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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 30 जुलाई 2022 (17:11 IST)

मध्यप्रदेश में 2023 में 2018 की तरह कांटे का होगा मुकाबला? नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के नतीजों से मिले संकेत

मध्यप्रदेश में 2023 में 2018 की तरह कांटे का होगा मुकाबला? नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के नतीजों से मिले संकेत - Madhya Pradesh: Will there be a thorn in the 2023 assembly elections like in 2018?
भोपाल। मध्यप्रदेश में सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देख गए नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजों ने 2023 के चुनावी मुकाबले की तस्वीर बहुत कुछ साफ कर दी है। 2023 के विधानसभा चुनाव से ठीक डेढ़ साल पहले हुए इन चुनाव के रिजल्ट इस बात का साफ इशारा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव का मुकाबला काफी दिलचस्प होने जा रहा है। चुनाव नतीजों का विश्लेषण और राजनीति के जानकारों की माने तो पंचायत और निकाय चुनाव के नतीजे इस बात का संकेत दे रहे है कि 2023 में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला होने जा रहा है।    
 
3 अंचल भाजपा के लिए खतरे की घंटी!-अगर चुनाव नतीजों को देखा जाए तो भाजपा को ग्वालियर-चंबल के साथ महाकौशल औऱ विंध्य में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अगर 2108 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो ग्वालियर-चंबल में हार की वजह से ही सत्ता से जाना पड़ा था। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ग्वालियर में केवल ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा सीट जीती थी और बाकी अन्य कांग्रेस के खाते में गई थी वहीं इस बार महापौर चुनाव में हार के बाद  भाजपा की 2023 की तैयारियों पर सवाल उठने लगा है।

अगर ग्वालियर की बात करें तो ग्वालियर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा ने अपना कब्जा जमाकर बता दिया है कि ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा में वह आज भी मजबूत है लेकिन सवाल ग्वालियर में आने वाली अन्य पांच विधानसभा सीट को लेकर है। शिवराज कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री प्रदुय्मन सिंह तोमर के क्षेत्र में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है।  

महाकौशल में भाजपा के गढ़ माने जाने वाले जबलपुर में महापौर चुनाव में पार्टी की हार  विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ी खतरे की घंटी है। गौर करने वाली बात यह है कि जबलपुर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की ससुराल है इसके साथ ही प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह यहां के सांसद हैं। इसके बाद भी जबलपुर में भाजपा हार गई इस तरह की हार का असर विधानसभा चुनावों में तो देखेगा ही लेकिन लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को उठाना पड़ सकता है। 

रीवा के साथ सिंगरौली का भाजपा मुक्त होना विधानसभा चुनाव के लिए विंध्य क्षेत्र से भाजपा के लिए बड़ी खतरे की घंटी है। सिंगरौली नगर निगम में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार रानी अग्रवाल की जीत ने प्रदेश के साथ-साथ केंद्रीय नेतृत्व को भी सकते में डाल दिया है। वहीं रीवा में विधानसभा अध्यक्ष के बेटे का पंचायत चुनाव और फिर पार्टी उम्मीदवार का महापौर चुनाव हराना पार्टी के लिए तगड़ा झटका है।  

2023 विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देखे गए महापौर चुनाव में भाजपा को 7 सीटों पर नुकसान झेलना पड़ा। प्रदेश के कुल 16 नगर निगमों में से सत्तारूढ़ भाजपा केवल 9 नगर निगमों में जीत हासिल कर पाई वहीं पांच नगर निगम कांग्रेस के खाते में गए है। अब तक भाजपा प्रदेश की सभी 16 नगर निगमों पर काबिज थी। ऐसे में विधानसभा चुनाव से ठीक डेढ़ साल पहले हुए निकाय चुनाव में सात सीटें हारना भाजपा के लिए एक तगड़ा झटका माना जा रहा है। 

