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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : गुरुवार, 14 मई 2020 (18:24 IST)

Mahabharat 4 May Episode 75-76 : महाभारत युद्धारंभ, पांडवों के शिविर में चिंता की लहर

Mahabharat 4 May Episode 75-76 : महाभारत युद्धारंभ, पांडवों के शिविर में चिंता की लहर - Kurukshetra war Stories
बीआर चौपड़ा की महाभारत के 4 मई 2020 के सुबह और शाम के 75 और 76वें एपिसोड में कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध का आरंभ बताया जाता है। इस युद्ध के प्रारंभ में बहुत ही रोचक घटनाक्रम के साथ ही भीष्म द्वारा पांडव पक्ष को भारी क्षति पहुंचाने के साथ ही विराट नरेश के पुत्र उत्तर का वध होना युधिष्ठिर को चिंतित कर देता है। लाशों के ढेर लग जाते हैं।
 
 
दोपहर के एपिसोड की शुरुआत कल के श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद के बाद युधिष्ठिर को रथ से उतरकर कौरव पक्ष की ओर बढ़ते हुए देखकर दुर्योधन कहता है कि देखिये पितामह लगता है कि धर्मराज युधिष्ठिर संधि की भीक्षा मांगने चला आ रहा है। द्रोण और भीष्म समझाते हैं कि वह संधि के लिए नहीं आ रहा है।
भीष्म पितामह के रथ के पास पहुंचकर युधिष्ठिर प्रणाम करता है। भीष्म रथ से नीचे उतरते हैं तो युधिष्ठिर उनके चरण स्पर्श करके कहता है कि मैं आपसे युद्ध की आज्ञा लेने आया हूं पितामह। भीष्म कहते हैं पुत्र युधिष्ठिर विजयीभव। दोनों के बीच मार्मिक संवाद होता है। इसके बाद युधिष्ठिर गुरु द्रोण से आशीर्वाद लेते हैं। द्रोण कहते हैं कि युद्ध के वक्त यह मत सोचना कि मैं तुम्हारा गुरु हूं और मैं भी नहीं सोचूंगा। उसके बाद युधिष्ठिर कृपाचार्य, शल्य आदि को भी प्रणाम करते हैं। दुर्योधन ये देखकर क्रोधित हो जाता है और कहता है जिससे हम युद्ध करने आए हैं पितामह, आप उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद दे रहे हो? तब भीष्म कहते हैं कि यदि तुमने युधिष्ठिर के चरण स्पर्श किए होते तो वे भी तुम्हें विजयश्री का आशीर्वाद दे देते। इसके बाद युधिष्ठिर अपने रथ पर पुन: चले जाते हैं।
रथ पर चढ़कर युधिष्ठिर कहते हैं कि यह कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र है। एक धर्मयुद्ध आरंभ होने ही वाला है। इसलिए मेरी सेना में यदि कोई ऐसा हो जो यह समझता हो कि धर्म हमारे प्रतिद्वंदियों के साथ है तो निष्ठाएं बदलने का यही समय है। वे लोग हमें छोड़कर अनुज दुर्योधन की ओर जा सकते हैं। और, अनुज दुर्योधन की सेना में यदि कोई ऐसा हो जो यह समझता हो कि धर्म हमारे साथ है तो मैं उसे अपने शिविर में आमंत्रित करता हूं। इससे पहले कि पितामह भीष्म युद्ध का शंख फूंकें, जिसे आना हो वह आ जाए और जिसे जाना हो वह चला जाए।
 
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तभी कौरव पक्ष की ओर से युयुत्सु की आवाज आती है। सारथी हमारा रथ युधिष्ठिर की ओर ले चलो। सभी यह देखकर अचंभित हो जाते हैं। दुर्योधन कहता है कि देख लिया पितामह सौतेला आखिर सौतेले ही होता है। इस पर शल्य कहते हैं कि यह न भूलो गांधारीनंदन की दो सौतेले उधर भी हैं।... युधिष्ठिर अपने पक्ष में युयुत्सु का स्वागत करते हैं।
 
फिर भीष्म पितामह युद्ध का शंख फूंक देते हैं और कहते हैं आक्रमण। उधर से धृष्टदुम्न भी कहते हैं आक्रमण। दोनों ओर से सेनाएं एक दूसरे की ओर बढ़ती है।
इधर, धृतराष्ट्र पूछते हैं संजय से कि दोनों ओर से पहला बाण किसने चलाया। संजय कहता है कि दोनों ओर से सेनाएं अभी आगे बढ़ रही हैं। दोनों के बीच युद्ध को लेकर प्रश्न-उत्तर होते हैं। संजय फिर युद्ध भूमि की ओर देखता है। दोनों ओर से युद्ध आरंभ हो चुका होता है।
 
अर्जुन का एक तीर भीष्म पितामह के रथ के चरणों के पास जाकर लगता है। भीष्म पितामह अर्जुन को विजयीभव का आशीर्वाद देते हैं। अर्जुन उन्हें प्रणाम करता है और फिर दोनों के बीच युद्ध प्रारंभ हो होता है। इधर, धृष्टदुम्न और द्रोण के बीच युद्ध होता है।
 
