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Written By DW
Last Modified: शनिवार, 17 नवंबर 2012 (13:55 IST)

जर्मनी में श्राद्ध का महीना है नवंबर

जर्मनी में श्राद्ध का महीना है नवंबर -
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जर्मनी में पारंपरिक रूप से नवंबर का महीना दुनिया से विदा हो चुके लोगों की याद में शोक मनाने का होता है। इसके उलट एक सच्चाई यह भी है कि यहां आत्महत्या के ज्यादातर मामले वसंत ऋतु में सामने आते हैं।

जर्मनी के दिन जब ठंडे और गहरे अंधेरों में घिरने लगते हैं तब यहां लोग अवसाद भगाने के लिए कॉफी और चॉकलेट का सहारा लेते हैं और मोमबत्तियां जलाते हैं।

एक वृद्धाश्रम में सामाजिक सेवा की प्रमुख इरीना सूखन बताती हैं, 'हमारे लोगों को उनके दिलोदिमाग के लिए कुछ चाहिए होता है।' खराब मौसम में बुजुर्गों को घर के भीतर ही रहना पड़ता है और ऐसे में ज्यादातर चिड़चिड़े हो जाते हैं।

जर्मनी में नवंबर के महीने से दिन की रोशनी घटती चली जाती है और चर्च का कैलेंडर भी अपने आखिरी दिनों में पहुंच जाता है। अलग अलग धार्मिक समूहों में नवंबर महीने के दिन शोक मनाने के लिए तय किए गए हैं।

प्रोटेस्टेंट चर्च मरे हुए लोगों के लिए रविवार को शोक मनाते हैं तो कैथोलिक एक नवंबर को ऑल सेंट्स डे के रूप में मनाते हैं। इसके अलावा क्रिसमस का महीना शुरू होने से दो रविवार पहले अत्याचार और युद्ध के शिकार लोगों के लिए शोक मनाने के लिए राष्ट्रीय शोक मनाया जाता है।

जर्मनी में प्रोटेस्टेंट चर्च के प्रवक्ता राइनहार्ड माविक ने डीडब्ल्यू को बताया, 'नवंबर का महीना लोगों को याद करने और प्रायश्चित करने के लिए होता है। यह एक मिथक है कि फरवरी में दूसरे महीनों की तुलना में मौत और खुदकुशी ज्यादा होती है।'

वसंत में खुदकुशी : बॉन के वृद्धाश्रम में हर साल 20 से 30 लोग गुजर जाते हैं और नवंबर में ज्यादा लोग मरते हों यह सच नहीं है। मौत किसी एक महीने में न होकर आमतौर पर साल के सभी महीनों में होती है। जर्मनी के सांख्यिकी विभाग के मुताबिक 2010 के नवंबर महीने में कुल 854 लोगों ने खुदकुशी की लेकिन इसी सबसे ज्यादा 957 लोगों ने मार्च में खुदकुशी की।

यूनिवर्सिटी क्लिनिक बॉन में प्रोफेसर और मनोवैज्ञानिक रेने हुर्लेमान बताते हैं, 'जाड़े के दिनों में मेरे मरीज बिल्कुल नाउम्मीद और निराश होते हैं, लेकिन उनमें कुछ करने का जज्बा भी नहीं होता।' इसके साथ हुर्लेमान ने यह भी बताया कि रोशनी और भावुकता के बीच संबंध है और कम से कम जर्मनी में रोशनी बसंत के आखिरी महीनों से पहले नहीं आती है।

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दुख की राह : जंग के कब्रिस्तान का संरक्षण करने वाली एसोसिएशन के प्रवक्ता फ्रित्स किर्शमायर के लिए शोक उनके रोजगार का हिस्सा है। वह हर साल नवंबर में नेशनल मेमोरियल डे के दिन कम से काम चार अंतिम प्रार्थना सभा में हिस्सा लेते हैं।

किर्शमायर बताते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के 60 साल बीत जाने के बाद उदासी तो चली गई है लेकिन यादें बाकी हैं। डीडब्ल्यू से किर्शमायर ने कहा, 'यह समझा सकता है क्योंकि लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे। बहुत से शहीदों के जीवनसाथी अब जीवित नहीं है।'

20वीं सदी के साथ ही शुरू हुए मेमोरियल डे पर न केवल विश्व युद्ध में मारे गए लोगों को याद किया जाता बल्कि दूसरी जंगों के शहीद भी याद किए जाते हैं। अफगानिस्तान में मरने वाले सैनिकों को भी इस दिन श्रद्धांजलि दी जाती है।
किर्शमायर का कहना है कि जर्मन सैनिकों के काम को आमतौर पर पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता इसलिए उन्हें याद करने के लिए आधिकारिक तौर पर एक खास महीना तय कर दिया गया है।

मत भूलो : बॉन के वृद्धाश्रम में स्मृति उत्सव पूरे साल बेहद अहम होते हैं। सूखन कहती हैं, 'यह बहुत जरूरी होता है कि लोग एकदम से गायब न हो जाएं।' खासतौर से उन लोगों के लिए जिनके परिवार में कोई सदस्य नहीं। भूल जाने का डर चॉकलेट या मोमबत्ती से नहीं मिटता।

रिपोर्टः नाओमी कोनराड/एनआर
संपादनः आभा मोंढे