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Written By WD

इकलौते बच्चे की परवरिश

इकलौते बच्चे की परवरिश -
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महानगरों में एकल परिवारों में इकलौते बच्चे की परवरिश माँ-बाप के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। कई बार इकलौता बच्चा दूसरे बच्चों से व्यवहार व कार्यशैली में बिल्कुल अलग होता है। ऐसे बच्चे अक्सर जिद्दी व शरारती होते है। इन बच्चों को माता-पिता के लाड-प्यार के साथ उनकी विशेष देखभाल की जरूरत होती है। हम आपको बताते हैं कि एकल परिवार में अपने इकलौते बच्चे की परवरिश कैसे की जाएँ -

उद्दंड भी हो सकते हैं ये :
बच्चा अकेला होता है तो माता-पिता का पूरा ध्यान उसी पर होता है। शरारती बच्चे सबको अच्छे लगते हैं, मगर कई बार ये शरारतें दूसरों की परेशानियाँ बन जाती हैं। ऐसे में 'अकेला बच्चा है, उसे कैसे डाँटा जाए'' या 'बड़ा होकर ठीक हो जाएगा' जैसी बातें बच्चे को और उकसाती हैं, उसे उद्दंड बनाती हैं।

यदि आपका बच्चा भी इकलौता है और आप बेहतर नागरिक व सामाजिक मनुष्य के बतौर देखना चाहते हैं, उसे जिम्मेदार बनाना चाहते हैं तो कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी होगा।

बच्चे को समय दें :
कामकाजी होना अभिभावकों की जरूरत है तो बच्चे को समय देना उनका कर्तव्य है। यदि कामकाजी दंपत्ति के पास समय की कमी है तो कोशिश करें कि जो भी समय बच्चे को दे सकते हैं, वह क्वालिटी समय हो। बच्चे के साथ खेलें, उसे साथ लेकर उसकी पुस्तकों या कपड़ों की आलमारी साफ करें, किचन में कुछ-कुछ सीखें-सिखाएँ, सोते समय उसे अच्छी कहानियाँ सुनाएँ।

ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप किचन में खाना पकाने में जुट गईं और बच्चे को हिदायत दे डाली कि 'जाओ तुरंत होमवर्क करके दो....।' इससे कोई फायदा नहीं होगा। बच्चों के साथ रहना उसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।

यथार्थ का बोध कराएँ :
अकेले बच्चे को लाड़-प्यार दें, मगर उन्हें जिम्मेदारियों का अहसास कराएँ। उसे जीवन के वास्तविकता के बारे में बताएँ। उसे छोटी-छोटी जिम्मेदारी दें और कुछ मसलों पर उसकी राय लें, ताकि उसे महसूस हो कि वह भी महत्वपूर्ण है। बचपन से उसे कुछ छोटे-मोटे काम देकर उसकी जिम्मेदारी तय करें, इससे उसमें आत्मविश्वास भी पनपेगा।

मूल्य विकसित करें :
बच्चे को सुविधाएँ देते हुए उसे यह जरूर बताएँ कि देश में लाखों-लाख बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधाएँ तक मुहैया नहीं हैं। बच्चे की बर्थडे पार्टी को थोड़ा अलग ढंग से मनाया जाए, उसे उपेक्षित बच्चों में टॉफियाँ-खिलौने बाँटने को कहा जाए या उससे अनाथालय ले जाकर केक काटने को कहा जाए।

कहने का अर्थ यह कि उसे मालूम हो सके कि जीवन सिर्फ वही नहीं, जो वह जी रहा है या उसके वर्ग के अन्य लोग जी रहे हैं। उसे अच्छी पुस्तकें पढ़ने को दें। छुट्टियों में दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य संबंधियों के बीच जरूर ले जाएँ।

सामाजिकता का विकास करें :
पड़ोस में कोई आयोजन हो, पूजा या कोई विवाह पार्टी हो, बच्चे को साथ जरूर ले जाएँ, ताकि वह सामाजिक बन सके। उसे कभी-कभी चिड़ियाघर या किसी अच्छे पार्क में पिकनिक पर जरूर ले जाएँ। किसी भी सामाजिक-पारिवारिक या समूह कार्यक्रमों में उसे जरूर ले जाएँ।

अकेले बच्चों को ज्यादा से ज्यादा कंपनी देने की जरूरत है। उसे खुद समय दें, छुट्टी के दिन उसके मित्रों को घर में बुलाएँ या फिर खुद उसके साथ मित्रों के घर जाएँ, आसपास के बच्चों के साथ मिलकर कोई क्रिकेट मैच आयोजित कर लें।

इस तरह की गतिविधियों से उसमें सामाजिकता पैदा होगी। कई बार बच्चा कह देता है कि आप लोग जाएँ, मैं घर पर ही रहूँगा/रहूँगी। घर पर रहने का मतलब यह कि बच्चा टीवी-कम्प्यूटर से चिपका रहेगा। लिहाजा अपनी जिम्मेदारियों और बच्चों की शरारतों से बचने के लिए उसे ऐसी स्थितियों का शिकार न बनने दें। जहाँ तक भी संभव हो सके, उसे अपने साथ रखें।

बच्चे को कर्मठ बनाएँ :
बच्चे को बताया जाना चाहिए कि जीवन हमेशा एक-सा नहीं रहता, इसलिए उसे कर्मठ और लगनशील बनना चाहिए। बचपन से ही उसे घर के छोटे-मोटे काम सिखाएँ। वह पानी भर सकता है, गमलों में पानी दे सकता है, डस्टिंग कर सकता है, अपने जूते पॉलिश कर सकता है और किताबों की अलमारी ठीक कर सकता है।

छोटे-छोटे कामों से उसमें आत्मनिर्भरता आएगी और श्रम का मूल्य उसे पता रहेगा। बच्चा बेहद मासूम होता है, उसे जैसा ढालना चाहें, ढल सकता है। इसलिए उसे बचपन से ही अनुशासन व शिष्ठाचार का पाठ पढ़ाया जाए। आचार्य चाणक्य की एक सूक्ति कहती हैः

वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खाशतान्यपि,
एकै चंद्रः तमो हन्ति न चा तारागणा अपि।

अर्थात सौ मूर्ख पुत्रों की जगह एक गुणवान पुत्र श्रेष्ठ है क्योंकि केवल एक ही चंद्रमा रात्रि के गहन अंधकार को दूर कर देता है, जबकि चाँद न हो सहस्त्रों तारे मिलकर भी रात्रि का अंधकार कम नहीं कर सकते।