भीष्म युद्ध में कोहराम मचा देते हैं यह देखकर अभिमन्यु कहता है युधिष्ठिर से कि आप मुझे इन्हें रोकने की आज्ञा दें। आज्ञा लेकर अभिमन्यु भीष्म के तीर को रोक देता है तो भीष्म कहते हैं कि अपना परिचय दो बालक। तब अभिमन्यु परिचय देता है। फिर भीष्म कहते हैं कि यह आयु वीरगति को प्राप्त होने की नहीं है। अभिमन्यु कहता है कि आपकी आयु तो उस सीमा को पार कर चुकी है पितामह। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मेरे जीवन का पहला युद्ध मुझे आपसे करना है। फिर दोनों के बीच घमासान युद्ध होता है।
इधर, यह देखकर संजय कहता है कि हे महाराज मुझसे ये युद्ध देखा नहीं जा रहा। धृतराष्ट्र पूछते हैं कि क्यूं? धृतराष्ट्र ऐसा पूछकर कई तरह की शंकाएं व्यक्त करते हैं। तब संजय बताता है कि क्यूं नहीं देखा जा रहा। संजय फिर युद्ध भूमि की ओर देखकर कहते हैं कि इस समय दु:शासन का युद्ध माद्री नंदन नकुल से हो रहा है। भीष्म और अभिमन्यु के बीच घमासान जारी है। भीष्म अपने बाणों से अभिमन्यु को घायल कर देते हैं तो अभिमन्यु भी भीष्म को घायल कर देते हैं। 
 
घायल भीष्म अभिमन्यु को आशीर्वाद देते हुए कहते हैं कि तुम्हारे जैसा योद्धा ही हमारे कुल में पैदा हो सकता है किंतु मैं तुम्हारे प्राण नहीं ले सकता। तुम्हारे और मेरे बीच युद्ध नहीं हो सकता। इसलिए अपना रथ कहीं ओर ले जाओ पुत्र। अभिमन्यु कहता है कि मैं आपको रोकने के लिए आया हूं। तब भीष्म यह कहकर अपना रथ दूसरी ओर घुमा लेते हैं कि मैं तुमसे नहीं रोका जाऊंगा। तब अभिमन्यु अपने बाणों से भीष्म के समक्ष बाणों की दीवार खड़ी कर देता है।
भीष्म क्रोधित होकर चीखते हैं... अर्जुन। अर्जुन अपने पुत्र को ले जाओ वह मेरा मार्ग रोक रहा है। उधर, दुर्योधन चीखता है पितामह आप मेरे प्रधानसेनापति हैं या उन पांडवों के? यह कहते हुए दुर्योधन रथ को उनकी ओर बढ़ाने का कहता है। इधर, अभिमन्यु से भीष्म कहते हैं कि मैं तेरी मृत्यु का कारण नहीं बनता चाहता। तब दुर्योधन आकर कहता है कि मैं इसका वध करता हूं। यह सुनकर अभिमन्यु कहते हैं कि मैं आपही को ढूंढ रहा था ताऊश्री, किंतु आप मेरे बड़ों के ऋणि है मैं आपका वध करके अपने बड़ों का अपमान नहीं करना चाहता।
 
शाम के एपिसोड में द्रौपदी को बताया जाता है। वह सोचती है अपने खुले हुए केश के बारे में, जिसमें वह पांडवों को बताती है कि यह केश क्यों खुले हैं। तभी सुदेशणा वहां आती है और बधाई देती है। द्रौपदी पूछती है बधाई किसलिए? सुदेशणा बताती है कि किस तरह अभिमन्यु ने भीष्म को रोक दिया और किस तरह पितामह ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
 
इधर, दुर्योधन कहता है दु:शासन से कि जाओ कुलगुरु और आचार्य द्रोण से कहो कि वे भीष्म पितामह की सुरक्षा करें क्योंकि इस युद्ध में वे अकेले ही हमें विजयश्री का प्रसाद देंगे। इसलिए उनका सुरक्षित रहना बहुत आवश्यक है।
 
इधर, शिखंडी से युधिष्ठिर कहते हैं कि भीष्म पितामह हमारी सेना को इस तरह काट रहे हैं जैसे कि कोई कृषक अपने खेत को काट रहा है। शिखंडी कहते हैं कि जीत हमेशा धर्म की ही होती है। आप निश्चिंत रहें पांडव ज्येष्ठ।
पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मारे गए। भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया। कहते हैं कि इस दिन लगभग 10 हजार सैनिकों की मृत्यु हुई थी।
 
इधर, विराट नरेश और सुदेशणा अपने पुत्र उत्तर के वीरगति को प्राप्त होने का विलाप करते हैं तो दूसरी ओर गांधारी और द्रोपदी युद्ध की भयावहता को लेकर चर्चा करती हैं।
पांडव शिविर में पांडव युद्ध में घायल और मृत लोगों का निरिक्षण करते हैं। अंत में सभी चिंतित मुद्रा में श्रीकृष्ण के शिविर में पहुंचते हैं। युधिष्ठिर कहते हैं श्रीकृष्ण से कि शवों की गिनती घायलों से ज्यादा है वासुदेव। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धैर्य बंधाया और कहा कि कल का सूर्योदय होने दीजिए।
दूसरे दिन द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न और द्रोण के बीच घमासान युद्ध होता है। द्रोण धृष्टद्युम्न को घायल कर देते हैं। किंतु भीम उन्हें बचाकर निकाल ले गए। उधर, अर्जुन कहता है कि हे वासुदेव यदि पितामह को नहीं रोका गया तो वे शवों का ढेर लगा देंगे। मेरा रथ उनकी ओर ले चलो। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जैसी तुम्हारी इच्‍छा। अर्जुन कहता है कि इच्छा नहीं कर्तव्य पालन।
 
इधर, शिविर में बैठे कर्ण युद्ध नहीं करने की विवशता से दुखी होते हैं और चाहते हैं कि मैं भी युद्ध में जाऊं। 
  
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