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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019 (10:13 IST)

मध्यप्रदेश भाजपा अंतरकलह के चलते हारी झाबुआ उपचुनाव, कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी को भूरिया की जीत का श्रेय

वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक का नजरिया

मध्यप्रदेश भाजपा अंतरकलह के चलते हारी झाबुआ उपचुनाव, कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी को भूरिया की जीत का श्रेय - jhabua bypoll victory a boost for kamalnath govt
मध्यप्रदेश में झाबुआ उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया की जीत ने कमलनाथ सरकार को दिवाली पर सबसे बड़ा तोहफा दे दिया है। झाबुआ सीट पर कांग्रेस की जीत ने न केवल एक तरह से कमलनाथ सरकार के 10 महीनों के कामकाज पर अपनी मोहर लगा दी है, बल्कि भाजपा के उन दावों पर पानी फेर दिया है जिसमें वे कभी कमलनाथ सरकार के गिरने की भविष्यवाणी करते थे।
 
झाबुआ सीट पर भाजपा की बड़ी हार के बाद अब पार्टी के अंदर प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठने लगे हैं। भाजपा विधायक केदार नाथ शुक्ला ने राकेश सिंह के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
 
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक कहते हैं कि झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव की जीत मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार के लिए संजीवनी बूटी बनकर आई है। स्पष्ट बहुमत के लिए एक-एक सीट के लिए तरसती कांग्रेस को इस एक सीट से बड़ी राहत मिलने वाली है। यह तय है कि कांतिलाल भूरिया की जीत से कमलनाथ सरकार के चेहरे पर कांति बढ़ेगी। उधर कमलनाथ सरकार को गिराने के तमाम जतन करती रही बीजेपी के लिए ये हार कुछ दिन तक चुपचाप बैठने का जनादेश जैसा है।
 
वे कहते हैं कि नवंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में झाबुआ सीट से कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया चुनाव हार गए थे। उन्हें बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने हराया था। तब कांग्रेस से बगावत करके जेवियर मेड़ा मैदान में थे, जो विक्रांत की हार का सबब बने। उन्हें 30 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।
 
इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जरूर बनी लेकिन मई में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी चारों खाने चित हो गई। खुद कांतिलाल झाबुआ से लोकसभा चुनाव हार गए। यह हार उन्हीं गुमान सिंह डामोर के हाथों हुई जिन्होंने विधानसभा में कांतिलाल के बेटे को हराया था। भूरिया परिवार और कांग्रेस की परंपरागत सीट पर लगातार हार ने कांग्रेस और भूरिया दोनों के हौसले पस्त कर दिए थे।
 
डामोर के सांसद बनने पर हुए उपचुनाव में कांतिलाल फिर भाग्य आजमाने उतरे। इस दफा बीजेपी ने अपेक्षाकृत नए चेहरे भानू भूरिया पर दांव लगाया। 'भूरिया वर्सेस भूरिया' के इस संग्राम में बड़े भूरिया का पूरा राजनीतिक जीवन दांव पर लगा था। इस दफा हार जाते तो शायद उनके करियर पर ब्रेक लग जाता।
 
अक्टूबर 19 में झाबुआ का चुनावी नजारा नवंबर 18 की सर्दियों से बिलकुल उलट था। तब कांग्रेस के बागी जेवियर मेड़ा ताल ठोंककर कांग्रेस के पंजे को मरोड़ रहे थे तो इस बार बीजेपी के बागी कल्याण सिंह डामोर कमल की पंखुड़ियां नोंच रहे थे। जेवियर को कांग्रेस ने मना लिया, सो इस बार वे कांतिलाल के साथ रहे लेकिन कल्याण को बीजेपी नहीं मना सकी। वैसे कल्याण सिंह नाममात्र के ही वोट पा सके।
 
कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी का कमाल : मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बनी झाबुआ सीट पर कांतिलाल भूरिया की जीत का श्रेय वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की जोड़ी को देते हैं।
 
वे कहते हैं कि इस जीत के बाद अब सीएम कमलनाथ यह दावा भी कर सकेंगे कि यह जीत उनके 10 महीने के काम पर जनता की मुहर है। चुनाव प्रचार में असल दांव दिग्विजय सिंह ने खेला। एक चुनावी सभा में उन्होंने कह दिया कि 'यह कांति का आखिरी चुनाव है।' चुनाव अभियान में कांतिलाल के जीतने पर मंत्री बनने यहां तक कि मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं भी हवा में फैलाई गईं।
 
नेताओं की अंतरकलह से हारी बीजेपी : झाबुआ में सिर्फ 6 महीने में विधानसभा और लोकसभा दोनों जीतने वाली बीजेपी इस बार बड़े फासले से हार गई है। कमलनाथ सरकार बनने के अगले दिन से ही उसे गिराने में जी-जान से जुटी बीजेपी के लिए यह करारा झटका है।
 
विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही बीजेपी में गुटबाजी तेजी से उभरी, शिवराज सिंह विरोधी खेमा उन्हें हर मौके पर हाशिए पर ठेलने की कोशिश करता है। कमलनाथ सरकार के खिलाफ आंदोलन तक में पार्टी एकजुट नहीं दिखाई देती। झाबुआ में प्रचार के दौरान भी नेता 'अपनी ढपली अपना राग' बजाने से बाज नहीं आए।
 
कुल मिलाकर बीजेपी अब तक नवंबर 2018 की हार को पचा नहीं पाई है। सबल विपक्ष की भूमिका में आने के बजाय सरकार बनाने की कोशिशों में लगी पार्टी को इस हार के बाद अपने तौर-तरीकों पर भी विचार करना होगा।