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Written By Author अरविन्द तिवारी
Last Updated : बुधवार, 23 जून 2021 (19:19 IST)

शिवराज सिंह के संकटमोचक बने अरविन्द भदौरिया

राजवाड़ा टू रेसीडेंसी

शिवराज सिंह के संकटमोचक बने अरविन्द भदौरिया - Arvind Bhadauria became the troubleshooter of Shivraj Singh
बात यहां से शुरू करते हैं : मंत्रिमंडल में भले ही नरोत्तम मिश्रा नंबर दो की भूमिका में हों लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकटमोचक तो अब सहकारिता मंत्री डॉ अरविंद सिंह भदौरिया बन गए हैं। पिछले दिनों जब मिश्रा ने कैबिनेट में एक मुद्दे पर तल्खी दिखाई और विफर पड़े तो डॉक्टर भदौरिया सरकार के पक्ष में दमदारी से खड़े रहे और तुलसी सिलावट को साथ लेकर बोले कि इस मामले में सर्व अनुमति से यह निर्णय होना चाहिए और अंततः ऐसा ही हुआ। भदौरिया पिछले दिनों बीना के एक कार्यक्रम में भी जिस भूमिका में दिखे वह मुख्यमंत्री से उनकी नजदीकी का ही संकेत है।
 
पटेल के बदले सुर : कृषि मंत्री कमल पटेल के सुर करीब 15 महीने बाद कुछ बदले बदले से हैं। वे अब राग शिवराज बहुत अच्छे से गा रहे हैं। कभी सरकार और शिवराज के खिलाफ एक अलग अंदाज में बेहद मुखर रहने वाले पटेल अब मुख्यमंत्री के प्रति बेहद निष्ठावान नजर आ रहे हैं। इसका इनाम भी उन्हें मिलने लगा है। मूंग खरीदी के मामले में मुख्यमंत्री ने पटेल जैसा चाहते थे वैसा ही निर्णय लिया। वैसे जब पटेल शिवराज के बहुत छोटे से मंत्रिमंडल का हिस्सा बने थे तब तो यह कहा गया था कि नेता के ना चाहते हुए भी दिल्ली दरबार की बदौलत उन्हें यह मौका मिला है।
 
60 प्लस रहेंगे मार्गदर्शक की भूमिका में : वीडी यानी विष्णु दत्त शर्मा के पांव तो विद्यार्थी परिषद के जमाने से ही संगठन में मजबूत है उनका नेटवर्क भी इसी कारण गांव गांव में है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वे प्रिय पात्र इसलिए हैं कि जो भी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाती है उसका निर्वहन में पूरी ईमानदारी से करते हैं। दिल्ली के इशारे को भी वह बखूबी समझते हैं और उसे अमल में भी लाते हैं। प्रदेश कार्यकारिणी के गठन के बाद जिला इकाइयों को आकार दिया जा रहा है। अभी तक घोषित कई इकाइयों में जिस तरह से पदाधिकारी बनाए जा रहे हैं उससे यह स्पष्ट है कि अब भाजपा में 60 प्लस के नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका में ही रहना है। चाहे वह दिल्ली या भोपाल की टीम हो या फिर किसी मंडल में पदाधिकारियों का मनोनयन।
 
जोशी बन सकते हैं यादव की राह में रोड़ा : कोरोना के कमजोर पड़ने के बाद अब मध्य प्रदेश में उपचुनाव को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सबकी नजरें खंडवा पर हैं। बदली परिस्थितियों के मद्देनजर यहां का चुनावी बंद अब सत्ता पक्ष के लिए आसान नहीं माना जा रहा है। यही कारण है कि 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद विधानसभा और लोकसभा के 2 चुनाव हार चुके अरुण यादव एक बार फिर खंडवा में अपने लिए संभावनाएं टटोलने लगे हैं। पार्टी में उनके कुछ बड़े पैरोकार भी मदद कर रहे हैं, लेकिन कमलनाथ का रजामंद होना जरूरी है दूसरा निमाड़ के कांग्रेसियों का एक बड़ा वर्ग जिस तरह खरगोन विधायक रवि जोशी का नाम आगे बढ़ा रहा है वह भी यादव के लिए चिंता का विषय है।
 
