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Written By WD

अपने लाडले को बनाएँ सेल्फडिपेंडेंट

अपने लाडले को बनाएँ सेल्फडिपेंडेंट -
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घर से दूर रह रहे लड़कों को कई बार छोटी-छोटी बातों के कारण परेशान होना पड़ता है। मसलन कपड़े धोने, खाना पकाने, गलत दोस्त बन जाने आदि। ऐसे में आवश्यक है कि घर से निकलते समय उन्हें हर तरह से आत्मनिर्भर बनाकर ही भेजा जाए, ताकि वे रहें 'कॉन्फिडेंट' और आप रहें निश्चिंत।

निशा ने अपने बेटे को पीएमटी की तैयारी के लिए कोटा के एक कोचिंग संस्थान में एडमिशन दिला तो दिया, लेकिन उसे छोड़ने के बाद से ही वह बहुत परेशान है कि उसका लाडला वहाँ कैसे रह पाएगा। उसे तो घर से दूर रहने की आदत ही नहीं है। अकेले कुछ करना भी नहीं आता। ये समस्या सिर्फ निशा की नहीं, आजकल के उन सभी माता-पिता की है, जो चाहते हैं कि उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त करें। अच्छे शिक्षा संस्थानों में प्रवेश या कोचिंग के लिए भी बच्चों को अपना घर छोड़ अन्य शहरों में जाना पड़ता है, जहाँ हॉस्टल में अथवा कमरा लेकर पढ़ाई करना पड़ती है। ऐसी स्थिति में बच्चों को छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशानी होती है और वे इनसे घबरा जाते हैं, अतः जरूरी है कि बच्चों को थोड़ी-सी मानसिक और शारीरिक तैयारी के साथ बाहर भेजा जाए, ताकि वहीं वह पूरे मनोयोग से अपनी पढ़ाई कर सकें तो यहाँ माता-पिता भी बच्चों से संबंधित छोटी-छोटी चिंताओं से परे रह सकें।

कुछ घरेलू कार्य सिखाए

घर में तो बच्चों को लगभग हर सुविधा मुहैया हो जाती है। धुले प्रेस किए कपड़े, गर्मागर्म दूध-चाय का गिलास तैयार, तुरंत पिया और निकल गए, मगर हॉस्टल या कमरा लेकर रहने पर कई बार ऐसे कार्य स्वयं करना पड़ते हैं और वे परेशान हो जाते हैं, अतः उन्हें अपने जरूरी कपड़े हाथ से धोना, चाय बनाना, गिलास साफ कर लेना और जरूरत पड़ने पर शर्ट का बटन टाँक लेना और दाल-चावल या पोहा आदि आसान-सी वस्तुएँ पकाना भी सिखा दें, ताकि मजबूरी में उन्हें भूखे पेट रहने या दूसरों की तरफ मदद के लिए न देखना पड़े।

सच्चे मित्रों की महत्ता बताए

घर से बाहर परिवार साथ न होने पर दोस्तों का ही सहारा होता है। वहाँ कोई बीमारी घेर ले या कहीं आना-जाना हो, पैसों की कमी हो जाए तो सच्चे मित्र ही साथ देते हैं। उन्हें बताएँ की माता-पिता के दबाव में रहकर या मौज-मस्ती कर समय काटने वालों से मित्रता करने से बचें। व्यसनी मित्रों से परहेज कर सच्चे मित्र बनाएँ, जो खुशी और परेशानी दोनों को बाँटें।

सही खान-पान की आदत डाले

घर के खाने की बात ही अलग होती है, लेकिन घर के बाहर या हॉस्टल में खाना किसी एक की पसंद का नहीं बनता। इसलिए ऐसा खाना पसंद नहीं है, सब्जियाँ नहीं भाती या रोज-रोज दाल-चावल कैसे खाएँ, यह सोचकर भूखे रहने या बाहर (बाजार) का तला-गला खाकर तो गुजारा नहीं हो सकता। अतः सभी दाल, सब्जियों को थोड़ा-थोड़ा ही सही, खाने की आदत डालें। खाली पेट तो ठीक से पढ़ाई में भी मन नहीं लग सकता और स्वास्थ्य गड़बड़ा गया तो वहाँ रहना मुश्किल हो जाएगा।

थोड़ी व्यावहारिक सूझबूझ सिखाए

अपने (रूमेट) साथियों के साथ कैसे और कितना मेल-जोल बढ़ाएँ। अपनी वस्तुओं को शेयर करना, दूसरों के साथ सामंजस्य बनाकर रहना जैसी व्यावहारिकता निभाना भी बेटे को सिखाएँ। जरूरत पड़ने पर दोस्तों की सहायता करना, लेकिन अनजान लोगों पर एकदम विश्वास न कर लेना जैसी समझ भी दें, वहीं बैंक जाकर पैसे निकालना या रिजर्वेशन करवाने जैसी छोटी-छोटी बातों की जानकारी भी उसे होनी चाहिए। उसे बताएँ कि शुरुआत में नए माहौल में रहने, सामंजस्य बैठाने में थोड़ी मुश्किल तो महसूस हो सकती है, लेकिन उससे घबराकर वापस घर आने की तैयारी न कर डालें। ये सब बातें हमारे जीवन का एक हिस्सा हैं, जिसका हमें साहस एवं संयम के साथ सामना करना होता है। उसे इसका विश्वास दिलाएँ।

बड़े-बड़े शिक्षा संस्थानों में अलग-अलग शहरों से बच्चे आते हैं। सभी की आर्थिक स्थिति भी अलग होती है, अतः अपने बच्चों को आपसी वार्तालाप द्वारा इन बातों का आभास कराते चलें कि किन बातों पर खर्च जरूरी है और किन पर खर्च करने से बचा जा सकता है। मसलन एक-दूसरे की देखा-देखी बहुत सारे लेटेस्ट ट्रेंड के कपड़ों की बजाए कुछ बदल-बदल कर सीमित कपड़ों में भी काम चलाया जा सकता है। वहाँ रहकर फैशनेबल कहलाने की बजाए पढ़ना या करियर बनाना मुख्य उद्देश्य है। उसे अपने विवेक से खर्च करने की छूट दें, लेकिन (फोन द्वारा ही सही) इस पर नजर रखें कि वह किन वस्तुओं पर व्यय कर रहा है, क्योंकि मौज-मस्ती का प्रलोभन इस उम्र में सबसे ज्यादा आकर्षित करता है, जो उन्हें उनके लक्ष्य से भटका सकता है। एक निश्चित राशि खर्च के लिए देने के बाद अधिक लाड़ जताने के लिए माताएँ अलग से रुपए देने से बचें।

फोन और मोबाइल जैसी सुविधाओं के कारण हर समय आप बच्चे के साथ संबंध बनाए रख सकते हैं, लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर में फोन कर पल-पल की तफ्तीश ना करें। ये उन्हें डिस्टर्ब करने के साथ-साथ मित्रों के बीच मजाक का विषय भी बना देता है। एक नियत समय और अंतराल के बाद ही फोन पर बात करें।

इन सब बातों के साथ जरूरी है कि बच्चे के मन में अपने संबंधों के प्रति इतना विश्वास भर दें कि वह बिना हिचक अपनी हर छोटी-बड़ी बात आप से कह सके। कोई गलती हो जाने पर भी आप उसकी मदद के लिए उसके साथ हैं, ऐसा भरोसा बच्चे के मन में हो तो वह अपनी राह भटके बिना अपने लक्ष्य को जरूर पा लेगा।