बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सनातन धर्म
  3. महाभारत
  4. Lord krishna and women rights
Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : गुरुवार, 5 मार्च 2020 (15:51 IST)

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : श्रीकृष्ण ने की थी इन 16024 महिलाओं के आत्मसम्मान की रक्षा

international women's day : श्रीकृष्ण ने की थी इन 16024 महिलाओं के आत्मसम्मान की रक्षा - Lord krishna and women rights
भगवान श्रीकृष्ण का महिलाओं के प्रति विशेष अनुराग था और महिलाएं भी उनके प्रति विशेष अनुराग रखती थीं। इसके पीछे कई कारण हैं। पहला यह कि वे महिलाओं की संवेदना और उनकी भावनाओं को समझते थे, दूसरा यह कि वे उनका विशेष सम्मान करते थे, तीसरा यह कि वे उनकी रक्षा के लिए हर समय तत्पर रहते थे। हम बात कर रहे हैं कि श्रीकृष्ण ने कैसे किस तरह महिलाओं के सम्मान और उनकी इज्जत की रक्षा की थी। दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण का धर्म महिलाओं का ही धर्म है। श्रीकृष्ण के माध्यम से हजारों महिलाओं ने मोक्ष को पाया था। आओ जानते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में किन किन महिलाओं के सम्मान की रक्षा की, उनकी इच्छाओं की पूर्ति की और उनके जीवन को सुरक्षित बनाया।
 
 
1. द्रौपदी के सम्मान की रक्षा : श्री कृष्ण ने द्रौपदी के हर संकट में साथ देकर अपनी दोस्ती का कर्तव्य निभाया था। एक अन्य कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया गया, उस समय श्रीकृष्ण की अंगुली भी कट गई थी। अंगुली कटने पर श्रीकृष्ण का रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांधी थी।
 
 
इस कर्म के बदले श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देकर कहा था कि एक दिन मैं अवश्य तुम्हारी साड़ी की कीमत अदा करूंगा। इन कर्मों की वजह से श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी साड़ी को इस पुण्य के बदले ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और उनकी लाज बच गई। द्रौपदी का मूल नाम कृष्णा था।

 
2. कुंती का साथ दिया : कुंती वसुदेवजी की बहन, पांडु की पत्नी, पांडवों की मां और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। जब पांडु का देहांत हो गया तो कुंती अकेली हो गई थी। कुंती का हर कदम पर श्रीकृष्ण ने साथ देकर उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया था। उन्होंने ही द्रोपदी को हस्तिनापुर के महल में रहने के लिए कार्य किया और उनके पांचों पुत्रों को उनका हक दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किया। 

 
3.सुभद्रा का सम्मान : सुभद्रा तो बलराम और श्रीकृष्ण की बहन थीं। बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो, लेकिन सुभद्रा अर्जुन से विवाह करना चाहती थी। बलराम के हठ के चलते ही तो कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। विवाह के बाद वे 1 वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इन्द्रप्रस्थ लौट आए।

 
4. लक्ष्मणा का सम्मान : श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में एक जाम्बवती थीं। जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र का नाम साम्ब था। साम्ब का दिल दुर्योधन-भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन के विरोध के बावजूद श्रीकृष्ण ने उन दोनों के प्रेम का सम्मान किया और उनके विवाह की सभी बाधाएं हटाईं। 

 
5. उषा का सम्मान : इसी तरह कृष्ण ने अपने पुत्र प्रद्युम्न के पुत्र अनिुरुद्ध का विवाह भी अपनी जाति से बाहर किया था। अनिरुद्ध की पत्नी उषा शोणितपुर के राजा वाणासुर की कन्या थी। अनिरुद्ध और उषा आपस में प्रेम करते थे। उषा ने अनिरुद्ध का हरण कर लिया था। वाणासुर को अनिरुद्ध-उषा का प्रेम पसंद नहीं था। उसने अनिरुद्ध को बंधक बना लिया था। श्रीकृष्ण ने शिव से वरदान प्राप्त वाणासुर से भयंकर युद्ध किया और अनिरुद्ध-उषा को मुक्त कराया था। उषा एक असुर कन्या थीं लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण ने अपने पौत्र का विवाह उससे कराया था।

 
6. आठ पत्नियों का सम्मान : कृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी थीं। सभी से उन्होंने विशेष परिस्थितिवश विवाह किया। रुक्मिणी श्रीकृष्ण को चाहती थीं लेकिन उनके पिता और भाई उसका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे। ऐसे में श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का हरण करना पड़ा था। इसी तरह प्रत्येक पत्नि से विशेष कथा जुड़ी हुई है।

 
7. आठ सखियां : श्रीकृष्ण की राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। श्रीकृष्ण के माध्यम से सभी सखियों को मोक्ष प्राप्त किया था। कहते हैं कि ललिता को मोक्ष नहीं मिल पाया था तो उन्होंने मीरा के रूप में जन्म लेकर यह ज्ञान प्राप्त कर लिया था। तभी भी श्रीकृष्ण ने मीरा का साथ दिया था। मोक्ष प्राप्त करने के अर्थ है संबोधी, कैवल्य, मुक्ति या समाधी प्राप्त करना।

 
8. कृष्ण की 3 बहनें थी- 1. एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं), सुभद्रा (रोहिणी की पुत्री) और महामाया (देवकी की पुत्री और श्रीकृष्ण की सगी बहन) जिन्हें विंध्यवासीनी भी कहा जाता है। महामाया ने श्रीकृष्ण का हर कदम पर साथ दिया था। द्रौपदी उनकी मानस भगिनी थी।

 
9. भौमासुर से 16 हजार महिलाओं को मुक्त काया : कृष्ण अपनी आठों पत्नियों के साथ सुखपूर्वक द्वारिका में रह रहे थे, लेकिन त‍भी उन्हें इंद्र के द्वारा अत्याचारी भौमासुर (नरकासुर) के बारे में पता चला जिसने अदिति के कुंडल और देवताओं से मणि छीन कर लगभग 1600 हजार महिलाओं को बंधक बना लिया था, जिसमें से कई राजकन्याएं थीं। श्रीकृष्‍ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ भौमासुर से भयंकर युद्ध लड़कर उन 16 हजार महिलाओं को मुक्त कराया था।

 
सामाजिक मान्यताओं के चलते भौमासुर द्वारा बंधक बनकर रखी गई इन नारियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था, तब अंत में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया। ऐसी स्थिति में उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को ही अपना सबकुछ मानते हुए उन्हें पति रूप में स्वीकार किया, लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें इस तरह नहीं मानते थे। उन सभी को श्रीकृष्ण अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए। वहां वे सभी कन्याएं स्वतंत्रपूर्वक अपनी इच्छानुसार सम्मानपूर्वक द्वारका में रहती थी। महल में नहीं। वे सभी वहां भजन, कीर्तन, ईश्वर भक्ति आदि करके सुखपूर्वक रहती थीं। द्वारका एक भव्य नगर था जहां सभी समाज और वर्ग के लोग रहते थे। उनमें से कई महिलाओं से यादव पुत्रों ने विवाह भी किया था।