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5 April 2020 light down : प्रधानमंत्री के संदेश का सम्मान पहले, वोट बैंक की राजनीति बाद में

5 April 2020 light down :  प्रधानमंत्री के संदेश का सम्मान पहले, वोट बैंक की राजनीति बाद में - 5 April 2020 light down
5 April 2020

 
सुयश मिश्रा
 
       प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 5 अप्रैल, रविवार को रात्रि नौ बजे देशवासियों से एक दिया जलाने, प्रकाश करने की अपील क्या कर दी कि देश की मोदी विरोधी राजनीति में जलाजला सा आ गया। सबसे पहले कांग्रेस नेता श्री अधीररंजन चैधरी ने मीडिया पर आकर घोषित किया कि वे दिया नहीं जलाएंगे। उनके बाद महाराष्ट्र से शिवसेना नेता श्री संजय राउत, म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह आदि अन्य नेताओं ने भी दिया जलाने वाले संदेश पर तंज कसे। श्री शशि थरूर ने तो नौ के अंक को ही हिंदू धर्म से जोड़ते हुए सांकेतिक भाषा में इसे भी हिंदुत्व का विस्तार बताने की कोशिश कर  डाली। विपक्ष की मोदी विरोधी राजनीति का यह रूप उसके बौद्धिक दिवालियापन को ही दर्शाता है । 
 
      रेखांकनीय है कि मोदी के ताली-थाली बजाने वाले बयान पर पहले भी श्री राहुल गांधी ने सवाल उठाया था, किंतु क्या हुआ? सारे देश ने मोदीजी के संदेश का सम्मान किया। विदेशों में श्री मोदी के इस प्रयत्न की प्रशंसा हुई। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री बोरिस जांनसन ने भी श्रीमोदी का अनुकरण करते हुये तालियाँ बजा कर महामारी से जूझ रहे अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्धन किया। अब फिर देश की अधिकांश जनता दीप जलाकर, प्रकाश करके अपने प्रधानमंत्री का समर्थन करेगी और विश्व फिर मोदी जी के इस प्रयास की सराहना करेगा। ऐसी स्थिति में विपक्ष के इन विरोधी बयानों का कोई अर्थ नहीं रह जाता। फिर भी विपक्ष उसका विरोध कर रहा है क्योंकि उसके पास कुछ सकारात्मक करने को, जनता को कोई रचनात्मक संदेश देने को कुछ है ही नहीं।
 
      विरोधियों का यह कहना सच है कि ताली-थाली बजाने या दीपक, मोमबत्ती आदि से प्रकाश करने से कोरोना नहीं मरेगा। उसे समाप्त करने के लिए, इस महामारी पर विजय पाने के लिए वैज्ञानिक चिकित्सकीय प्रयत्न करने होंगे। हमारे प्रधानमंत्रीजी भी यह बात जानते हैं। इसीलिए देश का शीर्ष नेतृत्व और प्रदेशों के मुख्यमंत्री चाहे वे किसी भी दल के क्यों ना हों, अपने दायित्वों के निर्वाह में कहीं पीछे नहीं हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल हों अथवा पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह या फिर उत्तर प्रदेश से श्री योगी आदित्यनाथजी -- सब कंधे से कंधा मिलाकर दिन-रात काम कर रहे हैं।

फिर भी विपक्षी वयानवाजी कहीं ना कहीं इन सब की मेहनत पर पानी फेरने वाली समाज-विरोधी मानसिकता को दर्शा रही है। ये नेता अपने समर्थक को 5 अप्रैल को प्रकाश ना करने का अप्रत्यक्ष संदेश प्रसारित कर जनता की एकजुटता को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां एक ओर देशवासी एकजुट होकर हर स्तर पर इस दुर्जेय लड़ाई को जीतने में जुटे हैं वहां देश के शीर्ष नेतृत्व में स्वयं को विपक्ष का बड़ा नेता समझने वाले ये लोग अकारण विरोध प्रकट कर यह प्रचारित करने में व्यस्त हैं कि वे श्री मोदीजी के साथ नहीं हैं। वे राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में भी पहले विपक्षी हैं और संवैधानिक रीति से भारी बहुमत से चुने हुए देश के प्रधानमंत्री के संदेश का सम्मान करना अपना कर्तव्य नहीं समझते।
 
      देश के प्रधानमंत्री ने घोर अंधकार में प्रकाश दर्शाने, दीप जलाने का जो संदेश दिया है वह कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले भी सैकड़ों बार सड़कों पर मशाल जुलूस, कैंडल मार्च निकलते रहे हैं लेकिन तब कभी भी, कहीं भी, किसी ने भी इनकी आवश्यकता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया। अब क्यों लगाया जा रहा है? वह भी कुछ विशेष दलों के विशिष्ट जनों द्वारा-यह विचारणीय है। इससे प्रश्नचिन्ह लगाने वालों की नीयत पर ही अधिक संदेह होता है।
 
      वास्तव में नारे, रैली-जुलूस, धरना-प्रदर्शन यह सब एकजुटता और संगठन-शक्ति प्रदर्शित करने के कारगर उपाय हैं। इसलिए सामाजिक-राजनीतिक मामलों में इनका उपयोग लंबे समय से होता आ रहा है मशाल-जुलूस, कैंडल मार्च, दीप आदि का आयोजन भी कार्यकर्ताओं में आशा और उत्साह का संचार करने के लिए होता है। इस समय यह संदेश कोरोना जैसी विश्वव्यापी महामारी के घोर अंधकार में भी आशा की किरण दर्शाने के लिए किया गया सुविचारित आवाह्न है।

देश की जनता में निराशा एवं नकारात्मक भावना न आए, उसे अपनी संगठित शक्ति का अनुभव हो; वह सकारात्मक ऊर्जा से भर कर इस संघर्ष को सफल बनाने के लिए और भी अधिक शक्ति लेकर आने वाले समय में विजय प्राप्त करे इसलिए इस सहज साध्य सरल अनुष्ठान के आयोजन का महत्वपूर्ण संदेश देश के प्रधानमंत्रीजी ने देश्वासियों को दिया है। इस अवसर पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस संदेश का आदर करना हमारा कर्तव्य है क्योंकि देशवासियों की सुरक्षा और देश के प्रधानमंत्री के संदेश का सम्मान पहले है, वोट बैंक की गहरी दलदल में धंसी संकीर्ण दलगत राजनीति बाद में।
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