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जानें क्या है ऑटिज्म?

शिवाली गुप्ता

Jaan-zahan | जानें क्या है ऑटिज्म?
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यह विकास संबंधी एक गंभीर विकार है, जो जीवन के प्रथम तीन वर्षों में होता है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। इससे प्रभावित व्यक्ति कुछ खास व्यवहार-क्रियाओं को दोहराता रहता है। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है। ऑटिज्मग्रस्त व्यक्ति संवेदनों के प्रति असामान्य व्यवहार दर्शाते हैं, क्योंकि उनके एक या अधिक संवेदन प्रभावित होते हैं। इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में दिखाई देता है, जैसे व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना।

ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। इसके लक्षणों की गंभीरता सीखने और सामाजिक अनुकूलता के क्षेत्र में साधारण कमी से लेकर गंभीर क्षति तक हो सकती है, क्योंकि एक या अनेक समस्याएँ और अत्यधिक असामान्य व्यवहार स्थिति को गंभीर बना सकता है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है।

यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है। प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत लड़के होते हैं। यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख है।

ऑटिज्म के लक्षण

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* ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति परस्पर संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं।

* उनकी संप्रेषण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है। लगभग 50 प्रश बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है।

*वे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया दर्शाते हैं।

*वे एक ही क्रिया, व्यवहार को दोहराते हैं, जैसे- हाथ हिलाना, शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाजें करना आदि

*खेलने का उनका अपना असामान्य तरीका होता है।

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कब करें विशेषज्ञ से संपर्क?
यहाँ कुछ ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं, जिनके दिखाई देने पर बच्चे में ऑटिज्म होने की संभावना हो सकती है। ऐसी स्थिति में शीघ्र से शीघ्र विशेषज्ञ से संपर्क किया जाना चाहिए।

* यदि बच्चा लोगों से संबंध स्थापित नहीं करता हो। अधिकांशतः ऐसी स्थिति जन्म बाद से ही पहचानी जा सकती है, जैसे सामाजिक मुस्कान विलंब से देना अथवा बिलकुल न देना, उठाने के लिए हाथ आगे न बढ़ाना, भावनात्मक लगाव का अभाव।

*भाषा के विकास में विलंब या अधूरा विकास, बिलकुल नहीं बोलना या सुनी हुई बात को बार-बार दोहराना।

*संवेदनों की स्पष्ट क्रियाहीनता, जैसे- वातावरण की वस्तुओं, घटनाओं आदि को बिलकुल भी देखना-सुनना नहीं, अल्प अथवा अधिक प्रतिक्रिया (ध्वनि, प्रकाश, स्पर्श, दर्द के प्रति)।

*मन में असामान्य भाव या भावहीनता, जैसे- खतरे की स्थिति में भय का अभाव, साधारण-सी बात पर अनियंत्रित प्रतिक्रिया, बिना कारण या अनियंत्रित ढंग से हँसना या रोना।

*घंटों तक एक ही क्रिया-व्यवहार दोहराते रहना, जिसका कोई स्पष्ट कारण न हो, जैसे आँखों के सामने बार-बार हाथ ले जाना, आँखों का भेंगापन, निरर्थक आवाजें करना, आँखों के सामने वस्तुओं को लटकाना या घुमाना, शरीर को हिलाते रहना आदि।

*सामान्य तरीके से खेल नहीं पाना, खिलौनों से न खेलकर अन्य वस्तुओं से असामान्य तरीके से खेलना।

*क्रियाओं एवं व्यवहार को दोहराते रहने के स्वभाव के कारण वातावरण में किसी भी प्रकार का परिवर्तन पसंद नहीं करना और उसका विरोध करना। जैसे- सोने का समय, भोजन का प्रकार, फर्नीचर की जमावट, आने-जाने का रास्ता, दिनचर्या आदि में उनकी जो आदत या पसंद होती है, उससे अलग कुछ करने पर उसका विरोध करना।

ऑटिज्म और भ्रांतियाँ

*ये बच्चे अल्पबुद्धि वाले हों, ऐसा जरूरी नहीं है। ऐसा देखा गया है कि कुछ बच्चों का बौद्धिक स्तर सामान्य बच्चों जैसा या उनसे भी अधिक होता है। कुछ ऑटिस्टिक बच्चे तो बहुत कलात्मक गुण वाले भी होते हैं। चूँकि ये बच्चे समाज में मान्य तरीकों को सीखने में असमर्थ होते हैं और ज्यादातर इन बच्चों में भाषा संबंधी दोष होते हैं, इसलिए इनका अभिव्यक्ति का तरीका सामान्य बच्चों से हटकर होता है।

*इन बच्चों को समाज में सहभागिता से रहने, खेलने, उठने-बैठने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। अतः इनसे भागने की बजाय हम सबको मिलकर इन्हें अपनाना चाहिए। हम जितना इन बच्चों से बातें करेंगे, उतना ही ये समाज से जुड़ेंगे। यदि हम अपने सामान्य बच्चों को इनसे दूर न ले जाकर, इनका तिरस्कार न करके सामान्य बच्चों को इन बच्चों की समस्याओं से अवगत कराएँ तो हम सामान्य बच्चों के मन में इन बच्चों के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना तो जगा ही सकते हैं, साथ ही सामान्य बच्चों को ऑटिस्टिक बच्चों के समस्यात्मक व्यवहार को अपनाने से भी रोक सकते हैं।

*ये बच्चे आक्रामक नहीं होते। इनका व्यवहार एवं अपनी बात को प्रकट करने का तरीका कुछ अलग होता है। उनके अनोखे तरीकों को देखकर अक्सर हमें गलत- फहमी हो जाती है। 1 या 2 प्रतिशत केस में बच्चे के आक्रामक होने की संभावना हो सकती है यदि ऑटिज्म के साथ-साथ बच्चे को कई बड़ी समस्या भी हो तो। इसके लिए हमें ऐसे बच्चों के साथ बातें करते समय सावधान रहने की आवश्यकता है, उनसे भागने की नहीं।

*यह सोचना कि ये बच्चे कुछ नहीं कर सकते, बिलकुल गलत है। चूँकि इन बच्चों में बौद्धिक क्षमता अलग-अलग होती है, इसलिए ये सभी प्रकार के क्षेत्रों में आगे बढ़ सकते हैं। इनको सिर्फ सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। ये बच्चे किसी एक क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं जैसे संगीत, नृत्य या कलात्मक कौशल में।

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*ऑटिज्म एक अवस्था है, न कि बीमारी। इसके प्रभावों को दवाइयों से कुछ हद तक नियंत्रण में रखा जा सकता है, लेकिन ऑटिज्म को खत्म नहीं किया जा सकता। यह अवस्था जन्मजात भी हो सकती है और जन्म के कुछ सालों बाद भी हो सकती है।

*यह अवस्था जीवनपर्यंत व्यक्ति में रहती है। बच्चे के बड़े हो जाने या शादी कर देने से इसमें अपने आप कोई कमी नहीं आती। हाँ, सही समय पर सही मार्गदर्शन में इसके प्रभावों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

ऑटिज्म वैसे तो व्यक्तिगत समस्या है, लेकिन इसका समाधान सामाजिक स्तर पर होना आवश्यक है।