 2022 (09:56 IST)

सामाजिक परिवर्तन की संवाहक होंगी द्रौपदी मुर्मू

सामाजिक परिवर्तन की संवाहक होंगी द्रौपदी मुर्मू - Draupadi Murmu will be the driver of social change
-शिवराज सिंह चौहान
 
भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जनजातीय गौरव द्रौपदी मुर्मू को भारत के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी घोषित कर न केवल समाज के सभी वर्गों के प्रति सम्मान के भाव को पुन: सिद्ध किया है अपितु कांग्रेस शासन के उस अंधे युग के अंत की भी घोषणा भी कर दी है जिसमें सम्मान और पद‌ अपने-अपने लोगों को पहचानकर बांटे जाते थे। भारतीय लोकतंत्र में यह पहली बार होगा, जब कोई आदिवासी और वह भी महिला इस सर्वोच्च पद को सुशोभित करेगी। भारतीय जनता पार्टी की सोच हमेशा से ही भेदभावरहित, समरस तथा समानतामूलक समाज की स्‍थापना की रही है।
 
भाजपा को अपने शासनकाल में 3 अवसर प्राप्त हुए और तीनों अवसरों पर उसने समाज के 3 अलग-अलग समुदायों से राष्ट्रपति का चयन किया। सर्वप्रथम अल्पसंख्यक वर्ग से महान वैज्ञानिक और कर्मयोगी डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, फिर दलित समुदाय के माननीय रामनाथ कोविंदजी और अब जनजातीय समुदाय से माननीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मूजी। हमें यह कहते हुए प्रसन्‍नता है कि अभी हाल ही में सं‍पन्‍न हुए राज्‍यसभा के लिए चुनाव में मध्‍यप्रदेश से हमने 2 बहनों को राज्‍यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित किया है जिसमें वाल्‍मीकि समाज की बहन सुमित्रा वाल्‍मीकि भी हैं।
 
भारतीय जनता पार्टी अद्वैत दर्शन के एकात्म मानववाद को मानती है जिसमें कहा गया है- 'तत्‍वमसि' अर्थात 'तू भी वही है'। पं. दीनद‌याल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन भी अद्वैत पर ही आधारित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 'सबका साथ, सबका विकास' का संकल्प भी एकात्म मानववाद की भावना से ही निकला हुआ है। मोदीजी के नि‍र्णयों में उनकी दूरदृष्टि और संवेदनशीलता हर भारतीय को स्‍पष्‍ट महसूस होती है।
 
मुझे याद आता है कि द्रौपदी मुर्मूजी को ओडिशा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक के सम्मान से सम्‍मानित किया था और इस सम्मान का नाम था- 'नीलकंठ सम्मान'। द्रौपदी मुर्मूजी समाज में सेवा का अमृत बांटती रही हैं। ओडिशा के बैदापैसी आदिवासी गांव में जन्मीं द्रौपदी मुर्मूजी ने अपने जीवन में कठोरतम परीक्षाएं दी हैं। उनके विवाह के कुछ वर्ष बाद ही पति का देहांत हुआ और फिर 2 पुत्र भी स्वर्गवासी हो गए। उन्‍होंने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में संघर्ष का मार्ग चुना और अपनी एकमात्र पुत्री के पालन-पोषण के लिए शिक्षक और लिपिक जैसी नौकरियां कीं। उन्‍होंने कड़ी मेहनत से पुत्री को योग्य बनाया।
 
जनसेवा की भावना से ओतप्रोत द्रौपदीजी ने रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद का चुनाव जीतकर सक्रिय राजनीति की शुरुआत की। वे भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा से जुड़ी रहीं और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं। ओडिशा में बीजू जनता दल एवं भाजपा की सरकार में मंत्री रहीं और 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
 
आदिवासी हितों की रक्षा के लिए वे इतनी प्रतिबद्ध रहीं कि तत्कालीन रघुवरदास सरकार के आदिवासियों की भूमि से संबंधित अध्यादेश पर इसलिए हस्ताक्षर नहीं किए, क्‍योंकि उन्‍हें संदेह था कि इससे आदिवासियों का अहित हो सकता है। वे किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकीं। यही कारण है कि ओडिशा में लोग उन्‍हें आत्‍मबल, संघर्ष, न्‍याय तथा मूल्‍यों के प्रति समर्पित ऐसी सशक्‍त महिला के रूप में देखते हैं जिनसे समाज के लोग प्रेरणा लेते हैं।
 