निशाने पर मनोज श्रीवास्तव : ऐसा लग रहा है कि एम गोपाल रेड्डी के बाद सरकार के निशाने पर आने वाले दूसरे अफसर मनोज श्रीवास्तव होंगे। जिस तरह जल संसाधन विभाग में रेड्डी के दौर के निर्णयों के पन्ने पलटे जा रहे हैं उसी तरह ग्रामीण विकास विभाग में रहते हुए श्रीवास्तव ने अपने सेवाकाल के अंतिम 6 महीनों में जो आदेश जारी किए उन पर भी कुछ लोगों की निगाहें हैं। ये लोग मंत्रालय में बहुत अहम भूमिका में हैं और जो संकेत मिल रहे हैं उसके मुताबिक श्रीवास्तव से जुड़े एक मामले में अगले कुछ दिनों में सरकार की चिट्ठी प्रदेश की 2 शीर्षस्थ जांच एजेंसियों में से किसी एक के पास पहुंच सकती है। इतना जरूर पता चला है कि यह बहुचर्चित मामला वही है जिसके कारण श्रीवास्तव सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं पा सके हैं।
 
जांगिड़ की भी तो सुनो : युवा आईएएस अफसर लोकेश जांगिड़ को सेवा शर्तों के उल्लंघन के मामले में सरकार का कारण बताओ नोटिस तो बिल्कुल सही कदम है, लेकिन आईएएस अफसरों का एक बड़ा वर्ग यह भी मानता है कि जो मुद्दे जांगिड़ ने उठाए उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। पूरी निष्पक्षता से इनकी जांच होना चाहिए। यदि उनकी बात में दम है तो जहां सुधार की जरूरत है वहां सख्त निर्णय लेने से भी सरकार को परहेज नहीं करना चाहिए। वैसे इस घटनाक्रम के चलते बड़वानी कलेक्टर शिवराज वर्मा को लेकर सोशल मीडिया पर जो बातें हो रही हैं उससे कुछ तो समझ आ रहा है।
 
जिलों में एसपी की पदस्थापना के मामले में भले ही ऊंच-नीच हो सकती है लेकिन कलेक्टरों की पदस्थापना के मामले में मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने जो सिस्टम बना रखा है उससे इतर कोई आदेश होना बड़ा मुश्किल है। डायरेक्ट आईएएस में जहां 2013 बैच के अफसरों को एक तरीका मौका मिल रहा है वहीं प्रमोटी अफसरों में 2012 बैच के अफसर कलेक्टर बनाए जा रहे हैं। इस फार्मूले को अनदेखा करने का प्रयास मंत्रालय के ही कुछ अफसरों को भारी भी पड़ चुका है। यही कारण है कि जिले में पदस्थापना के इच्छुक कई प्रमोटी आईएएस अभी चुप्पी साधे बैठे हैं।

चलते चलते : अच्छा परफॉर्मेंस देने वाले युवा अफसरों को बड़े जिले की कमान देने के मामले में मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस बहुत उदार माने जाते हैं। यही कारण है कि कर्मवीर शर्मा को जबलपुर जैसा बड़ा जिला मिला। लेकिन कोरोना के दौर जबलपुर की जो खबरें वल्लभ भवन तक पहुंच रही है उसके बाद ऐसा लग रहा है कि वे संभवत: वहां लंबी पारी नहीं खेल पाएंगे।

पुछल्ला  : अपनी दो महिला मित्रों के बीच विवाद के कारण एक विशेष पुलिस महानिदेशक पहले से ही चर्चा में हैं। ताजा मामला पुलिस मुख्यालय में पदस्थ एक एडीजी का है। उन्हें अपने महकमे के ही एक छोटे कर्मचारी की पत्नी से इश्क हो गया है। इश्क भी ऐसा की मातहत पत्नी को तलाक देना चाहता है, लेकिन अफसर ऐसा भी नहीं होने दे रहे हैं। यानी खाएंगे भी और गुर्राएंगे भी जैसी स्थिति है।