हार से सबक सिखेगी भाजपा?-प्रत्याशी चयन में पुराने, पार्टी के वफादार और जिताऊ के बजाए युवाओं के नाम पर मनमानी, गुटबाजी के चलते भाजपा 9 अंक पर सिमट गई। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी के मंत्री के बेटे ने तक ने बगावत कर दी। पार्टी नेताओं की बगावत और कमजोर डैमेज कंट्रोल के चलते ही भाजपा ग्वालियर, मुरैना से लेकर कटनी और जबलपुर रीवा, सिंगरौली,छिंदवाड़ा नगर निगम हार गई। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का गृह क्षेत्र मुरैना और उनके संसदीय क्षेत्र कटनी में भी भाजपा महापौर का चुनाव हार गई। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बावजूद ग्वालियर नगर निगम में 57 साल बाद भाजपा की हार की रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंच चुकी है।
 
इन चुनावों को अगर संगठन स्तर पर देखा जाए तो भाजपा के अंदर ऑडियो ब्रिज, यूथ कनेक्ट,त्रिदेव,पन्ना प्रभारी, पन्ना प्रमुख, मेरा बूथ सबसे मजबूत जैसे नारों की असलियत सबके सामने आ गई। अगर कहा जाए कि संगठन कार्यकर्ताओं को जोड़ने और सक्रिय करने में कमजोर साबित हुआ तो गलत नहीं होगा। 

सात साल बाद हुए नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा को तगड़ा झटका लगा। भले ही भाजपा चुनाव की नतीजों को अपने पक्ष में बताकर जश्न मना रही हो लेकिन सच्चाई यह है कि चुनाव खत्म होने से पहले ही हार की पार्टी के अंदर समीक्षा का दौर शुरु हो गया है और सात नगर निगमों में हार के साथ नर्मदापुरम, डिंडौरी सहित 6 जिला पंचायत अध्यक्षों में हार के कारणों की रिपोर्ट तैयार की जा रही है।

विधायकों की हार से बैकफुट पर कांग्रेस-नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं था। वहीं चुनाव परिणामों में नगरीय निकाय के चुनाव और पंचायत में मिली बढ़त कांग्रेस के लिए मनचाही मुराद के रूप में देखी जा रही है लेकिन उसके तीन विधायकों का महापौर चुनाव पार्टी के लिए बड़ा सबक है।
 
कांग्रेस के तीन विधायक महापौर का चुनाव लड़ने मैदान में उतरे और तीनों हार गये। विंध्य के सतना नगर निगम में कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुशवाह बड़े अंतर से चुनाव हारने के बाद अब उनकी विधायक की टिकट भी खतरे में पड़ती हुई दिख रही है। इसके साथ उज्जैन में कांग्रेस विधायक महेश परमार भले ही मामूली अंतर से चुनाव हारे हो लेकिन हार तो हार ही है। कांग्रेस के तीसरे विधायक इंदौर से संजय शुक्ला की हार के भी खूब चर्चे है। कांग्रेस को इस बात का संतोष है कि भाजपा के सबसे बड़े गढ़ में शुक्ला ने पूरी दम-खम से चुनाव लड़ा है लेकिन संजय शुक्ला का अपनी विधानसभा में हारना उनके लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। 

मालवा-निमाड़ में कांग्रेस पिछड़ी-कांग्रेस 5 नगर निगम के साथ 10 जिला पंचायत अध्यक्षों पर अपना कब्जा जमाकर भले इस बात का एलान कर दिया है कि वह 2023 के फाइनल  मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार है। लेकिन चुनाव नतीजें यह भी बता रहे है कि सत्ता की कुंजी माने जाने वाले मालवा में कांग्रेस ्के हालात सहीं नहीं है और पार्टी को वहां बहुत मेहनत करनी होगी। मालवा-निमाड़ से आने वाली 65 विधानसभा सीटों के नतीजे ही इस बात को तय करेंगे कि 2023 में सत्ता पर किसका कब्जा होगा?