भारतीय जनता पार्टी प्राचीन भारत में महिलाओं, दलितों और आदिवासियों को जो गौरव और सम्‍मान प्राप्‍त था, उसे पुनर्स्‍थापित करना चाहती है। विदेशी आक्रां‍ताओं और स्‍वतंत्रता के पश्‍चात स्‍वार्थी राजनीतिक दलों ने इन वर्गों को सेवक या वोट बैंक बना दिया था, भाजपा उन्‍हें पुन: सामाजिक सम्‍मान और आत्‍मगौरव प्रदान करना चाहती है। हम चाहते हैं कि भारत में फिर अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महिलाओं के ऋषित्‍व की पूजा हो। मनुष्‍य का जन्‍म से नहीं, कर्म से मूल्‍यांकन हो, जैसे वाल्‍मीकि, कबीर या रैदास का होता रहा है। सामाजिक सोच और व्‍यवहार में महिलाओं, आदिवासी और दलितों को पर्याप्‍त सम्‍मान प्राप्‍त हो। इसी लक्ष्‍य को सामने रखकर रामनाथ कोविंदजी या श्रीमती द्रौपदी मुर्मूजी जैसे इन वर्गों के नेताओं को शीर्ष सम्‍मान देना भारतीय जनता पार्टी का उद्देश्‍य रहा है।
 
भारतीय जनता पार्टी सत्‍ता में केवल शासन करने के लिए नहीं है। हमारा उद्देश्‍य है कि भ्रमित हो चुकी सामाजिक सोच को सही दिशा दी जाए। हम भारतीय आदर्श जीवन मूल्यों को पुनर्स्‍थापित करने के लिए सत्‍ता में हैं। हम ऋग्‍वेद के इस मंत्र कि 'ज्योति‍स्‍मत: पथोरक्ष धिया कृतान्' अर्थात जिन ज्योतिर्मय (ज्ञान अथवा प्रकाश) मार्गों से हम श्रेष्ठ करने में समर्थ हो सकते हैं, उनकी रक्षा की जाए। हम समभाव को शिरोधार्य करते हैं और ज्योतिर्मय मार्गों की रक्षा के लिए वचनबद्ध हैं। हम राजनीतिक आडंबर के माध्‍यम से भोली और भावुक जनता को भ्रमित करने वाले लोगों से जनता को बचाने और उसे अंधेरे कूप से निकालने और गिरने वालों को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम जनता को वहां से बचाना चाहते हैं, जहां परिवारवाद का अजगर कुंडली मारकर उनका शोषण करने को जीभ लपलपा रहा है। जहां लोकतंत्र का सामंतीकरण हो गया है और ठेके पर राजनीतिक जागीरें दी जा रही थीं।
 
अब वह समय चला गया, जब चापलूसी करने वालों को सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत किया जाता था। स्‍वामी विवेकानंद का राष्ट्रोत्‍थान का आह्वान 'उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरन्निबोधत' हमारे प्राणों में गूंजता है। हम इसे जन-जन की रक्‍त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाले रक्त की ऊष्‍मा बना देना चाहते हैं।
 
भारतीय जनता पार्टी ने न केवल दलित, आदिवासी और महिलाओं को शीर्ष पद पर पहुंचाकर इन वर्गों का सम्मान किया है, अपितु राष्ट्र के सर्वोच्च पद्‌द्म सम्मानों को भी ऐसे लोगों के बीच पहुचाया है, जो उनके सच्चे हकदार थे। मोदीजी ने अपनी दूरदृष्टि से वास्‍तविक लोगों को पहचाना। अब पद्म पुरस्कार राष्ट्र की संस्कृति, परंपरा और प्रगति के लिए महान कार्य करने वाले वास्तविक व्‍यक्तियों, तपस्वियों, साहित्यकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों को दिए जा रहे हैं।
 
