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जिसकी तस्वीर ने शिक्षा-व्यवस्था की पोल खोल दी

जिसकी तस्वीर ने शिक्षा-व्यवस्था की पोल खोल दी - Cheating in Bihar shcool
एक तस्वीर एक हजार शब्दों के बराबर होती है। मीडिया की पढ़ाई इसी मुहावरे से शुरू होती है। इस मुहावरे को हाल में साकार किया – बिहार के एक युवक ने। उसकी खींची तस्वीर ने बिहार की पोल तो खोल ही दी, साथ ही शिक्षा व्यवस्था पर गहरे सवालों के पिटारे को भी खोल दिया। पूरी दुनिया ने उस तस्वीर को देखा लेकिन इस तस्वीर को लेने वाले को लोग जान न पाए। आज हम उस युवक से आपको मिला रहे हैं। देखिए सुशांत झा की यह खास रिपोर्ट वर्तिका नन्दा, संपादक, मीडिया दुनिया। 
 
नाम राजेश कुमार, उम्र सत्ताईस साल और पेशा अखबार में संवादसूत्र-सह फोटोग्राफर का। बिहार के जिला वैशाली के सुदूर गांव का एक ऐसा नाम जिसे बहुत लोग नहीं जानते लेकिन जिसकी एक तस्वीर ने देश भर में हंगामा कर दिया और साथ ही पूरी दुनिया में चर्चित रही। हिंदुस्तान दैनिक के लिए बिहार के वैशाली जिले के सहदेई बुजुर्ग प्रखंड में काम कर रहे उस संवाद-सूत्र सह फोटोग्राफर राजेश कुमार की स्कूली परीक्षा में नकल वाली तस्वीर पर अमेरिका से लेकर कनाडा तक और ऑस्ट्रेलिया से लेकर कोचीन तक अखबारों और टीवी चैनलों ने स्टोरी छापी/चलाई लेकिन उस शख्स के बारे में गूगल पर सर्च करें तो उसकी तस्वीर तक नहीं मिलती।
 
बिहार की स्कूली परीक्षा में नकल वाली राजेश की तस्वीर सोशल मीडिया पर ऐसी वाइरल हुई कि एक अनुमान के मुताबिक उस तस्वीर को एक करोड़ से ज्यादा बार शेयर किया गया। राजेश का गांव शेखोपुर, सहदेई बुजुर्ग प्रखंड का हिस्सा है जिसकी दूरी जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर है। वो संवाद-सूत्र का काम करने के साथ-साथ वहीं पर एक छोटा सा फोटो स्टुडियो भी चलाते हैं। इंटरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त राजेश पिछले दो साल से हिंदुस्तान के लिए काम कर रहे हैं और उससे पहले वे जिला मुख्यालय हाजीपुर में प्रभातखबर में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम करते थे।
  
“आपकी तस्वीर पूरी दुनिया में चर्चा में रही और इस पर बिहार सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। आपको कैसा लगता है?” ‘मुझे तो कुछ खास नहीं लगता। मैं तो अपना काम सामान्य तरीके से कर रहा था। बस अपना काम करता रहता हूं। “क्या आपको एहसास था कि ये तस्वीर छपने के बाद इतना बड़ा असर पैदा करेगी?”  “नहीं, बिल्कुल नहीं”।
 
राजेश को ये भी नहीं पता कि उनकी तस्वीरों पर दुनिया भर में क्या-क्या प्रतिक्रिया हुई है या सोशल मीडिया पर उसकी क्या चर्चा हुई। वे सोशल मीडिया पर तो हैं लेकिन सक्रिय कम हैं और अपनी तस्वीर भी नहीं लगाते। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको पता है कि आपकी तस्वीर ने टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार चिदानंद राजघट्टा को संपादकीय पन्ने पर लेख लिखने को प्रेरित किया तो राजेश अनभिज्ञता में सिर हिलाते हैं।
 
राजेश के परिवार में सात सदस्य हैं। उनके पिताजी राजमिस्त्री हैं और ठेके पर मकान बनवाने का काम करते है और एक छोटा भाई है जो पढ़ाई करता है। उनकी शादी हो गई है और दो छोटे बच्चे भी हैं। थोड़ी-सी पुश्तैनी जमीन है जिस पर खेती-बाड़ी भी होती है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी सो इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने पढाई छोड़ दी और काम-धंधे में लग गए। 
“आपकी जब तस्वीर छपी तो घर वालों और गांववालों की क्या प्रतिक्रिया थी?” इस पर उनका कहना है, “घर में तो अधिकांश लोग अशिक्षित है, उन्हें तो मालूम ही नहीं है कि इस तस्वीर ने क्या हंगामा किया है। जहां तक गांव वालों का सवाल है तो कई लोगों ने तो ये तक कहा कि क्या जरूरत थी फोटो छापने की। इस सब में क्यों पड़ते हो। हालांकि सरकार से किसी स्तर पर किसी ने कोई दवाब नहीं दिया।” आपकी इस शानदार तस्वीर के लिए क्या आपके अखबार ने आपकी तारीफ की या इस बाबत कुछ छपा? “देखिए ब्यूरो चीफ ने तो काफी तारीफ की है। वैसे भी हमलोग अपना काम करते हैं, हमारा काम खबर भेजना है-खबर बनना थोड़े ही है!”
 
राजेश ने वो तस्वीर सोनी कैमरा से खींची थी, मैंने उनसे पूछा कि मॉडेल नंबर बताइये तो याद नहीं था। उन्होंने कहा कि अरे साहब सोनी का सबसे सस्ता वाला साढे पांच हजार का डिजिटल कैमरा था। राजेश की तस्वीर छपने के बाद उस तस्वीर पर व्यापक प्रतिक्रियाएं आईं और यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव तक को प्रतिक्रिया देनी पड़ी। जब नेताओं के बयान के बावत राजेश की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की गई तो राजेश ने हिचकते हुए इससे इनकार कर दिया। 
 
क्या आपने कभी फोटोग्राफी की कहीं ट्रेनिंग ली है? क्या आपको तस्वीर के बारे में वो प्रसिद्ध कहावत मालूम है कि ए पिक्चर इज वर्थ थाउजेंड वर्ड्स? क्या उन्होंने वियतनाम युद्ध के दौरान खींची गई उस लड़की की तस्वीर के बारे में सुना है जिसने अमेरिका को युद्ध रोकने पर मजबूर कर दिया? इस पर राजेश “ना” में सिर हिलाते हैं। “यहां तो ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं ली। न ही मुझे वैसी किसी कहावत के बारे में मालूम है। हम लोग तो सामान्य तौर पर अपना काम करते हैं, हमें कहां पता होता है कि हमारी तस्वीर ऐसा असर पैदा कर देगी। बहुत सारे लोगों के फोन आए हैं, कई लोग इंटरव्यू करना चाहते हैं। लेकिन मैं इन सबसे बचना चाहता हूं और अपना काम करते रहना चाहता हूं।”
 
ग्रामीण इलाकों में रिपोर्टिंग करना एक अलग तरह का मशक्कत भरा काम है। राजेश को अपनी खबरों को भेजने के लिए करीब दस किलोमीटर दूर जाकर साइबर कैफे से खबरें भेजनी होती हैं -लेकिन उनको अपने काम को लेकर सुकून है। वे कहते हैं कि एक अलग तरीके से हम भी देश की सेवा कर रहे हैं!