मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By गायत्री शर्मा

कहाँ गया मेरा लाल?

मेरा लाल मुझे लौटा दो...

कहाँ गया मेरा लाल? -
'ओ मेरे लाल आजा...' प्रत्येक माँ स्कूल गए अपने बच्चे का इंतजार करती हुई इन पंक्तियों को प्रतिदिन जरूर गुनगुनाती होगी। बच्चों की चिंता हर माँ-बाप को सताती है। बच्चा यदि स्कूल से घर लौटने में लेट हो जाए या किसी दोस्त के घर जाए... लेकिन जब तक वह घर नहीं लौटता है तब तक माँ-बाप की जान घबराती है। अपने लाल को सही सलामत घर पर पाकर ही उनकी जान में जान आती है।

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आए दिन बच्चों के साथ होती वारदातों को देखकर माँ-बाप भयभीत हो जाते हैं। अपने आसपास व टेलीविजन पर हत्या, अपहरण आदि की बढ़ती घटनाओं को देखकर उनके मन में भय घर कर जाता है और इसी भय के चलते वे अपने बच्चे को घरों में कैद कर देते हैं। एक ओर बच्चों के भविष्य का सवाल होता है तो दूसरी ओर बच्चों की सुरक्षा का।

भारत में हर साल बच्चों के अपहरण के हजारों मामले दर्ज होते हैं। देश में हर 23 मिनट में अपहरण का एक मामला सामने आता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2006 में अपहरण के 21,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए तथा वर्ष 2007 में यह आँकड़े पिछले आँकड़ों को भी पार कर गए।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट तो और भी चौंका देने वाली है जिसके अनुसार भारत में हर साल 45,000 बच्चों का अपहरण होता है। अपहरण के सर्वाधिक मामले दिल्ली व उससे जुड़े इलाकों में अधिक सामने आते हैं। बहरहाल बच्चों की सुरक्षा आज माँ-बाप की एक बहुत बड़ी चिंता बन गई है।

नोएडा का अनंत गुप्ता अपहरण कांड हो या कोलकाता का शुभम अपहरण कांड, चंडीगढ़ का अभि वर्मा हो या कोटा का वैभव- सभी मामलों में फिरौती व अपहरण के ढंग को लेकर कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। इन सभी मामलों मेअपहरणकर्ताओं का निशाना बने मासूम बच्चे। वे बच्चे जिन्हें तो यह भी नहीं पता कि अपहरण होता क्या है। उन्हें तो बस फिरौती के रूप में एक बड़ी रकम हासिल करने का माध्यम बनाया गया।

पालकों की जागरूकता से अपहरण की बढ़ती घटनाओं हर काबू पाया जा सकता है लेकिन सत्य तो कुछ और बयाँ करता है जिसके अनुसार अपहरण के केवल एक-तिहाई मामलों की ही पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है, बाकी मामलों को गुमशुदगी का नाम दे दिया जाता है।

चंबल के बीहड़ों से निकलकर अपहरणकर्ताओं ने पूरे देश में अपना कब्जा जमा लिया है, दुबई से लेकर भारत और अमेरिका तक इनके कारनामों के चर्चे हैं। बबलू श्रीवास्तव, जगजीवन परिहार, मुख्तार अंसारी... ये सभी अपहरण की दुनिया के सरताज हैं। ये सरेबाजार अपहरण की वारदातों को अंजाम देते हैं, परंतु अपराधों पर अंकुश कसने वाली पुलिस मूकदर्शक बनकर इन्हें देखती रहती है।

हर साल इस देश में 3 साल के अनंत की तरह हजारों नन्हे बच्चों की जान का सौदा करोड़ों रुपयों से किया जाता है, अभि की तरह कई माँओं के लालों को मौत की नींद सुला दिया जाता है, निठारी कांड की तरह अनगिनत मासूम बच्चों को निर्दयता से मार दिया जाता है... फिर भी यह राज लोकतंत्र कहलाता है।

क्या है कारण... ?
सामाजिक व आर्थिक असमानता, संतान न होने की कुंठा, आपसी रंजिश आदि बाल अपहरण के प्रमुख कारण हैं। इसके चलते अच्छे से अच्छे घरानों के लोग भी कभी-कभी यह भूल कर बैठते हैं।

क्यों नहीं उठाते आवाज...?
सभी पालक अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। उनकी छोटी सी भूल हमेशा के लिए उनके बच्चे को उनसे छीन सकती है। कभी-कभी तो ऐसी स्थिति सामने आती है कि पालकों को अपहरणकर्ताओं के साथ-साथ पुलिस को भी मुँहमाँगे रुपए देने पड़ते हैं। ऐसे में पालक पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराने की बजाय स्वयं ही अपहरणकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित करने में यकीन करते हैं।

अपराधी कौन...?
अपहरण व फिरौती के अधिकांश मामलों में अपराधी ड्राइवर, नौकर, दोस्त आदि होते हैं जो बच्चों व उनकी आदतों को करीब से जानते हैं। इसी निकटता का फायदा उठाकर वे आसानी से उनका अपहरण कर लेते हैं।