मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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Written By गायत्री शर्मा

औरत का सच्चा रूप है माँ

औरत का सच्चा रूप है माँ -
NDND
बचपन में लोरियाँ सुनाती माँ
हर आहट पर जाग जाती माँ
आज गुनगुनाती है तकिये को लेकर
भिगोती है आँसू से उसे बेटा समझकर

स्कूल जाते समय प्यार से दुलारती माँ
बच्चे के आने की बाट जोहती माँ
अब रोती है चौखट से सर लगाकर
दुलारती है पड़ोस के बच्चे को करीब बुलाकर

कल तक चटखारे लेकर खाते थे दाल-भात को
और चुमते थें उस औरत के हाथ को
आज फिर प्यार से दाल-भात बनाती है माँ
बच्चे के इंतजार में रातभर टकटकी लगाती माँ

लाती है 'लाडी' बड़े प्यार से लाडले के लिए
अपनी धन-दौलत औलाद पर लुटाती माँ
आज तरसती है दाने-पानी को
यादों और सिसकियों में खोई रहती माँ

लुटाया बहुत कुछ लुट गया सबकुछ
फिर भी दुआएँ देती है माँ
प्यार का अथाह सागर है वो
औरत का सच्चा रूप है माँ
औरत का सच्चा रूप है माँ ....