पिछले पद्‌म सम्मान समारोह में 30 हजार से अधिक पौधे लगाने और जड़ी-बूटियों के पारंपरिक ज्ञान को बांटने वाली कर्नाटक की 72 वर्षीय आदिवासी बहन तुलसी गौड़ा को दिया गया। उन्‍हें नंगे पांव पद्‌म पुरस्कार लेते देखकर किसका मन भावुक नहीं हुआ होगा? किसका मस्तक गर्व से ऊंचा नहीं हुआ होगा? हजारों लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले अयोध्या के भाई मोहम्मद शरीफ हों या फल बेचकर 150 रुपए प्रतिदिन कमाकर भी अपनी छोटी सी कमाई से एक प्रायमरी स्कूल बना देने वाले मंगलोर के भाई हरिकेला हजब्बा हों, क्या ये पहले कभी पद्म पुरस्कार पा सकते थे?
 
आदिवासी किसान भाई महादेव कोली जिन्‍होंने अपना पूरा जीवन देशी बीजों के संरक्षण एवं वितरण में लगा दिया, उन्‍होंने कभी पद्‌म पुरस्कार की कल्पना भी की होगी क्‍या? जनजातीय परंपराओं को अपनी चित्रकारी में उकेरने वाली हमारे मध्यप्रदेश की बहन भूरीबाई हों या मधुबनी पेंटिंग कला को जीवित रखने वाली बिहार की बहन दुलारी देवी या कलारी पयट्टू नामक प्राचीन मार्शल आर्ट्स को देश में जीवित रखने वाले केरल के भाई शंकर नारायण मेनन या गांवों और झुग्‍गी बस्तियों में घूम-घूमकर सफाई का संदेश देने और सफाई करवाने वाले तमिलनाडु के भाई एस. दामोदरन, मध्‍यप्रदेश के बुं‍देलखं‍ड के श्री रामसहाय पां‍डे- इनमें से किसी के बारे में पहले हम लोग सोच भी नहीं सकते थे कि उन्हें पद्म सम्‍मान मिलेगा। किंतु इन सभी भाई-बहनों को पद्म पुरस्‍कार मिले, क्योंकि यह भाजपा सरकार राष्ट्रवाद की जड़ों को सींचने वालों की पहचान करना और उन्हें सम्मानित करना अपना कर्तव्य समझती है।
 
अब सम्मान मांगे नहीं जाते हैं, अब सम्मान स्वयं योग्‍य लोगों तक पहुंचते हैं, ऐसे लोग जो उसे पाने के अधिकारी हैं, फिर चाहे वे कितने ही सुदूर क्षेत्र में गुमनाम जीवन ही क्‍यों न बिता रहे हों? राष्ट्रपति का चुनाव हो अथवा पद्म पुरस्कारों का वितरण, मोदीजी की दूरदृष्टि, संवेदनशीलता उन्हें राजनीतिक समझौतों या स्वार्थों से बाहर निकालकर पवित्रता प्रदान करती है।
 
भाजपा दलित, आदिवासी या महिलाओं को सम्‍मान देकर उन्‍हें उनके वास्तविक हकदारों तक पहुंचाकर समाज को जागृत करने और एक वैचारिक सामाजिक क्रांति करने का प्रयत्न कर रही है। जागृत जनता ही श्रेष्ठ राष्‍ट्र का, श्रेष्‍ठ भारत का निर्माण कर सकती है। 'ऐतरेय ब्राह्मण' में सदियों पूर्व लिख दिया गया था- 'राष्‍ट्रवाणि वैविश:' अर्थात जनता ही राष्ट्र को बनाती है।
 
द्रौपदी मुर्मूजी का राष्ट्रपति बनना भाजपा द्वारा समस्त आदिवासी और महिला समाज के भाल पर गौरव तिलक लगाने की तरह है। हमें अभी तक उपेक्षित और शोषित रहे वर्ग को समर्थ तथा सशक्त बनाना है। एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना सामाजिक सोच को अंधकार से निकालकर प्रकाश में प्रवेश कराना है। मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मूजी भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की संरक्षक और आदिवासी उत्थान की प्रणेता बनेंगी।

(लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।)
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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